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विनाशवादी विकास का शिकार हो रहे हैं दुनिया के समुद्र और जलीय जीव, जानें क्या है कारण

पेट्रोलियम की तलाश में इंसान जिस तरह से सागरों की छाती पर सवार होते जा रहे हैं, उसने बहुत से जलीय जीवों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।

By TaniskEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 07:47 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 07:47 PM (IST)
विनाशवादी विकास का शिकार हो रहे हैं दुनिया के समुद्र और जलीय जीव, जानें क्या है कारण

द न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन। विकास समाज की सतत प्रक्रिया है, लेकिन अगर विकास प्रकृति के साथ साम्य स्थापित करने में विफल रहे तो इसे विनाश में ढलते देर नहीं लगती। ऐसे ही विनाशवादी विकास का शिकार हो रहे हैं दुनिया के समुद्र। पेट्रोलियम की तलाश में इंसान जिस तरह से सागरों की छाती पर सवार होते जा रहे हैं, उसने बहुत से जलीय जीवों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।

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समुद्र की सतह में पेट्रोलियम का पता लगाने के लिए ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है। ध्वनि तरंगें समुद्र की सतह में मीलों गहराई तक जाती हैं। वहां से टकराकर लौटती ध्वनि तरंगों की मदद से इस बात का पता लगाया जाता है कि कहां तेल एवं गैस होने की संभावना है। सुनने में यह पूरी प्रक्रिया बेहद शांत लगती है, लेकिन ऐसा है नहीं। इस काम में इस्तेमाल होने वाली ध्वनि तरंगों की गूंज बहुत ज्यादा होती है। जानकारों का कहना है कि समुद्री सतह में पेट्रोलियम की पड़ताल के लिए प्रयोग की जाने वाली सिस्मिक एयर गन संभवत: सबसे तेज आवाज पैदा करती है।

अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डगलस नोवासेक ने कहा, 'कंपनियां हर 10 सेकेंड के अंतराल में लगातार महीनों एयर गन से विस्फोट करती हैं। इन ध्वनि तरंगों को विस्फोट के 4,000 किलोमीटर दूर तक महसूस किया गया है। निसंदेह प्रभावित क्षेत्र बहुत विशाल है।' अमेरिका ने हाल ही में पूर्वी तट पर सेंट्रल फ्लोरिडा से लेकर नॉर्थईस्ट तक पांच कंपनियों को सिस्मिक सर्वेक्षण की मंजूरी दी है। अटलांटिक में सर्वेक्षण अभी शुरू नहीं हुए हैं, लेकिन अब ऑफशोर ड्रिलिंग पर लगा प्रतिबंध हटने के बाद कंपनियों को मेक्सिको की खाड़ी से लेकर प्रशांत महासागर तक पेट्रोलियम खनन की मंजूरी मिल सकती है।

कितना होता है शोर?

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस काम में प्रयोग होने वाली सिस्मिक एयर गन से 260 डेसिबल तक की आवाज होती है। वहीं मालवाहक पोत व समुद्र में शोर की वजह बनने वाले अन्य कारणों से करीब 190 डेसिबल तक का शोर होता है। इन आवाजों की तीव्रता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अंतरिक्षयान की लॉन्चिंग के समय करीब 160 डेसिबल तक की आवाज पैदा होती है। दुनियाभर में एक साथ 20 से 40 सिस्मिक सर्वेक्षण चल रहे हैं। निसंदेह इस शोर की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है।

किस तरह होता है असर?

वैज्ञानिकों का कहना है कि व्हेल और कई जलीय जीव अलग-अलग तरह की आवाज के जरिये ही समुद्र के भीतर संवाद स्थापित करते हैं। ऐसे में समुद्र के अंदर सिस्मिक एयर गन की वजह से होने वाला शोर उनके बीच संवाद को प्रभावित करता है। सतत रूप से ऐसी आवाज जलीय जीवों में तनाव का कारण भी बनती है।

क्या है खतरा?

वैज्ञानिकों का मानना है कि सिस्मिक एयर गन से लेकर समुद्री जहाजों तक विभिन्न माध्यमों से जो ध्वनि पैदा होती है, वह छोटे से लेकर बड़े सभी समुद्री जीवों के लिए घातक है। इनसे व्हेल, डॉल्फिन और ऑक्टोपस जैसे विशाल जीवों से लेकर प्लैंकटन जैसे सूक्ष्म समुद्री जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इन तेज ध्वनि के कारण समुद्री जीवों की सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है और उनका ब्रेन हेमरेज (मस्तिष्क में रक्तस्राव) भी हो सकता है। यह तेज आवाज उनके खानपान और प्रजनन चक्र को भी प्रभावित कर सकती है।


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