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झील में डूबे अमेरिकी विमान के मलबे को निकालेगा चीन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ था हादसा

चीन के एक गैर सरकारी संगठन ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान झील में डूब गए एक अमेरिकी लड़ाकू विमान के मलबे को निकालने की कोशिश शुरू की है।

By TaniskEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 02:30 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 02:30 PM (IST)
झील में डूबे अमेरिकी विमान के मलबे को निकालेगा चीन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ था हादसा
झील में डूबे अमेरिकी विमान के मलबे को निकालेगा चीन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ था हादसा

बीजिंग, एपी। चीन के एक गैर सरकारी संगठन ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान झील में डूब गए एक अमेरिकी लड़ाकू विमान के मलबे को निकालने की कोशिश शुरू की है। इस विमान को 'द फ्लाइंग टाइगर्स ग्रुप' के पायलट उड़ा रहे थे। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया था। जापान का बढ़ता प्रभुत्व देखकर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने 'द फ्लाइंग टाइगर्स' को चीन भेजा।

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फ्लाइंग टाइगर्स दिसंबर 1941 से लेकर तब तक जापान के सैनिकों से लोहा लेते रहे जब तक उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं कर दिया। इसी दौरान अभियान में लगे कर्टिस पी-40 विमान 1942 में दक्षिण पश्चिमी शहर कुनमिंग के पास दियांची झील में क्रैश हो गया। इसी शहर में द फ्लाइंग टाइगर्स का अड्डा था।

चीन और अमेरिका के बीच ठंडे पड़े रिश्तों में एक बार फिर गर्माहट आएगी

चाइना एडवेंचर एसोसिएशन के वान बो ने कहा, 'हमें उम्मीद है कि पी-40 विमान के मलबे को निकालने की योजना से चीन और अमेरिका के बीच ठंडे पड़े रिश्तों में एक बार फिर गर्माहट आएगी।' चीन में मिशन के दौरान द फ्लाइंग टाइगर्स ने 300 जापानी विमानों को मार गिराया था, जबकि उसके 14 पायलट इस दौरान शहीद हुए थे।

जापान के विमानों को चीन में बढ़त हासिल थी

पी-40 विमानों को तैनात किए जाने से पहले जापान के विमानों को चीन में बढ़त हासिल थी। विमान क्रैश होने के बाद पायलट जॉन ब्लैकबर्न का शव मिला था और इसे अमेरिका भेजा गया था। हान ने कहा कि उनके संगठन ने वर्ष 2005 में चुंबकीय उपकरणों का उपयोग करते हुए मलबे को ढूंढ लिया, लेकिन इसे गाद से बाहर नहीं निकाल सके हैं। उनके अनुसार समूह ने विमान के चारों ओर एक बैरियर बनाने, गाद हटाने और फिर इसे क्रेन द्वारा सतह तक लाने की योजना बनाई है। इसे एक संग्रहालय में रखने की योजना है। हालांकि, अभी यह फैसला नहीं हुआ है  कि कौन से संग्रहालय में इसे रखा जाएगा। 


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