Move to Jagran APP

जल्दी जागने से कम होता है अवसाद का खतरा, वैज्ञानिकों ने किया 8.4 लाख लोगों पर अध्ययन

रात को जल्दी सोने और सुबह जल्दी जागने के कई फायदे गिनाए जाते रहे हैं। अब एक हालिया शोध से सामने आया है कि यदि आप सुबह में एक घंटा जल्दी जाग जाते हैं तो अवसाद का जोखिम 23 फीसद तक कम हो सकता है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 29 May 2021 08:06 PM (IST)Updated: Sat, 29 May 2021 11:49 PM (IST)
जल्दी जागने से कम होता है अवसाद का खतरा, वैज्ञानिकों ने किया 8.4 लाख लोगों पर अध्ययन
सुबह एक घंटा जल्दी जगने से अवसाद का जोखिम 23 फीसद तक कम हो सकता है।

वाशिंगटन, एएनआइ। रात को जल्दी सोने और सुबह जल्दी जागने के कई फायदे गिनाए जाते रहे हैं। अब एक हालिया शोध से सामने आया है कि यदि आप सुबह में एक घंटा जल्दी जाग जाते हैं तो अवसाद का जोखिम 23 फीसद तक कम हो सकता है। यह शोध अध्ययन जेएएमए साइकाइअट्री नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

loksabha election banner

8.4 लाख लोगों पर अध्‍ययन

यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बाउल्डर और ब्रॉड इंस्टीट्यूट ऑफ एमआइटी एंड हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने करीब 8.4 लाख लोगों पर किए गए अध्ययन के निष्कर्ष में बताया है कि इस बात के ठोस प्रमाण मिले हैं कि व्यक्ति की सोने की प्रवृत्ति से अवसाद का जोखिम प्रभावित होता है।

मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित

इस अध्ययन के जरिये पहली बार यह भी पता करने की कोशिश की गई है कि मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लिए कितना कम या ज्यादा बदलाव की जरूरत होती है। महामारी के इस दौर में दिनचर्या में आए बदलाव की वजह से भी इस अध्ययन के निष्कर्ष काफी अहम साबित हो सकता है।

सोने के समय और मूड के बीच

शोध की मुख्य लेखिका सेलिन वेट्टर का कहना है कि हम यह बात तो पहले से जानते हैं कि सोने के समय और मूड के बीच संबंध होता है, लेकिन डाक्टरों से यह सवाल आते रहे हैं कि लोगों में दिखने योग्य फायदे के लिए सोने और जागने के समय को कितना पीछे करना चाहिए। हमने पाया है कि यदि हम एक घंटा की भी जल्दी करें तो अवसाद के जोखिम पर उसका उल्लेखनीय असर होता है।

मूड डिसऑर्डर से बिगड़ता है पैटर्न

पूर्व के अध्ययनों में पाया गया है कि देर रात तक जागने वाले लोग कितनी भी देर सोएं, उनमें अवसाद का जोखिम जल्दी जागने वाले लोगों से दोगुना होता है। लेकिन मूड डिसऑर्डर से सोने का पैटर्न बिगड़ता है। शोधकर्ताओं के लिए यह पता करना कठिन रहा है कि आखिर ऐसा होता क्यों है।

जल्‍द जगना फायदेमंद

साल 2018 में वेट्टर ने 32 हजार नर्सों पर किए एक व्यापक और चार साल के दीर्घकालिक अध्ययन में बताया था कि जल्दी जागने वाली नर्सों में अवसाद होने का खतरा 27 फीसद तक कम रहा। लेकिन यह सवाल बना रहा कि जल्दी जागने का मतलब क्या है?

क्या सोने के समय में बदलाव जरूरी है

सवाल यह भी था कि क्या सोने के समय में बदलाव वाकई जरूरी है और यदि ऐसा है तो यह बदलाव कितना होना चाहिए। इसका उत्तर खोजने के लिए एक अन्य शोधकर्ता इलियास डगलस ने डीएनए टेस्टिंग के लिए यूके बायोबैंक के डाटा का उपयोग किया। उन्होंने इस संबंध में कारण और प्रभाव की गुत्थी सुलझाने के लिए आनुवंशिक आधार पर अध्ययन किया।

जन्म से ही सेट हो जाते हैं जीन

इलियास डगलस के मुताबिक, हमारे जीन जन्म के समय से ही सेट हो जाते हैं, जिसका प्रभाव बना रहता है। 340 से ज्यादा सामान्य जीनेटिक वैरिएंट जो 'क्लॉक जीन' पीईआर 2 के रूप में जाने जाते हैं, व्यक्तियों के क्रोनोटाइप (किसी खास समय में सोने की प्रवृत्ति) की 12-42 फीसद तक व्याख्या करते हैं। इसके लिए किए गए प्रयोग के आधार पर औसत शयन मध्यमान का समय तड़के तीन बजे आया। मतलब वे रात को 11 बजे सो कर सुबह छह बजे उठते थे।

ऐसे कम कर सकते हैं जोखिम

शोधकर्ताओं ने इस जानकारी का इस्तेमाल एक अलग सैंपल पर उनमें अवसाद का पता लगाने के लिए किया। इसमें पाया गया कि सोने और जागने के मध्यमान समय में एक घंटा की जल्दी से अवसाद का खतरा 23 फीसद तक कम रहा।

देर से सोना भी खतरनाक

निष्कर्ष यह कि यदि कोई व्यक्ति सामान्य रूप से रात को एक बजे सोता है, वह यदि रात को 12 बजे सो कर उतनी ही देर नींद ले तो उसमें अवसाद का जोखिम 23 फीसद और यदि 11 बजे सो जाए तो जोखिम 40 फीसद तक कम हो सकता है। हालांकि इसमें यह नहीं बताया गया कि क्या पहले से ही जल्दी जागने वाले लोगों को भी ऐसा ही फायदा मिलेगा। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.