अमेरिका में चुनाव आयोग जैसी कोई संस्था नहीं, जानें फिर कैसे होता है अमेरिका में राष्ट्रपति चुने जाने का एलान
अमेरिका में भारत की तरह चुनाव आयोग जैसी कोई संस्था नहीं है। यही नहीं अमेरिका में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता नहीं करती। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुना कैसे जाता है। इससे जुडे़ सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़ें रिपोर्ट...
वाशिंगटन, एजेंसियां। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव संपन्न हो गया है। उसके नतीजे भी आ गए हैं। मीडिया रिपोर्ट में डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी जो बाइडन और कमला हैरिस को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचित घोषित कर दिया गया है। परंतु, आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दोनों के चुने जाने का औपचारिक एलान अगले साल छह जनवरी को किया जाएगा। इस बीच मतदान की प्रक्रिया कई चरणों से गुजरेगी। आखिर में सीनेट के अध्यक्ष होने के नाते मौजूदा उपराष्ट्रपति माइक पेंस जो बाइडन और कमला हैरिस के अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुने जाने का एलान करेंगे।
... ताकि कोई अयोग्य व्यक्ति ना बन पाए राष्ट्रपति
अमेरिका में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया बहुत जटिल है। इनका सीधे जनता चुनाव नहीं करती। अमेरिका के संस्थापकों ने ऐसी व्यवस्था बनाई है, ताकि कोई अयोग्य व्यक्ति गलती से भी राष्ट्रपति पद तक नहीं पहुंचने पाए। दुनिया के दूसरे लोकतांत्रिक देशों में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का चुनाव सीधे तौर पर पॉपुलर यानी लोकप्रिय मतों से होता है। लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। यहां कोई प्रत्याशी अगर पॉपुलर मतों से विजयी भी हो जाता है तो जरूरी नहीं कि वह राष्ट्रपति बन ही जाए।
अमेरिका में ऐसे चलती है चुनाव प्रक्रिया
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया में सभी 50 राज्यों, डिस्टि्रक्ट ऑफ कोलंबिया, सीनेट, प्रतिनिधि सभा, नेशनल आर्काइव और ऑफिस ऑफ फेडरल रजिस्टर से होकर गुजरती है। सबसे अहम भूमिका इलेक्टोरल कॉलेज की होती है। भारत की तरह अमेरिका में कोई चुनाव आयोग नहीं है। वहां, वाशिंगटन डीसी स्थित नेशनल आर्काइव कार्यालय ही राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों को प्रमाणित करता है।
चार महीने चलती है चुनावी प्रक्रिया
राष्ट्रपति चुनने की प्रक्रिया चार महीने तक चलती है। अमेरिका संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि हर चौथे साल में नवंबर के पहले मंगलवार को राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान होगा। लेकिन चुनाव की प्रक्रिया अक्टूबर महीने में ही शुरू हो जाती है। अमेरिका का पुरालेखपाल (अर्काविस्ट) प्रत्येक प्रांत के गवर्नर को पत्र भेजता है। इसमें इलेक्टोरल कॉलेज के लिए इलेक्टर्स चुनने की प्रक्रिया बताई जाती है।
इलेक्टर्स चुनने के लिए होता है मतदान
प्रत्येक प्रांच के गवर्नर अपने यहां इलेक्टोरल कॉलेज के इलेक्टर्स के लिए मतदान कराते हैं। मतदान के बाद सभी प्रांतों के गवर्नर इलेक्टोरल वोट की गणना कराते हैं। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसके प्रमाणपत्र को अमेरिका के पुरालेखपाल के पास भेजा जाता है।
इलेक्टर्स चुनते हैं राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति
इसके बाद प्रांतों की राजधानियों में इलेक्टोरल कॉलेज के इलेक्टर्स जुटते हैं और औपचारिक तौर पर राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनने के लिए मतदान करते हैं। इस मतदान का दिन भी तय है। दिसंबर के दूसरे बुधवार के बाद पहले सोमवार को यह मतदान होता है। इस साल 14 दिसंबर को मतदान होगा। प्रत्येक प्रांत के इलेक्टर्स छह वोट का सर्टिफिकेट तैयार करते हैं। रजिस्टर्ड डाक से इसे सीनेट के प्रमुख और अर्काविस्ट को भेजा जाता है। शेष चार प्रमाणपत्रों को राज्यों के अधिकारियों को भेजा जाता है।
कांग्रेस में होती है इलेक्टोरल वोट की गिनती
इसके बाद छह जनवरी, 2021 को इलेक्टोरल वोट की गिनती के लिए अमेरिकी संसद कांग्रेस के दोनों सदनों सीनेट और प्रतिनिधिसभा की संयुक्त बैठक बुलाई जाएगी। उसी दिन विजयी होने वाले प्रत्याशी को प्रमाणपत्र दिया जाएगा। चूंकि, सीनेट का अध्यक्ष उप राष्ट्रपति होता है, इसलिए वही राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करता है और उसका औपचारिक एलान करता है। इस साल मौजूदा उप राष्ट्रपति माइक पेंस इसका एलान करेंगे। हालांकि यह घोषणा औपचारिकता ही रह जाती है, क्योंकि मीडिया के जरिये पहले ही विजेता की जानकारी मिल जाती है।
कोई नतीजा नहीं निकलने पर प्रतिनिधि सभा चुनती है राष्ट्रपति
अगर ऐसी असाधारण स्थिति पैदा हो जाती है कि इलेक्टोरल कॉलेज से किसी प्रत्याशी का चयन नहीं होता है तो राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए प्रतिनिधि सभा की बैठक बुलाई जाती है। 1824 में इसी तरीके से जॉन क्विंसी एडम्स राष्ट्रपति चुने गए थे।
आपत्ति पर भी होता है मतदान
अगर कोई चुनाव पर आपत्ति करता है, तो उसके लिए उसे दोनों सदनों सीनेट और प्रतिनिधि सभा के एक-एक सदस्यों का समर्थन होना चाहिए। उसकी आपत्ति पर सदन के हर चैंबर में चर्चा होगी। इसके बाद आपत्ति को स्वीकार करने या खारिज करने के लिए हर चैंबर मतदान करेगा। अगर संसद के दोनों सदन आपत्ति को मंजूर करते हैं तो उस प्रत्याशी को मिले वोट को अलग कर दिया जाता है।
250 साल पुरानी है चुनावी प्रक्रिया
राष्ट्रपति चुनाव की यह जटिल प्रक्रिया 250 साल पहले बनाई गई थी, जो अमेरिका लोकतंत्र की नींव है। हालांकि, आधुनिक अमेरिका में कई लोग इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं। लेकिन यह प्रक्रिया बनी हुई है और इसी के जरिये 2020 में भी अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हुआ है।