Move to Jagran APP

'Black Vault' and 'Project A119: शीतयुद्ध के दौरान चांद पर परमाणु विस्फोट करना चाहता था अमेरिका

Black Vault and Project A119 किताब के मुताबिक सोवियत संघ पर बढ़त दिखाने और स्वयं का प्रभुत्व साबित करने के लिए अमेरिका 1959 में चांद पर परमाणु विस्फोट करना चाहता था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 09:54 AM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 02:47 PM (IST)
'Black Vault' and 'Project A119: शीतयुद्ध के दौरान चांद पर परमाणु विस्फोट करना चाहता था अमेरिका

नई दिल्‍ली। 'Black Vault' and 'Project A119 शीतयुद्ध का दौर बीते सालों हो चुके हैं, लेकिन इससे जुड़ी बातें अलग-अलग माध्यमों से सामने आती रहती हैं। उस दौर में अमेरिका और सोवियत संघ के रिश्ते बेहद खराब थे। दोनों देश खुद को दूसरे से ज्यादा बेहतर साबित करने की होड़ में जुटे थे और दोनों को ही कोई भी कदम उठाने से गुरेज नहीं था। शीतयुद्ध के दौर का ऐसा ही चौंकाने वाला दावा हाल ही में प्रकाशित एक किताब में किया गया है।

loksabha election banner

डेलीमेल के अनुसार किताब के मुताबिक, सोवियत संघ पर बढ़त दिखाने और स्वयं का प्रभुत्व साबित करने के लिए अमेरिका 1959 में चांद पर परमाणु विस्फोट करना चाहता था। साथ ही अमेरिकी सरकार की योजना चांद पर में सैन्य अड्डा शुरू करने की भी थी।

‘सीक्रेट्स फ्रॉम द ब्लैक वॉल्ट‘ में दावा : यह दावा ‘सीक्रेट्स फ्रॉम द ब्लैक वॉल्ट‘ पुस्तक ने किया है, जो इसी साल अप्रैल में प्रकाशित हुई है। इसे जॉन ग्रीनवाल्ड जूनियर ने लिखा है। 15 साल की उम्र से ही उनकी रुचि अमेरिकी सरकार की खुफिया रिपोर्ट्स में रही हैं। उन्होंने कहा कि चांद की सतह पर परमाणु विस्फोट निश्चित रूप से सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण चीज थी, जिसे सरकार करना चाहती थी। डेलीमेल के अनुसार जॉन अब तक करीब 3 हजार खुफिया सूचनाओं को स्वतंत्र कराने के लिए कोशिश कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि द ब्लैक वॉल्ट विभिन्न घटनाओं का ऑनलाइन संग्रह करता है। इस पर 2 करोड़ से ज्यादा पेज हैं।

सोवियत संघ को हराने की नई तरकीब : 1959 में अमेरिकी सेना के अनुसंधान और विकास प्रमुख लेफ्टिनेंट आर्थर जी. ट्रूडो ने मांग रखी कि यदि अमेरिका को सोवियत संघ को हराना है तो उसे चंद्रमा पर स्थायी बेस बनाना होगा। इससे अमेरिका को प्रतिष्ठा मिलेगी और इससे देश को मनोवैज्ञानिक लाभ भी होगा। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि 12 लोगों की चौकी और उसे साल भर कार्यशील रखने में करीब 6 अरब डॉलर का खर्च आएगा। आज इसका मूल्यांकन करें तो यह 53 अरब डॉलर से अधिक होता है।

प्रोजेक्ट ए-119 था कोड नेम, परमाणु विस्फोट होता तो धरती पर भी आता नजर : इस खुफिया मिशन को प्रोजेक्ट ए-119 नाम दिया गया था। अंतरिक्ष की दौड़ में आगे निकलने के लिए अमेरिका ने मेक्सिको के कीर्टलैंड एयरफोर्स बेस पर स्थित एयरफोर्स डिविजन में इसे शुरू किया था। 1959 में ‘ए स्टडी ऑफ लूनर रिसर्च फ्लाइट्स‘ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिका ने चंद्रमा के टर्मिनेटर यानी सतह का वह हिस्सा जो सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होने वाले और अंधेरे वाले हिस्से के मध्य में परमाणु बम के विस्फोट की योजना बनाई थी। साथ ही विस्फोट को इस प्रकार किया जाना था, जिससे पृथ्वी से इसे नंगी आंखों से भी देखा जा सके। इसके लिए सेना की योजना इसमें सोडियम भरने की थी, जिससे विस्फोट के समय यह अधिक चमकीला नजर आए।

चांद पर कॉलोनी बसाने की भी थी योजना : जॉन लिखते हैं कि अमेरिकी वायुसेना चंद्रमा को सोवियत संघ और पूरी दुनिया पर प्रभुत्व जमाने के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी। यह योजना पहली बार 1999 में खगोलशास्त्री कार्ल सगन की जीवनी में सामने आई थी। सगन ने खुद बर्कले के प्रतिष्ठित मिलर इंस्टीट्यूट में इसके बारे में बताया था। उनके साथ ही भौतिक विज्ञानी डॉ. लियोनार्ड रिफेल से भी वायुसेना के अधिकारियों ने संपर्क साधा था। डेलीमेल के अनुसार रिफेल ने बताया था कि बम को कम से कम हिरोशिमा में इस्तेमाल परमाणु बम जितना बड़ा होना था। साथ ही जॉन ने लिखा है कि 1959 में अमेरिका की योजना चांद पर सैन्य बेस बनाने की भी थी, जिसका कोड नेम हॉरिजन था। इसका उद्देश्य 1966 तक 10-12 लोगों को घर देने के लिए स्थायी कॉलोनी बनाने की था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.