अमेरिका ने ताइवान को दिया अप्रत्याशित समर्थन, कहा- ‘चीन के साथ संबंधों में द्वीप समस्या नहीं’
अमेरिका अब ताइवान को चीन के साथ अपने संबंधों में समस्या के तौर पर नहीं देखता है। ज्यादातर देशों की तरह अमेरिका का भी ताइवान के साथ कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है लेकिन अमेरिका अब ताइवान को स्वतंत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रूप में देखता है।
ताइपे,रॉयटर्स: अमेरिका अब ताइवान को चीन के साथ अपने संबंधों में समस्या के तौर पर नहीं देखता है। ज्यादातर देशों की तरह अमेरिका का भी ताइवान के साथ कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है, लेकिन अमेरिका अब ताइवान को स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रूप में बढ़ावा देने के तौर पर देखता है।
ताइपे में एक सभा के दौरान अमेरिकी अधिकारी रेमंड ग्रीन ने कहा कि जब उन्होंने लगभग दो दशक पहले ताइवान में पहली बार काम किया था, तो उन्होंने जो कुछ भी किया, वह क्रॉस-ताइवान स्ट्रेट मुद्दों से संबंधित था और इसको ध्यान में रखकर किया था कि कैसे ताइवान अमेरिका-चीन के संबंधों बीच फिट बैठता है। लेकिन पिछले तीन वर्षों में संबंधों को गहरा करने और अन्य देशों को उनकी अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने में मदद करने के लिए ध्यान केंद्रित किया गया है।
साथ ही ग्रीन ने बताया कि उनकी ताइवान के अधिकारियों के साथ अनगिनत बैठकें हुई हैं, जिनमें चीन का कुछ भी जिक्र तक नहीं हुआ। ये अमेरिका और ताइवान के संबंधों में एक मौलिक परिवर्तन को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि, अमेरिका चीन के साथ संबंधों में ताइवान को एक समस्या के रूप में नहीं देखता है। हम इसे एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अपने साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में देखते हैं।
गौरतलब है कि, हाल के महीनों में चीन ने ताइवान को अपनी संप्रभुता स्वीकार करने के लिए मजबूर करने की कोशिशें तेज कर दी हैं। चीन इन दिनों ताइवान पर दबाव बनाने के लिए उसके वायु रक्षा क्षेत्र में बार-बार लड़ाकू जेट और बमवर्षक उड़ाने भर रहा है। लोकतांत्रिक रूप से शासित द्वीप पर ज्यादातर लोगों ने चीन द्वारा शासित होने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।
ताइवान और चीन का विवाद
ताइवान 1950 से ही स्वतंत्र द्वीप रहा है, लेकिन चीन इसे अपना विरोधी मानता है। एक तरफ जहां ताइवान ख़ुद को स्वतंत्र राष्ट्र बताता है, वहीं चीन के मुताबिक ताइवान को चीन का अंग बन जाना चाहिए। फिर इसके लिए चाहे शक्ति का ही इस्तेमाल क्यों न करना पड़े। दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर गीता बताती हैं कि, चीन में साल 1644 में चिंग वंश सत्ता में आया और उसने चीन का एकीकरण किया। फिर साल 1895 में चिंग ने ताइवान को जापान को सौंप दिया। लेकिन 1911 में चिन्हाय क्रांति हुई जिसमें चिंग वंश को सत्ता से हटना पड़ा। इसके बाद चीन में कॉमिंगतांग की सरकार बनी और जितने भी इलाके चिंग राज्य के पास थे वो कॉमिंगतांग सरकार को मिल गए।