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श्रीलंका की सियासत में नया मोड़, सिरिसेन की पार्टी को छोड़ नई पार्टी में शामिल हुए राजपक्षे

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) से पांच दशक पुराना अपना नाता तोड़ लिया है।

By TaniskEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 05:31 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 11:53 PM (IST)
श्रीलंका की सियासत में नया मोड़, सिरिसेन की पार्टी को छोड़ नई पार्टी में शामिल हुए राजपक्षे
श्रीलंका की सियासत में नया मोड़, सिरिसेन की पार्टी को छोड़ नई पार्टी में शामिल हुए राजपक्षे

कोलंबो,प्रेट्र। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) से पांच दशक पुराना अपना नाता तोड़ लिया है। राजपक्षे ने रविवार को पिछले साल बनी श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) का दामन थाम लिया। पूर्व सेनाप्रमुख राजपक्षे के इस कदम से कयास लगाए जा रहे हैं कि वह अगले साल पांच जनवरी को होने वाले मध्यावधि चुनाव अपनी नई पार्टी के बूते लड़ेंगे ना कि राष्ट्रपति सिरिसेन के सहारे।

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राजपक्षे के पिता डॉन अल्विन राजपक्षे श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के संस्थापकों में रहे हैं। इस पार्टी की स्थापना 1951 में की गई थी। जबकि श्रीलंका पीपुल्स पार्टी की स्थापना पिछले साल राजपक्षे के समर्थकों द्वारा की गई थी। इस पार्टी ने फरवरी में हुए नगर निकाय चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए 340 सीटों में से दो-तिहाई पर कब्जा जमा लिया था। राजपक्षे 2005 से पूरे 10 साल तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रह चुके हैं। जनवरी, 2015 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें अप्रत्याशित रूप से उनके ही सहयोगी सिरिसेन से हार का मुंह देखना पड़ा था।

गत 26 अक्टूबर को सिरिसेन ने निर्वाचित प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को हटाकर राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने बीते शुक्रवार को संसद को भंग कर पांच जनवरी को चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी। इस कदम से यह स्पष्ट हो गया कि उनके द्वारा नियुक्त किए गए प्रधानमंत्री राजपक्षे के पास संसद में पर्याप्त बहुमत नहीं था।

संसद भंग करने के फैसले पर यूएन प्रमुख ने जताई चिंता

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने श्रीलंका की संसद भंग करने के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन के फैसले पर चिंता जताई है। उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करने और सियासी मतभेदों को संविधान के दायरे में सुलझाने पर जोर दिया है।


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