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अगले 5 सालों में वैश्विक तापमान में होगी बढ़ोतरी, विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने जताई चिंता

विश्व मौसम विज्ञान संगठन कहा कि अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी रहेगी और यह अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 03:54 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 07:09 PM (IST)
अगले 5 सालों में वैश्विक तापमान में होगी बढ़ोतरी, विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने जताई चिंता

नई दिल्ली, (रॉयटर्स)। अगले 5 सालों में वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होती रहेगी। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने इस पर चिंता जताई है। दरअसल वैश्विक समझौते के तहत दुनिया के देशों ने दीर्घकालीन औसत तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तरों से 1.5 - 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया लंबी अवधि की तापमान वृद्धि सीमा 1.5 डिग्री को पार कर जाएगी। तापमान के इस स्तर को वैज्ञानिकों ने विनाशकारी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने के लिए निर्धारित किया है।

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डब्ल्यूएमओ के सचिव पेटेरि तालस कहते हैं यह तापमान के बढ़ने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। यह उस विशाल चुनौती को रेखांकित करता है जिसकी वजह से देशों ने पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान को 2 डिग्री के भीतर सीमित रखने का लक्ष्य रखा है। इसी समझौते के तहत देशों को ग्रीन हाउस गैसों में कटौती करने के लिए कहा गया था।

पेरिस जलवायु समझौता मूल रूप से वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने से जुड़ा है। साथ ही यह समझौता सभी देशों को वैश्विक तापमान बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश करने के लिए भी कहता है। तभी जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभावों से बचा जा सकता है। 

डब्ल्यूएमओ का कहना है कि 20 फीसदी संभावना है कि औसत सालाना तापमान 1.5 डिग्री के स्तर को साल 2020-2024 के बीच कभी भी छू लेगा। इस बीच, उन वर्षों में से प्रत्येक में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से कम से कम 1 डिग्री ऊपर होने की "संभावना" है। लगभग हर क्षेत्र इसका प्रभाव महसूस करेगा।

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जहां पिछले साल जंगलों में आग लगी थी और सैकड़ों एकड़ की भूमि बर्बाद हो गई थी, शायद वहां सामान्य से अधिक सूखा होगा। जबकि अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में बहुत बरसात हो सकती है। वहीं यूरोप में और अधिक तूफान आएंगे तो उत्तरी अटलांटिक में तेज गति में हवाएं चलेंगी।

दरअसल यह तापमान, बारिश और हवा के पैटर्न की अल्पकालीन अवधि के पूर्वानुमान मुहैया कराने के लिए डब्ल्यूएमओ के नए प्रयास का हिस्सा है। इसके जरिए देशों को यह जानने में मदद मिलेगी कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बदलाव हो रहा है। हालांकि, दुनिया शायद दीर्घकालीन 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि के स्तर को अगले एक दशक तक कम से कम नहीं छू पाएगी लेकिन डब्ल्यूएमओ की कोशिश है कि वह छोटी अविध की भविष्यवाणी देकर देशों को बड़े विनाश से बचा सके।  

जलवायु परिवर्तन की वजह से लगातार ग्लेशियरों के पिघलने की घटनाएं आती रहती हैं। शोधकर्ताओं ने ग्लेशियरों पर पड़ रहे प्रभाव और बर्फ पिघलने की दर आदि पर तमाम अध्ययन किए हैं। लेकिन, पहली बार नदियों में जमने वाली बर्फ पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किया गया है।

शोधकर्ताओं ने बताया है कि वैश्विक तापमान में एक प्रतिशत की बढ़ोतरी होने से नदियों में प्रत्येक वर्ष जमने वाली बर्फ छह दिन पहले ही पिघल जाएगी। इसके पर्यावरणीय प्रभाव के साथ ही आर्थिक प्रभाव भी देखने को मिलेंगे। नेचर जर्नल में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया है। 

अमेरिका की नार्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के एक पोस्टडॉक्टरल स्कॉलर जियाओ यांग ने कहा, 'हमने दुनियाभर में मौसमी जमने वाली नदियों को मापने के लिए 34 वर्षो तक सेटेलाइट द्वारा जुटाई गई करीब 40,000 तस्वीरों का अध्ययन किया। इस दौरान पाया गया कि सभी नदियों का 56 प्रतिशत भाग सर्दियों में जम जाता है।'


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