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जानिए ब्राजील ने अंटार्कटिका के किस द्वीप पर बनाया सबसे बड़ा अनुसंधान केंद्र, कितना किया खर्च

ब्राजील ने ये प्रोजेक्ट अंटार्कटिका के दक्षिण में सबसे बड़े द्वीप किंग जॉर्ज पर बनाया है। इसका क्षेत्रफल 48500 वर्ग फुट है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 16 Jan 2020 06:14 PM (IST)Updated: Thu, 16 Jan 2020 06:14 PM (IST)
जानिए ब्राजील ने अंटार्कटिका के किस द्वीप पर बनाया सबसे बड़ा अनुसंधान केंद्र, कितना किया खर्च
जानिए ब्राजील ने अंटार्कटिका के किस द्वीप पर बनाया सबसे बड़ा अनुसंधान केंद्र, कितना किया खर्च

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ब्राजील की सरकार ने अंटार्कटिका में स्थायी अनुसंधान केंद्र खोला है। इस पर सरकार की ओर से 10 करोड़ डॉलर का निवेश किया गया है। ब्राजील सरकार ने 8 साल के बाद इस नए केंद्र को खोला है। इससे पहले साल 2012 में रिसर्च सेंटर में आग लगने की वजह से दो सैनिकों की मौत हो गई थी। जिसमें सेंटर जलकर खाक हो गया था।

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ब्राजील ने ये प्रोजेक्ट अंटार्कटिका के दक्षिण में सबसे बड़े द्वीप किंग जॉर्ज पर बनाया है। इसका क्षेत्रफल 48,500 वर्ग फुट है। अनुसंधान केंद्र का नाम कोमांडेंट फेराज अंटार्कटिका स्टेशन रखा गया है। ब्राजील नेवी ने बताया कि इस अनुसंधान केंद्र को दो दिन पहले शुरूआत हो चुकी है।

30 देश कर रहे अंटार्कटिका में अनुसंधान 

1959 अंटार्कटिक संधि के तहत 30 देशों के अपने अनुसंधान केंद्र यहां स्थापित हैं। संधि का उद्देश्य वहाँ के क्षेत्रीय विवादों पर टकराव की संभावना को कम करना, 1975 में ब्राजील संधि में शामिल हुआ और 1984 में पहली बार अनुसंधान केंद्र बनाया। भारत के इस वक्त दो अनुसंधान केंद्र अंटार्कटिका में मौजूद हैं। भारत की अंटार्कटिका में चहलकदमी 1982 में हुई। भारत के पीआइबी(प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो) के मुताबिक भारत के अंटार्कटिका में दो अनुसंधान केंद्र "मैत्रेयी" और "भारती" हैं। तीसरे लेकिन सबसे पुराने अनुसंधान केंद्र "दक्षिण गंगोत्री" के 70 मीटर बर्फ की चादर में धंसने की वजह से उसे बंद कर दिया गया था। 

ठंडे रेगिस्तान में बनाया गया अनुसंधान केंद्र 

अंटार्कटिका दुनिया के सातों महाद्वीपों में सबसे ठंडा महाद्वीप है। इस महाद्वीप का कुल क्षेत्रफल 1.4 करोड़ वर्ग किलोमीटर है। इसे ठंडा रेगिस्तान भी कहा जाता है। सबसे दुर्गम क्षेत्र माने जाने वाले इस क्षेत्र में 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बर्फीली हवाएं चलती हैं। यहां इंसान का बसना मुश्किल है। अनुसंधान की नजर से यह इलाका इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां कई वैज्ञानिक प्रयोग किए जा सकते हैं।

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की चुंबकीय विशेषताओं, मौसम, सागरीय हलचलों, जीवों पर सौर विकिरण के प्रभाव और भूगर्भ विज्ञान से संबंधित प्रयोग किए हैं। भारत समेत कई देशों ने अंटार्कटिका में स्थायी वैज्ञानिक केंद्र स्थापित किए हैं। इनमें चीन, ब्राजील, अर्जेन्टीना, कोरिया, पेरू, पोलैंड, उरूग्वे, इटली, स्वीडन, अमरीका और रूस इनमें शामिल हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अंटार्कटिका में 900 से भी अधिक तत्वों की महत्वपूर्ण खानें हैं। जिनमें सीसा, तांबा और यूरेनियम जैसे पदार्थ शामिल हैं।

2012 में अंटार्कटिका में लग गई थी आग 

2012 में ईंधन के रिसाव की वजह से अंटार्कटिका के रिसर्च सेंटर में आग लग गई थी। जिसमें दो सैनिक मारे गए थे। साथ ही अनुसंधान केंद्र भी जलकर खाक हो गया था। ब्राजील के वैज्ञानिक अस्थायी रूप से दूसरे देशों के अनुसंधान केंद्रों पर काम करते रहे थे। 1984 में पहली बार रिसर्च के लिए केंद्र बनाया गया था जिसमें मौसम विज्ञान, जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रयोग और अध्ययन किया जाता है। ब्राजील के इस नए केंद्र को चीन की कंपनी सीईआईईसी ने बनाया है जिसमें 17 प्रयोगशालाएं और 64 लोगों के लिए रहने का इंतजाम है।  


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