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अमेरिका तैयार कर रहा एक्स-रे बम, जो जैविक और रासायनिक हथियारों को नष्ट करने में होगा सक्षम

अमेरिकी रक्षा विभाग एक ऐसा मारक एक्स-रे बम बना रहा है जो बिना कोई नुकसान पहुंचाए अपना लक्ष्य भेदने में सक्षम होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 18 Jun 2018 03:20 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2018 03:56 PM (IST)
अमेरिका तैयार कर रहा एक्स-रे बम, जो जैविक और रासायनिक हथियारों को नष्ट करने में होगा सक्षम
अमेरिका तैयार कर रहा एक्स-रे बम, जो जैविक और रासायनिक हथियारों को नष्ट करने में होगा सक्षम

[जागरण स्पेशल]। अमेरिकी रक्षा विभाग एक ऐसा मारक एक्स-रे बम बना रहा है जो बिना कोई नुकसान पहुंचाए अपना लक्ष्य भेदने में सक्षम होगा। खास तौर पर इसका इस्तेमाल जैविक और रासायनिक हथियारों को नष्ट करने में किया जा सकेगा। इस गुप्त योजना पर 2015 से ही काम जारी है। हायपरियन टेक्नोलॉजी ग्रुप की मदद से इसे तैयार किया जा रहा है।

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खुफिया परियोजना
परियोजना के पहले चरण में इस प्रणाली का एक प्रायोगिक डिजायन तैयार किया जाएगा जो दूसरे चरण के तहत एक्स-रे हथियार के विकास का आधार बनेगा। हालांकि यह परियोजना काफी खुफिया है लेकिन 2015 में हाई पॉवर एक्स रे म्युनिशन टू अटैक एंड डिफीट वीपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन नामक जारी दस्तावेज से शुरुआती कार्यक्रम की जानकारी सामने आई।

क्यों है जरूरी
पारंपरिक हथियार प्रणालियां ऐसे हालात में नाकाफी साबित होती है जब बिना नुकसान किए सटीकता से लक्ष्य भेदने की बात सामने आती है। कई बार आतंकी या दुश्मन जैविक या रासायनिक हथियार ऐसी खास जगह छिपा कर रखते हैं जहां कोई भी बड़ी तबाही मचाने से हिचकिचाता है। यह स्थिति एक तरह से दुश्मन द्वारा मानव बंधक बनाए जाने जैसी हो जाती है। कोई भी सभ्य देश ऐसे में खुलकर हमला नहीं कर सकता। इन हालातों से पार पाने के लिए ही इस तकनीक पर भरोसा किया जा रहा है।

आतंकी मंसूबे का बन चुका है हिस्सा
2016 में ग्लेनडन स्कॉट क्रॉफर्ड को एक्स-रे हथियार बनाने के प्रयास में दोषी पाया गया था। क्रॉफर्ड की औद्योगिक-ग्रेड एक्स-रे मशीन को रिमोट कंट्रोल लेजर गन में बदलने की योजना थी। लेजर गन को पहले एक ट्रक में स्थापित किया जाता। फिर भीड़ भाड़ वाले इलाके में स्थित एक पार्किंग में ट्रक को खड़ा कर दिया जाता। ड्राइवर करीब आधा मील दूर जाकर रिमोट कंट्रोल से गन को एक्टिवेट कर देता। एक्टिवेट होते ही गन से विकिरण निकलता और हमले के शिकार लोग दो सप्ताह के भीतर ही मर जाते। हालांकि उसके मंसूबे सफल होते, उससे पहले ही एफबीआइ ने उसे धर दबोचा।

खतरे भी कम नहीं
यूएस आर्मी वॉर कॉलेज स्ट्रेटेजिक स्टडीज इंस्टीट्यूट (पेंसिल्वेनिया) के प्रोफेसर रॉबर्ट बंकर ने इस तकनीक की खामियों की ओर भी इशारा किया है। उनके अनुसार इसका इस्तेमाल इंसानों के खिलाफ भी किया जा सकता है। इससे होने वाले विकिरण से घातक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। कुछ विशेषज्ञ इसके आतंकियों के हाथों में जाने की आशंका को भी निर्मूल नहीं मानते। 


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