दुनियाभर में तेज गति से Internet मुहैया कराने के लिए Space X ने अंतरिक्ष में भेजे 60 Satellite
दुनियाभर में तेज गति से इंटरनेट सर्विस प्रोवाइड करने के लिए अब स्पेस एक्स एजेंसी ने अंतरिक्ष में 60 उपग्रह भेजे हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कंपनियां अब दुनिया भर में तेज गति से इंटरनेट सेवा मुहैया कराने की दिशा में काम कर रही है। इसी दिशा में कदम आगे बढ़ाते हुए स्पेस एक्स नामक एजेंसी अंतरिक्ष में उपग्रह भेज रही है। इन उपग्रहों के जरिए स्पेस एक्स पूरी दुनिया में तेज गति वाली इंटरनेट सेवा मुहैया कराने का काम करेगी।
इन उपग्रहों की एक खास बात ये भी है कि इस पर आने वाले खर्च को कम करने के लिए भी स्पेस एक्स ने एक नया तरीका निकाला है। अब वो कंपनी के पुराने रॉकेट के कलपुर्जों का इस्तेमाल करके उनको अंतरिक्ष में भेज रही है। दरअसल स्पेस एक्स ने अगले साल उत्तरी अमेरिका और कनाडा में सेवा शुरू करने की योजना बनाई है। इसके बाद अब दुनिया भर में आबादी वाले इलाकों तक इंटरनेट पहुंचाने के लिए इस तरह 24 बार उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
एक साथ 60 छोटे-छोटे उपग्रह
स्पेस एक्स की ओर से इस बार 60 छोटे छोटे उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए हैं। इनका नाम फाल्कन रॉकेट रखा गया है। इन फाल्कन रॉकेट की यह चौथी अंतरिक्ष यात्रा है। कॉम्पैक्ट फ्लैट पैनल वाले इन छोटे छोटे उपग्रहों का वजन महज 260 किलोग्राम है। इससे पहले साल 2019 के मई माह में 60 और उपग्रह भेजे गए थे। ये नए भेजे गए उपग्रह भी अंतरिक्ष में जा कर उनसे जुड़ जाएंगे।
हजारों उपग्रह भेजने की तैयारी
स्पेस एक्स के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में हजारों ऐसे उपग्रहों को भेजना चाहते हैं। उनकी ऐसी प्लानिंग है और वो इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। दुनिया भर में आबादी वाले इलाकों तक इंटरनेट पहुंचाने के लिए इस तरह 24 बार उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा, उसके बाद इन सभी की नेटवर्किंग हो जाएगी तब नेटवर्क की समस्या का समाधान हो जाएगा।
बार-बार इस्तेमाल में लाए वाले बूस्टर का हो रहा उपयोग
स्पेस एक्स कंपनी अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले रॉकेट में ऐसे बूस्टर इस्तेमाल कर रही है जिन्हें बार बार उपयोग में लाया जा सकता है। इस बार जो रॉकेट भेजे गए हैं उनमें लगे बूस्टर का इस्तेमाल पहले भी किया जा चुका है, ये इन बूस्टरों को इस्तेमाल किए जाने का चौथा मौका है। कंपनी ने जब अंतरिक्ष में ये उपग्रह भेजे थे तो उनका बूस्टर वापस आ गया था। ये बूस्टर वापस आकर अटलांटिक महासागर में तैरते प्लेटफॉर्म पर आकर गिरे थे, इसे देखकर कंपनी के कर्मचारियों ने काफी खुशी जाहिर की थी।
एक बूस्टर का 10 बार हो सकेगा इस्तेमाल
कंपनी के लॉच कमेंटेटर का कहना है कि इन बूस्टरों को इस तरह से बनाया गया है कि इन्हें 10 बार इस्तेमाल किया जा सकता है। इस बार स्पेस एक्स ने जो उपग्रह भेजे हैं उनमें पहली बार में इस्तेमाल हुए नोज कोन (रॉकेट का ऊपरी हिस्सा) का भी इस्तेमाल किया गया है। कैलिफोर्निया की ये कंपनी खर्च को कम करने के लिए इस्तेमाल हुए पुर्जों का दोबारा से इस्तेमाल करती है।
नए भेजे गए उपग्रह अंतरिक्ष में अधिक ऊंचाई पर लगाएंगे चक्कर
रॉकेट के ऊपरी हिस्से में भीतर रखे नए उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद और ज्यादा ऊंचाई पर चक्कर लगाएंगे। स्पेस एक्स एजेंसी का कहना है कि 60 में से एक उपग्रह के साथ कोई समस्या हो सकती है, ये भी संभव है कि वो 280 किलोमीटर ऊंची कक्षा के पार ना जा सके। यदि ऐसी स्थिति पैदा होती है तो उस खराब उपग्रह को वापस पृथ्वी के वातावरण में आने के निर्देश दिए जाएंगे और फिर यह बिना नुकसान पहुंचाए खुद ही जलकर खत्म हो जाएगा।
हर उपग्रह ऑटोमैटिक
हर उपग्रह में एक स्वचालित (ऑटोमैटिक) मशीनें लगी हुई हैं जिससे कि वह अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद वहां फैले कचरे से खुद को बचा सके। इसी साल सितंबर माह में यूरोपीय स्पेस एजेंसी को अपना उपग्रह स्टारलिंक सेटेलाइट के रास्ते में आने से बचाने के लिए उसकी जगह से हटाना पड़ा था। बाद में स्पेस एक्स की ओर से बताया गया था कि जो भी समस्या थी उसका समाधान कर दिया गया है।
पूरी दुनिया में ब्रॉडबैंड इंटरनेट कवरेज
जानकारी के अनुसार स्पेस एक्स और दूसरी कई कंपनियां पूरी दुनिया में ब्रॉडबैंड इंटरनेट का कवरेज देना चाहती हैं। इनमें जेफ बेजोस की एमेजॉन और वनवेब नामक कंपनियां प्रमुख हैं। इलॉन मस्क नामक कंपनी बहुत दिनों से स्टारलिंक से होने वाली कमाई से मंगल ग्रह की यात्रा करने की योजना बना रहा है। स्पेसएक्स ऐसे रॉकेट बनाने की योजना बना रहा है।
ये हैं कुछ प्रमुख सर्च इंजन
इंटरनेट आर्काइव (archive.org)
archive.org एक इंटरनेट आर्काइव सर्च इंजन है। इसके जरिए कोई भी ये पता लगा सकता हैं कि कोई वेबसाइट 1996 के बाद से कैसे बदली है। किसी डोमेन के इतिहास में अगर आपकी दिलचस्पी है तो ये आपके काम आ सकता है। आप यहां जाकर उसके बारे में अन्य डिटेल पता कर सकते हैं।
एओएल.कॉम (SOL.COM)
एओएल (SOL.COM)भी दुनिया के टॉप 10 सर्च इंजनों में शामिल है। हालांकि इस साइट का इतना अधिक प्रचार प्रसार नहीं है इस वजह से अधिकतर लोग अभी इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। अमेरिका ऑनलाइन यानि एलओएल के नेटवर्क में हफिंगटनपोस्ट.कॉम और टेकक्रंच.कॉम जैसी वेबसाइटें शामिल हैं। वहां पर इनका अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है।
गूगल (GOOGLE.COM)
आज के समय में गूगल (GOOGLE.COM) किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यदि किसी को कोई भी चीज सर्च करनी होती है तो वो सबसे पहले गूगल पर जाकर ही सर्च करता है। आज दुनिया भर में इंटरनेट सर्च के 64 फीसदी लोग किसी भी चीज को गूगल पर ही सर्च करते हैं। उनको वहीं से उसका रिजल्ट मिलता है। क्योंकि दूसरे किसी सर्च इंजन के बारे में अभी यहां उतनी जागरूकता नहीं है।
बिंग (BING)
माइक्रोसॉफ्ट ने भी एक सर्च इंजन लांच किया मगर अभी तक बाजार में वो अपनी इतनी पहचान नहीं बना पाया जितनी गूगल की बनी हुई है। माइक्रोसॉफ्ट के सर्च इंजन का नाम बिंग है। फिलहाल बिंग और गूगल के बीच मार्केट में 43 फीसदी का फासला बना हुआ है। माइक्रोसॉफ्ट ये कोशिश करने में लगा हुआ है कि वो लोगों को ये यकीन दिला सके कि बिंग गूगल से बेहतर है मगर अभी तक उसको कामयाबी नहीं मिली है।
याहू (YAHOO)
याहू भी एक बड़ा सर्च इंजन है, इसका भी लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। ये भी एक लोकप्रिय ईमेल सर्विस प्रोवाइडर है। फिलहाल सर्च इंजन के मामले में याहू तीसरे नंबर पर है।
आस्क.कॉम (ASK.COM)
ये भी एक तरह का सर्च इंजन है। इस साइट पर जाकर लोग किसी भी तरह का सवाल पूछ सकते हैं। लगभग तीन प्रतिशत लोग अपने सवाल आस्क.कॉम (ASK.COM)से पूछते हैं। यह सर्च इंजन सवाल-जवाब वाले फॉर्मेट पर आधारित है, जहां जवाब अन्य यूजर देते हैं।