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जानिए कौन है डॉ.एंथनी फाउची, जिनसे खासतौर से नाराज है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

दरअसल डॉ.फाउची को निशाना इसलिए बनाया जा रहा है क्योंकि वो अमेरिका में कोरोना को रोकने के अभियान का नेतृत्व कर रहे थे मगर कोरोना प्रसार को रोकने में बहुत अधिक कामयाबी नहीं मिल पाई। डॉ फाउची एक सम्मानित और लोकप्रिय डॉक्टर हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 01:17 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 09:39 AM (IST)
डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रतिद्धदी जो बाइडेन के निशाने पर आए डॉ.एंथनी फाउची। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/एजेंसी। अमेरिका में जैसे-जैसे राष्ट्रपति चुनाव की तिथि नजदीक आ रही है वैसे-वैसे अमेरिका में कोरोना वायरस मुद्दा बनता जा रहा है। साथ ही उन लोगों को जिम्मेदार बताया जा रहा है जो इस अभियान का नेतृत्व कर रहे थे मगर नियमों और कानूनों का पालन नहीं करा पाए जिसकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में नुकसान हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रतिद्धदी जो बाइडेन की तू-तू, मैं-मैं के बीच अब डॉ.एंथनी फाउची भी निशाने पर आ गए हैं।

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दरअसल डॉ.फाउची को निशाना इसलिए बनाया जा रहा है क्योंकि वो अमेरिका में कोरोना को रोकने के अभियान का नेतृत्व कर रहे थे मगर कोरोना प्रसार को रोकने में बहुत अधिक कामयाबी नहीं मिल पाई। डॉ फाउची एक सम्मानित और लोकप्रिय डॉक्टर हैं। उनकी आलोचना को ट्रंप के पार्टी के ही कुछ लोग बुरा मान रहे हैं। डॉ फाउची लोगों की गतिविधियों पर ज्यादा रोक लगाने और अर्थव्यवस्था को धीरे धीरे सामान्य स्थिति में लाना चाहते हैं लेकिन ट्रंप मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियां रोकी गईं तो ज्यादा नुकसान होगा। 

कोरोना वायरस पर बनी टास्क फोर्स के प्रमुख अधिकारी 

डॉ. एंथनी फाउची व्हाइट हाउस में कोरोना वायरस पर बनी टास्क फोर्स के प्रमुख अधिकारी हैं। जब से कोरोना का प्रसार शुरू हुआ है उसके बाद से ही डॉ.फाउची कई बार डोनाल्ड ट्रंप के साथ स्टेज भी साझा करते देखे गए। व्हाइट हाउस में आयोजित की जाने वाली प्रेस कांफ्रेंस में भी कई बार वो कोरोना से संबंधित आंकड़ें देते देखे गए।

एक बयान के बाद आए निशाने पर  

अपने एक बयान की वजह से डॉ.एंथनी अमेरिकियों के निशाने पर आ गए थे। उन्होंने कहा था कि अगर कोविड-19 को रोकने के लिए पहले से कदम उठाए गए होते तो इतने लोगों की मौत नहीं होती। उनके इस बयान के बाद वो अमेरिका में कई लोगों के निशाने पर आ गए। इसके बाद ट्वीटर पर टाइम टू #FireFauci ट्रेंड करने लगा था। ट्रंप ने भी इस हैशटैग वाले एक ट्वीट को रीट्वीट करके ये स्पष्ट कर दिया कि वो फाउची की बात से सहमत नहीं हैं। डॉ फाउची अमेरिका की कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई का चेहरा बन गए हैं। दोनों कई मुद्दों पर एक-दूसरे से बिल्कुल अलग राय जाहिर करते रहे हैं। 

6 राष्ट्रपतियों के रह चुके सलाहकार 

डॉ फाउची अब तक छह राष्ट्रपतियों के सलाहकार रह चुके हैं। उन्होंने जॉर्ज डब्ल्यू बुश की अमेरिकी सरकार को अफ्रीका में एड्स इनिशिएटिव शुरू करने में मदद की थी। अब ट्रंप के कार्यकाल में वो कोविड-19 के आउटब्रेक के बीच जनता के लिए एक्सप्लेनर-इन-चीफ का काम कर रहे हैं। जब ट्रंप ने दावा किया कि जल्द ही दवा बना ली जाएगी, तो उन्होंने उसे ठीक करते हुए कहा कि वैक्सीन बनने में कम से कम डेढ साल का वक्त लगेगा। एड्स से पीड़ित लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति की तारीफ हुई, और उन्हें इस बात का भी श्रेय दिया गया कि उन्होंने रेगुलेटर्स को इस बात के लिए मनाया कि नई दवाइयों के लिए क्लीनिकल ट्रायल के प्रतिबंधों में ढील दी जाए। 

कई बार पहले भी बन चुके निशाना 

अपने दृष्टिकोण की वजह से कई बार डॉ. फाउची निशाने पर आते रहे हैं। एक मेडिकल रिसर्चर के तौर पर अपने पांच दशक के करियर में एंथनी फाउची ने अपना पुतला जलते हुए देखा है। प्रदर्शनाकरियों के मुंह से खुद को "हत्यारा" कहते हुए सुना है। यहां तक कि उनके ऑफिस की खिड़की के बाहर स्मोक बम फेंकें गए। उन्हें एक ऐसे डॉक्टर के तौर पर देखा गया, जिन्होंने पब्लिक हेल्थ क्राइसिस का सामना करने के लिए अमेरिका की मदद की, नहीं तो ये और भी मुश्किल होता।

पहले भी कर चुके ऐसी चुनौतियों का सामना  

79 साल के डॉ फाउची पहली बार इस तरह की चुनौती का सामना नहीं कर रहे हैं। 1980 में एचआईवी/एड्स महामारी के दौरान वो नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ में इम्यूनोलॉजी के प्रमुख रहे थे। ब्रुकलीन में एक आप्रवासी इतालवी फार्मासिस्टों के परिवार में 1940 को क्रिसमस के दिन जन्मे डॉ फाउची ने 2002 में होली क्रॉस कॉलेज एलुमनी मैगजीन को बताया था, "मैं तबसे प्रिस्क्रिप्शन लिख रहा हूं, जबसे मेरी बाइक चलाने की उम्र हुई थी।" 1966 में वो कॉर्नेल मेडिकल स्कूल में फर्स्ट क्लास से ग्रेजुएट हुए थे।

1986 में पोस्टग्रेजुएट ट्रेनिंग के बाद उन्होंने युद्ध के वक्त नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ ज्वाइन कर लिया। वो बताते हैं कि दशकों बाद उनके करियर में टर्निंग प्वाइंट उस वक्त आया, जब 5 जून 1981 को उनके टेबल पर एक रिपोर्ट पहुंची। रिपोर्ट में लिखा था कि एक सेहतमंद मरीज की मौत अजीब निमोनिया की वजह से हुई, जो अक्सर कैंसर के मरीजों में देखने को मिलता है।

इंसानी इम्यून सिस्टम पर किए गए काम का दिया जाता श्रेय 

एक चिकित्सक के रूप में डॉ फाउची के इंसानी इम्यून सिस्टम पर किए काम को इस बात का श्रेय दिया जाता है जिससे ये पता लगाने में मदद मिली कि एचआईवी वायरस शरीर की लड़ने की क्षमता को कैसे नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने zidovudine और एड्स के इलाज के लिए पहले एंटीरेट्रोवाइरल ड्रग के क्लीनिकल ट्रायल को लीड किया। 1980 के दशक में ये अमेरिका में एक महामारी बन गई हलांकि वो कार्यकर्ताओं के निशाने पर आ गए जो तत्कालीन राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के प्रशासन की चुप्पी और नोवल दवाइयां कम ही लोगों तक पहुंचने से नाराज थे।  


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