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बार-बार आहार बदलने से स्वास्थ्य पर पड़ता है नकारात्मक प्रभाव, पढ़ें अध्ययन में सामने आई बातें

साइंस एडवांसेज नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने फलों का रस चूसने वाली मक्खियों (ड्रोसोफिलिया मेलानोगास्टर) को कुछ दिनों तक संतुलित आहार खिलाया।

By Nitin AroraEdited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 08:20 AM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 08:20 AM (IST)
बार-बार आहार बदलने से स्वास्थ्य पर पड़ता है नकारात्मक प्रभाव, पढ़ें अध्ययन में सामने आई बातें
बार-बार आहार बदलने से स्वास्थ्य पर पड़ता है नकारात्मक प्रभाव, पढ़ें अध्ययन में सामने आई बातें

वॉशिंगटन, पीटीआइ। संतुलित आहार के बाद अचानक रिच डाइट (अत्यधिक प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट वाला आहार) का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे जीवन प्रत्याशा में भी कमी आ सकती है। ब्रिटेन के शेफील्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक फलों पर बैठने वाली मक्खियों पर किया गया यह शोध लोगों के बूढ़ा होने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने पर एक नई अंतरदृष्टि प्रदान करता है।

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'साइंस एडवांसेज' नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने फलों का रस चूसने वाली मक्खियों (ड्रोसोफिलिया मेलानोगास्टर) को कुछ दिनों तक संतुलित आहार खिलाया। इसके बाद अचानक उन्हें रिच डाइट दी जाने लगी। वैज्ञानिकों ने देखा कि इससे मक्खियों का जीवनकाल कम हो गया। साथ ही उन्होंने उन मक्खियों की तुलना में कम अंडे दिए जिन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में रिच डाइट का सेवन किया है। 

नया आई स्कैन बच्चों में ऑटिज्म का पता लगाने में मददगार

शोधकर्ताओं ने एक नया आई-स्कैन विकसित किया है, जिसके माध्यम से बच्चों में ऑटिज्म की पहचान करने में मदद मिल सकती है। ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है। इस रोग से पीडि़त बच्चों का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे होता है। 'आटिज्म एंड डेवलपमेंट डिसऑर्डर' जर्नल में छपे अध्ययन के अनुसार, आई-स्कैन हाथ से पकड़ा जाने वाला उपकरण है, जिसका प्रयोग करते समय किसी तरह का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। इस उपकरण के माध्यम से रेटिना में सूक्ष्म विद्युत संकेतों के पैटर्न का पता लगाया जाता है।

खास बात यह है कि यह बच्चों के ऑटिज्म स्पैक्ट्रम में अलग-अलग होते हैं। दरअसल, रेटिना मस्तिष्क का विस्तार है, जो तंत्रिका ऊतक से बना है और ऑप्टिक तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क से जुड़ा है। इसलिए ऑटिज्म का पता लगाने के लिए यह आदर्श स्थान है। ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों समेत शोधकर्ताओं के दल ने पांच से 21 साल तक की उम्र के 180 लोगों पर इस स्कैन का परीक्षण किया। उन्होंेंने इसे बच्चों में ऑटिज्म का पता लगाने के लिए उपयोगी पाया। 


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