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चीन ने किया स्वेदशी विमानवाहक पोत का समुद्री परीक्षण, पिछले साल नौसेना में हुआ था शामिल

चीन ने पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत शांडोंग पर तैनात हथियारों और उपकरणों का शुक्रवार को समुद्री परीक्षण किया। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि अभ्यास योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है।

By TaniskEdited By: Published: Sat, 30 May 2020 05:05 PM (IST)Updated: Sat, 30 May 2020 05:05 PM (IST)
चीन ने किया स्वेदशी विमानवाहक पोत का समुद्री परीक्षण, पिछले साल नौसेना में हुआ था शामिल
चीन ने किया स्वेदशी विमानवाहक पोत का समुद्री परीक्षण, पिछले साल नौसेना में हुआ था शामिल

बीजिंग, एपी। चीन ने पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत 'शांडोंग' पर तैनात हथियारों और उपकरणों का शुक्रवार को समुद्री परीक्षण किया। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि अभ्यास योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है। बता दें कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने पिछले साल इस विमानवाहक पोत को नौसेना में शामिल किया था। यह दूसरा विमानवाहक पोत है, जिसे नौसेना में शामिल किया गया था। इससे पहले लिओनिंग नाम के विमानवाहक पोत को शामिल किया गया था। 

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योजनाबद्ध तरीके से हो रहा समुद्री परीक्षण

समाचार एजेंसी एपी के अनुसार चीन के रक्षा मंत्रालय ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि नौसेना का एकमात्र पूरी तरह से घरेलू निर्मित विमान हथियारों, उपकरणों और चालक दल के प्रशिक्षण के लिए समुद्री परीक्षण कर रहा है। मंत्रालय के प्रवक्ता रेन गुओकियांग ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि यह अभ्यास पूरी तरह से नियोजित तरीके से हो रहा है। यह देश में कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रकोप से अप्रभावित है।

दोनों ही विमान सोवियत डिजाइन पर आधारित

हालांकि, यह पूरी तरह स्वेदशी विमानवाहक पोत नहीं था। इसे यूक्रेन से खरीदने के बाद इसका नवीनीकरण किया गया था। दोनों ही विमान सोवियत डिजाइन पर आधारित हैं। इसमें अमेरिकी विमानवाहक पोत द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फ्लैट डेक के बजाय टेकऑफ के लिए 'स्की जंप' शैली की उड़ान डेक है।

दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का दावा

समाचार एजेंसी एपी के अनुसार चीन की इस कोशिश को एशिया में प्रमुख नौसैनिक शक्ति के रूप में अमेरिका से आगे निकलने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। वह पहले ही जहाजों की संख्या के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का दावा करता है। चीन का कहना है कि उसके तट और व्यापार मार्गों की सुरक्षा के लिए विमान वाहक की आवश्यकता है, लेकिन इसे ताइवान और दक्षिण चीन सागर पर उसके दावों के समर्थन के तौर पर भी देखा जाता है।


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