weightlifting से बढ़ती है दिमाग़ की ताकत, इस अध्ययन में जुटाई गई अहम जानकारी, जानिए
एरोबिक एक्सरसाइज यानी दौड़ने उछल-कूद और घूमने आदि से मस्तिष्क में रक्त का संचार बढ़ता है और नए न्यूरॉन्स की संख्या बढ़ती है।
वाशिंगटन, न्यूयॉर्क टाइम्स। वेटलिफ्टिंग करने से न सिर्फ मांसपेशियां मजबूत होती हैं, बल्कि यह मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद हो सकती है। एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि वेटलिफ्टिंग करने से मस्तिष्क की ताकत तो बढ़ती ही है, साथ ही मस्तिष्क के भीतर की कोशिकाओं में भी बदलाव आता है, जिससे सोचने की क्षमता में वृद्धि होती है।
शोधकर्ताओं ने चूहों पर अध्ययन कर यह पता लगाया कि वेटलिफ्टिंग करने से चूहों का मस्तिष्क कैसे काम करता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने छोटे वजनी टुकड़ों को चूहों से बांध कर उन्हें सीढ़ी पर चढ़ने-उतरने के लिए छोड़ दिया। अध्ययन से पता चला कि ऐसा करने से स्मृति कमजोर (भूलने) होने की समस्या को कम किया जा सकता है।
दरअसल, एक उम्र के बाद लोगों के सोचने की क्षमता प्रभावित होने लगती है। कई बार ऐसा भी होता है कि लोग अपने परिजनों का नाम तक भूल जाते हैं। उन्हें यह तक याद नहीं रहता कि उन्होंने अपने घर की चाबियां कहां रखी हैं। पिछले कई अध्ययनों में शोधकर्ताओं ने यह बताया था कि इस समस्या से बचने के लिए एरोबिक एक्सरसाइज फायदेमंद हो सकती है।
एरोबिक एक्सरसाइज यानी दौड़ने, उछल-कूद और घूमने आदि से मस्तिष्क में रक्त का संचार बढ़ता है और नए न्यूरॉन्स की संख्या बढ़ती है। इससे दिमागी सूजन में कमी आती है। यदि इस सूजन का समय रहते इलाज नहीं किया जाता है तो कई बार इससे डिमेंशिया और अन्य तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार होने की संभावना बढ़ जाती है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि जिम जाने से मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अभी तक बहुत कम अध्ययन किए गए हैं और यह भी पता नहीं लग पाया था कि वेटलिफ्टिंग से मस्तिष्क की कोशिकाएं और इसकी कार्यप्रणाली कैसे प्रभावित होती है। शोधकर्ताओं का यह अध्ययन अल्पाइड साइकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।
इस तरह किया अध्ययन
कोलंबिया की मिसौरी यूनिवर्सिटी के शोधार्थी टेलर केल्टी ने बताया कि इस अध्ययन के लिए उन्होंने चूहों पर छोटे वजनी टुकड़ों को बांध दिया और 100 सेंटीमीटर लंबी सीढ़ी पर चढ़ने के लिए छोड़ दिया। उन्होंने उनकी हरकतों की निगरानी की। कुछ हफ्तों बाद शोधकर्ताओं ने चूहों की मांसपेशियों में वृद्धि देखी।
अगले कुछ दिनों के बाद शोधकर्ताओं ने उनके समूह में ऐसे चूहे मिला दिए जिनमें डिमेंशिया की बीमारी शुरुआती स्तर पर थी। उनके साथ भी वही प्रक्रिया दोहराई गई। पांच हफ्तों के इस अभ्यास के बाद सबको एक हल्की रोशनी की भूलभुलैया में छोड़ दिया गया।
इसमें पाया गया कि जो चूहे स्वस्थ थे वे एक बार में ही रास्ता समझ गए जबकि डिमेंशिया पीडि़त चूहे पहले तो लड़खड़ाए, फिर उन्होंने जल्द ही अपना रास्ता समझ लिया। शोधकर्ताओं के अनुसार उन चूहों की याददाश्त में आया बदलाव वेटलिफ्टिंग के कारण ही संभव हुआ।