अंतरिक्ष यान कैसिनो ने शनि के वातावरण में गर्म गैसों के रहस्य से उठाया पर्दा, जानें इसका कारण
सूर्य से काफी दूर स्थित होने के बावजूद भी शनि बृहस्पति यूरेनस और नेप्च्यून ग्रहों के वायुमंडल का तापमान ज्यादा होना हमेशा से ही वैज्ञानिकों की उत्सुकता का विषय रहा है।
ह्यूस्टन, प्रेट्र। हमारे सौरमंडल के अन्य ग्रह- शनि, बृहस्पति, यूरेनस और नेप्च्यून के वायुमंडल की ऊपरी सतह पृथ्वी की तरह ही गर्म गैस से बनी है। सूर्य से काफी दूर स्थित होने के बावजूद भी इन ग्रहों के वायुमंडल का तापमान ज्यादा होना हमेशा से ही वैज्ञानिकों की उत्सुकता का विषय रहा है। अब वैज्ञानिकों शनि के वातावरण में गर्म गैसों के रहस्य से पर्दा उठा लिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी समेत अन्य ग्रहों के ऊपरी वातावरण के गर्म रहने का एक कारण इनके ध्रुवों पर मौजूद इलेक्ट्रिक करंट (विद्युत प्रवाह) है। इसी कारण लगभग सभी ग्रहों के ऊपरी वायुमंडल में विशाल गैसों का झुंड नजर आता है।
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के शोधकर्ताओं ने किया अध्ययन
शनि के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के शोधकर्ताओं ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अंतरिक्ष यान कैसिनी के आंकड़ों के अध्ययन किया। बता दें कि 'कैसिनी' ने ईधन समाप्त होने से पहले लगभग 13 वर्षों से शनि का अध्ययन किया था। नेचर एस्ट्रोनॉमी नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, इस इलेक्ट्रिक करंट के कारण सौर हवाओं और शनि के चंद्रमाओं से आवेशित कणों के बीच परस्पर क्रिया से शुरू होती है, जिससे सूर्योदय के समय वायुमंडल के ऊपरी हिस्से का तापमान बढ़ जाता है। अध्ययन में बताया गया है कि यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही है जैसे पृथ्वी पर सूर्य के उदय होने के साथ-साथ तापमान बढ़ता चला जाता है।
ऐसे गर्म होती हैं गैसें
यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के शोधकर्ताओं ने कहा 'शनि के वातावरण की अनसुलझी तस्वीर को बहुत हद तक अब सुलझा लिया गया है। हम यह समझने में सफल रहे हैं किस तरह सूर्योदय के समय आवेशित धाराएं शनि के वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में हवाओं को बहाकर वहां गर्मी पैदा करती हैं। इस ग्रह का वायु संचार इस ऊर्जा को बांट देता है और जितना सूर्य किरणें इसे गर्म कर सकती हैं उससे यहां तापमान दोगुना गर्म जो जाता है।
तापमान और मौसम की मिलेगी जानकारी
कैसिनी की अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग स्पेक्टोग्राफ टीम के सदस्य टॉमी कोस्कि ने कहा, 'ये नतीजे ग्रहों के ऊपरी वायुमंडल को समझने के लिए बहुत अहम हैं। इससे हमें सौरमंडल के अन्य ग्रहों के वायुमंडल के ऊपरी हिस्से के तापमान और मौसम को समझने में भी मदद मिलेगी।
दो बार बढ़ाया गया था मिशन
बता दें कि कैसिनी को 1997 में 15 अक्टूबर को लांच किया गया था और 2004 में 30 जून को इसने शनि की कक्षा में प्रवेश किया था। कैसिनी का मिशन चार साल का निर्धारित किया गया था। लेकिन इसके काम को देखते हुए इसका मिशन दो बार बढ़ाया गया था। वैज्ञानिकों का मानना था कि ईंधन खत्म हो चुके इस यान को अगर यूं ही छोड़ दिया जाता तो उसके शनि के चंद्रमा टाइटन या फिर पॉलीड्यूसेस से टकराने की आशंका थी। लेकिन वे ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि शनि के इन दोनों चंद्रमाओं पर जीवन की प्रबल संभावनाएं हैं जिसे किसी भी तरह का नुकसान पहुंचाने का खतरा वे नहीं उठाना चाहते थे। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इसे शनि के वातावरण में ही नष्ट करने का फैसला किया था।