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नई तकनीक से सस्ता होगा पानी साफ करना, विषाक्त भारी धातु आयनों को हटाया जा सकता है आसानी से

पानी को साफ करने के लिए कई तरह के नैनोकार्बन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके जरिए पानी से डाई गैसों कार्बनिक यौगिकों और जहरीले धातु आयनों को सोख लिया जाता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 23 Mar 2020 07:39 PM (IST)Updated: Mon, 23 Mar 2020 07:40 PM (IST)
नई तकनीक से सस्ता होगा पानी साफ करना, विषाक्त भारी धातु आयनों को हटाया जा सकता है आसानी से
नई तकनीक से सस्ता होगा पानी साफ करना, विषाक्त भारी धातु आयनों को हटाया जा सकता है आसानी से

वाशिंगटन, एएनआइ। स्वच्छ पानी के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है। इसके इस्तेमाल से नैनोकार्बन की क्षमता में बढ़ोतरी होती है जिससे पानी से विषाक्त भारी धातु आयनों को आसानी से हटाया जा सकता है। यह नई तकनीक पूरी दुनिया में साफ पानी पहुंचाने के प्रयास में मदद कर सकती है। यह अध्ययन एसीएस अप्लाइड नैनो मैटेरियल जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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दरअसल, पानी को साफ करने के लिए कई तरह के नैनोकार्बन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके जरिए पानी से डाई, गैसों, कार्बनिक यौगिकों और जहरीले धातु आयनों को सोख लिया जाता है। ये नैनोकार्बन आण्विक आकर्षण बलों के माध्यम से अपनी सतहों से सीसा और पारे जैसे भारी धातु आयनों को भी सोख सकता है। लेकिन यह आकर्षण बल काफी कम होता है इसलिए ये अपने दम पर ज्यादा कुछ नहीं कर पाते हैं। इसी को देखते हुए सोखने की क्षमता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक नैनोकणों में अणुओं को जोड़ने पर विचार कर रहे हैं। यह अमीनो समूह के तरह किया जाएगा जो भारी धातुओं के साथ मजबूत रासायनिक बंधन बनाते हैं। वे धातु आयन सोखने के लिए नैनोकार्बन पर उपलब्ध सभी सतहों का उपयोग करने के तरीके खोजने की कोशिश कर रहे हैं, जिनमें आंतरिक छिद्र भी शामिल हैं। इससे एक समय में अधिक धातु आयनों को सोखने की उनकी क्षमता बढ़ जाएगी।

नई विधि विकसित की

नागोया विश्र्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ इनोवेशन फॉर फ्यूचर सोसाइटी के वैज्ञानिक नागाहिरो सेतो और उनके सहयोगियों ने अमीनो-संशोधित नैनोकार्बन को संश्लेषित करने के लिए एक नई विधि विकसित की है जो पारंपरिक तरीकों की तुलना में कई भारी धातु आयनों का अधिक कुशलता से सोखने का काम करता है। इसके लिए उन्होंने फिनोल को कार्बन के एक स्त्रोत के रूप में और अमीनो समूह के रूप में एपीटीईस नामक यौगिक के साथ मिश्रित किया गया। में मिश्रित किया, जिसमें एमटीईएस नामक एक स्त्रोत के रूप में एपीटीईएस शामिल था। इस मिश्रण को एक ग्लास कक्ष में रखा गया था और हाई वोल्टेज एक्सपोजर के जरिए एक तरल प्लाज्मा तैयार किया गया। इस विधि का उन्होंने उपयोग किया, उसे सोल्यूशन प्लाज्मा प्रोसेस के नाम से जाना जाता है। इस प्रक्रिया को 20 मिनट तक अपनाया गया और अमीनो-संशोधित कार्बन के काले अवक्षेपकों को एकत्र कर धोने के बाद सूखाया गया।

अमीनो समूहों की बांडिंग की सुविधा उपलब्ध कराई

विभिन्न प्रकार के परीक्षणों से पता चला कि अमीनो समूहों को समान रूप से नैनोकार्बन सतह पर वितरित किया गया था, जिसमें इसके स्लिट जैसे छिद्र भी शामिल थे। सेतो कहते हैं, 'हमने इस प्रक्रिया के जरिये नैनोकार्बन की बाहरी और आंतरिक दोनों सतहों पर अमीनो समूहों की बांडिंग की सुविधा उपलब्ध कराई। इससे नैनोकार्बन की सोखने की क्षमता पहले से काफी बढ़ गई। उन्होंने दस चरणों में तांबा, जस्ता और कैडमियम धातु के आयनों को सोखने के लिए अमीनो-संशोधित नैनोकार्बन को रखा और इस दौरान प्रत्येक चरण में इसे धोया भी गया। हालांकि हर चरण के बाद धातु आयनों को सोखने की क्षमता कम होती गई लेकिन यह इतनी कम भी नहीं हुई कि प्रभावहीन हो जाए।

नैनोकणों में किए गए परीक्षण 

अंत में, टीम ने अपने अमीनो-संशोधित नैनोकार्बनों की तुलना पारंपरिक तरीकों से संश्लेषित पांच अन्य तरीकों के साथ की। उनके नैनोकणों में परीक्षण किए गए धातु आयनों के लिए सबसे अधिक सोखने की क्षमता थी। यह दर्शाता है कि अन्य की तुलना में उनके नैनोकार्बन पर अधिक अमीनो समूह हैं।

सेतो का कहना है कि उनकी प्रक्तिरियां सभी के लिए सुरक्षित और सस्ता पीने का पानी समान रूप से पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा में मदद करेगी।


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