कई प्रकार के फ्लू वायरसों से बचाव करेगी यूनिवर्सल फ्लू वैक्सीन
चूहों पर किए गए परीक्षण में यह वैक्सीन कई प्रकार के फ्लू वायरसों से बचाव में खरी पाई गई। इसमें यूनिवर्सल फ्लू वैक्सीन की संभावना दिखी है।
नई दिल्ली [प्रेट्र]। वैज्ञानिकों ने एक संभावित यूनिवर्सल इंफ्लुएंजा वैक्सीन तैयार की है। यह कई वायरसों से लोगों का बचाव कर सकती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, फ्लू के वायरसों के खिलाफ हेमग्लुटिनिन (एचए) स्टॉक नामक वैक्सीन की एंटीबॉडी प्रतिक्रिया मजबूत पाई गई है। चूहों पर किए गए परीक्षण में यह वैक्सीन कई प्रकार के फ्लू वायरसों से बचाव में खरी पाई गई। इसमें यूनिवर्सल फ्लू वैक्सीन की संभावना दिखी है। इस वैक्सीन को जीवन में एक या दो बार ही लेने की जरूरत पड़ेगी। यह मौजूदा सीजनल फ्लू वैक्सीन की तरह नहीं है। अमेरिका की पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ड्रयू वाइसमैन ने कहा, ‘इस वैक्सीन में वह क्षमता पाई गई है जो अन्य फ्लू वैक्सीन में नहीं दिखाई दी है।’
इंफ्लुएंजा वायरस से मुकाबला करेगी नई नैनोपार्टिकल वैक्सीन
वैज्ञानिकों को इंफ्लुएंजा वायरस से मुकाबले में बड़ी सफलता मिली है। उन्होंने एक ऐसी नई नैनोपार्टिकल वैक्सीन विकसित की है जो प्रभावी रूप से इंफ्लुएंजा ए वायरस से बचाव कर सकती है। इससे संक्रामक बीमारियों के खिलाफ यूनिवर्सल वैक्सीन तैयार करने की उम्मीद भी बढ़ी है। शोधकर्ताओं के अनुसार, पेप्टाइड से निर्मित इस वैक्सीन में इंफ्लुएंजा वायरस से मुकाबला करने की भरपूर संभावना पाई गई है। इस पेप्टाइड में दो या ज्यादा अमीनो एसिड एक कड़ी से जुड़े होते हैं। इसका टीकाकरण त्वचा के जरिये एक घुलनशील माइक्रोनिडिल पैच से किया जाता है।
इंफ्लुएंजा के वायरस एवं बीमारी
सन् 1933 में स्मिथ, ऐंड्रयू और लेडलो ने इंफ्लुएंजा के वायरस-ए का पता पाया। फ्रांसिस और मैगिल ने 1940 में वायरस-बी का आविष्कार किया और सन् 1948 में टेलर ने वायरस-सी को खोज निकाला। इनमें से वायरस-ए ही इंफ्लुएंजा के रोगियों में अधिक पाया जाता है। ये वायरस गोलाकार होते हैं और इनका व्यास 100 म्यू के लगभग होता है। रोग की उग्रावस्था में श्वसनतंत्र के सब भागों में यह वायरस उपस्थित पाया जाता हैं। बलगम और नाक से निकलने वाले स्राव में तथा थूक में यह सदा उपस्थित रहता है, किंतु शरीर के अन्य भागों में नहीं। नाक और गले के प्रक्षालनजल में प्रथम से पांचवें और कभी-कभी छठे दिन तक वायरस मिलता है। इन तीनों प्रकार के वायरसों में उपजातियाँ भी पाई जाती हैं।