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सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर किशोरों का समय बिताने में अवसाद के बढ़ने का कोई सीधा संबंध नहीं

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने लगाया पता मानसिक स्वास्थ्य पर कई कारकों का पड़ता है प्रभाव कोई एक चीज अवसाद या चिंता का कारण नहीं बन सकती।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 24 Oct 2019 03:23 PM (IST)Updated: Thu, 24 Oct 2019 03:23 PM (IST)
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर किशोरों का समय बिताने में अवसाद के बढ़ने का कोई सीधा संबंध नहीं
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर किशोरों का समय बिताने में अवसाद के बढ़ने का कोई सीधा संबंध नहीं

वाशिंगटन, प्रेट्र। समय के साथ सोशल नेटवर्किंग साइट्स बेहद लोकप्रिय हो चुकी हैं। कुछ अध्ययन इनके अधिक प्रयोग को लेकर चिंता भी जता चुके हैं। उनका कहना है कि इनके बहुत अधिक इस्तेमाल से अवसाद, चिंता आदि के शिकार हो सकते हैं। अब एक नवीन अध्ययन में इसके विपरीत परिणाम सामने आए हैं। इस अध्ययन में बताया गया है कि फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर समय बिताने का किशोरों में चिंता या अवसाद के बढ़ने से कोई सीधा संबंध नहीं है।

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अमेरिका स्थित ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। इसमें उन्होंने पाया कि किशोरों में 2012 से अब तक सोशल नेटवर्किंग साइट्स को दिए जाने वाले समय में काफी वृद्धि हुई है और यह लगातार जारी है। यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर साराह कोइने के मुताबिक, हमने करीब आठ साल यह पता लगाने में लगाए कि सोशल मीडिया पर समय बिताने का किशोरों में अवसाद से क्या संबंध है। हम अपने अध्ययन में यह पता लगाना चाहते थे कि क्या सोशल मीडिया को दिए जाने वाला समय बढ़ाने से किशोरों में अवसाद बढ़ता है? और यदि वे सोशल मीडिया को कम समय देते हैं तो क्या उससे उनमें असवाद कम होता है? इनका उत्तर है, ना। हमारा अध्ययन स्पष्ट करता है कि सोशल मीडिया पर समय बिताने का किशोरों में चिंता या अवसाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य पर कई कारकों का प्रभाव पड़ता है। कोई एक वजह अवसाद या चिंता का कारण नहीं बन सकती है। यह अध्ययन कंप्यूट्र्स इन ह्यूमन बिहेवियर नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि केवल सोशल मीडिया पर समय बिताना ही किशोरों में अवसाद या चिंता बढ़ने का कारण नहीं है।

कोइने के मुताबिक, सोशल मीडिया पर केवल समय ही महत्वपूर्ण फैक्टर नहीं है। उदाहरण के तौर पर दो किशोर सोशल मीडिया पर एक समान समय बिताते हों, लेकिन संभव है कि इससे उन पर अलग-अलग प्रभाव पड़े। यह इस पर भी निर्भर करता है कि दोनों किशोर सोशल मीडिया का प्रयोग किस तरह से कर रहे हैं।

इस तरह किया अध्ययन शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में करीब 500 किशोरों को शामिल किया, जिनकी उम्र 13 साल थी। आठ वर्ष के अध्ययन के दौरान सालाना इनसे एक प्रश्नावली भरवाई जाती थी। इनसे पूछा जाता था कि आप सोशल मीडिया पर कितना समय बिताते हैं। साथ ही इनमें अवसाद और चिंता के स्तर को जानने के लिए कई अन्य प्रश्न शामिल होते थे। इसके बाद उनके सवालों का विश्लेषण कर डाटा तैयार किया गया।

अध्ययन में सामने आया कि 13 साल की उम्र में किशोर रोजाना औसतन 31 से 60 मिनट सोशल मीडिया पर बिताते थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि सोशल मीडिया पर बिताया जाने वाला समय उम्र के साथ लगातार बढ़ता गया। जब वह 20 साल के हुए तो यह समय दो घंटे से भी अधिक हो गया। अध्ययन में सामने आया कि सोशल मीडिया पर समय बढ़ने से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि इससे मानसिक स्वास्थ्य कैसा होगा। एक साल बाद किशोरों की मानसिक स्थिति वर्तमान से बिल्कुल अलग हो सकती है और इसके लिए केवल सोशल मीडिया को दोष नहीं दे सकते।


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