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कोरोना संक्रमितों के लिए नई एंटीबॉडी थेरैपी, शोध का दावा- जल्द उबर सकते हैं मरीज

घातक नॉवेल कोरोना वायरस के संक्रमण से दुनिया भर में संघर्ष जारी है। दूसरी ओर तमाम देशों में इस वायरस से निपटने के लिए शोध कार्य भी तेजी से हो रहे हैं। व्यापक स्तर पर वैक्सीन को विकसित करने का प्रयास जारी है।

By Monika MinalEdited By: Published: Sat, 31 Oct 2020 04:22 PM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 04:22 PM (IST)
कोरोना संक्रमितों के लिए नई एंटीबॉडी थेरैपी, शोध का दावा- जल्द उबर सकते हैं मरीज
नई एंटीबॉडी थेरैपी, कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन पर कसेगा शिकंजा

वाशिंगटन, प्रेट्र। नॉवेल कोरोना वायरस संक्रमण के कारण दुनिया भर में फैली महामारी कोविड-19 से छुटकारा पाने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास जारी है। तमाम देश अपने स्तर पर संक्रमण के लिए टेस्ट, वैक्सीन और कारगर दवाओं को लेकर शोध कर रहे हैं। इसी क्रम में घातक कोरोना वायरस की चपेट में आने वाले मरीजों के इलाज में एक नई एंटीबॉडी थेरैपी को लेकर अध्ययन किया गया है। 

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अधिक दिनों तक नहीं रहना होगा अस्पताल में 

अध्ययन का दावा है कि उक्त थेरैपी को आजमाने से मरीजों को अधिक समय तक अस्पताल में भर्ती नहीं रहना होगा और उन्हें इससे जल्दी ही छुटकारा मिल जाएगा। ऐसे संक्रमित मरीजों को उन लोगों की तुलना में आपात चिकित्सा देखभाल की भी कम जरूरत पड़ सकती है, जिन पीड़ितों का उपचार इससे नहीं किया जाता है। इस एंटीबॉडी थेरैपी को लेकर इस समय दूसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। इसके अंतरिम नतीजों को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है। इस ट्रायल में कोरोना मरीजों के रक्त से निकाले गए एलवाई-कोवी 555 नामक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की तीन खुराकों को रोगियों पर परखा गया है। 

कोरोना के स्पाइक प्रोटीन से जुड़ता है एंटीबॉडी

विश्लेषण में कोरोना संक्रमण के हल्के से मध्यम मामलों में वायरस के स्तर में कमी पाई गई है। अमेरिका के सीडर्स-सिनाई मेडिकल सेंटर के शोधकर्ता पीटर चेन ने कहा, 'मेरे लिए सबसे उल्लेखनीय नतीजा यह है कि अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि कम हो सकती है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी से कई रोगियों में संक्रमण की गंभीरता में कमी पाई गई है। इस थेरेपी से उच्च खतरे वाले लोगों को सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है।' शोधकर्ताओं के अनुसार, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी वायरस पर हमला करती है और उसे प्रतिकृति बनाने से रोक देती है। यह एंटीबॉडी कोरोना के स्पाइक प्रोटीन से जुड़ जाती है। कोरोना वायरस इसी प्रोटीन के जरिये मानव कोशिकाओं में दाखिल होता है और अपनी प्रतिकृति तैयार करता है।


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