यदि हम समय रहते नहीं जागे...तो सामने आएंगे और ज्यादा गंभीर परिणाम
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि तेजी से बर्फ पिघलने से आर्कटिक के कई क्षेत्रों की जलवायु में अचानक बदलाव आ सकता है।
टोरंटो, प्रेट्र। आर्कटिक पर तेजी से पिघलती बर्फ के कारण यहां के हालात के बिगड़ने का खतरा पैदा हो गया है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि तेजी से बर्फ पिघलने से आर्कटिक के कई क्षेत्रों की जलवायु में अचानक बदलाव आ सकता है। यह बदलाव पूर्व के अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकता है। एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में छपे अध्ययन के अनुसार, युकोन समेत कनाडा के विभिन्न क्षेत्रों के जंगलों में आग लगने की घटनाओं की तीव्रता आने वाले समय में दोगुना हो सकती है।
कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता लक्ष्मी सुषमा ने कहा, ‘हमने जलवायु परिवर्तन में क्लाइमेटइंजीनिर्यंरग इंफ्रास्ट्रक्चर (सड़कों, बंदरगाहों, इमारतों, पाइप लाइनों और खनन ढांचों) के परस्पर प्रभाव को लेकर अध्ययन किया। हमने आर्कटिक के इंफ्रास्ट्रक्चर को खासतौर से बर्फ के पिघलने समेत मृदा की नमी में बदलाव और दूसरे कारकोंसे प्रभावित पाया।’ इसके पहले आर्कटिक पर बर्फ की मोटी परतों को लेकर कई अध्ययन किए गए थे। इनमें आर्कटिक पर कुछ प्रभाव के साथ बर्फ को धीमी गति से पिघलता पाया गया था।
इस अध्ययन के सह-लेखक बर्नार्डो टेफेल ने कहा, ‘अभी तक आर्कटिक की जलवायु की हाईरेजोल्यूशन मॉडलिंग नहीं की गई है। लेकिन हमारे शुरुआती परीक्षण में कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं।’ शोधकर्ताओं ने कहा कि पूर्व में किए गए अध्ययन 20 से 30 साल पुराने मॉडलों पर आधारित थे, जबकि मौजूदा अध्ययन उन्नत मॉडल पर आधारित है।
...तो सामने आएंगे और ज्यादा गंभीर परिणाम
टेफेल ने कहा, ‘इस अध्ययन के लिए हमने 1970-2020 की अवधि के जलवायु मॉडल के डाटा का उपयोग किया, ताकि यह समझा जा सके कि आखिर आर्कटिक की जलवायु बदलने के संभावित कारण क्या हैं। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के परिणाम बहुत चिंताजनक हैं। यदि हम समय रहते नहीं जागे तो भविष्य में हमें और ज्यादा भयानक परिणाम देखने को मिलेंगे।
दोगुना तेजी से बढ़ रहा है तापमान
इससे पहले अन्य अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि आर्कटिक क्षेत्र में हो रही अप्रत्याशित मौसमी गतिविधियों के चलते यहां के पौधे तेजी से मर रहे हैं। वैश्विक औसत की तुलना में आर्कटिक क्षेत्र का तापमान दोगुना तेजी से बढ़ रहा है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के वैज्ञानिकों के अनुसार, इन बदलावों के कारण पौधों के मरने से यहां जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव और बढ़ सकता है। ऐसा होने से यहां का इकोसिस्टम जलवायु परिवर्तन से लड़ने में अक्षम हो जाएगा।
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