अाप जो दवा ले रहे हैं हो सकता है नकली हो, अब मिनटों में हो जाएगी पहचान
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनियाभर में सभी तरह की दवाओं में करीब दस फीसद के नकली होने का अनुमान है।
वाशिंगटन(प्रेट्र)। वैज्ञानिकों ने नकली एंटीबायटिक दवाओं की जांच के लिए एक पेपर टेस्ट विकसित किया है। इस जांच से चंद मिनटों में ही नकली दवा की पहचान की जा सकती है। नकली या घटिया दवा होने पर पेपर का रंग लाल हो जाएगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनियाभर में सभी तरह की दवाओं में करीब दस फीसद के नकली होने का अनुमान है। इनमें 50 फीसद तक एंटीबायटिक दवाएं हो सकती हैं। नकली या निम्न गुणवत्ता की एंटीबायटिक दवाओं से ना सिर्फ रोगी की जान खतरे में पड़ सकती है बल्कि दूसरी समस्याएं भी खड़ी हो सकती हैं।
इस समस्या से निपटने के लिए अमेरिका की कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह आसान और किफायती तरीका ईजाद किया है। पेपर आधारित इस जांच से यह पता लगाया जा सकता है कि एंटीबायटिक दवा सही है या उसमें कोई मिलावट की गई है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
नकली दवा के कारोबारियों के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क पर नकेल कसने के लिए सरकारें दूसरे देशों के साथ सहयोग कर रही है हैं। यूरोपीय संघ भी बड़ी सक्रियता से नकली दवाओं के बाजार पर नकेल डालने की कोशिश में है। 2010 में सभी दवाओं की पैकिंग के लिए एक नए दिशानिर्देश बनाए गए जिसके तहत इन पैकेटों पर एक सिक्योरिटी कोड डालना जरूरी कर दिया गया। इसके जरिए हर पैकेट की पहचान की जा सकती है और तुरंत इसे बनाने वाले तक पहुंचा जा सकता है। इस योजना को अभी कुछ फार्मेसियों के साथ मिल कर काम करना है। इनमें ऑनलाइन फार्मेसी भी शामिल हैं।
घातक नकली दवाएं
मलेरिया, दिल की बीमारी, ब्लड प्रेशर यहां तक कि एचआईवी के इलाज के लिए भी अवैध तरिके से दवा खरीदी जा रही है। कई बार यह दवा असली न हो कर नकली होती है। इसके अलावा इन दवाओं को एक साथ बहुत असुरक्षित तरीके से रखा जाता है। नकली दवा बनाने वाले अपने लैब में बहुत कम ध्यान रखते हैं और लैब के नमूने बताते है कि कई बार इनमें चूहे की लेड़ी जैसी चीजें भी मिली होती हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1990 के मध्य में कोई 2500 लोग दिमागी बुखार की वैक्सीन लेने के तुरंत बाद मर गए थे।