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महज मजाक नहीं थी अमेरिका की ग्रीनलैंड खरीदने की चाह, चीन था बड़ी वजह

दुनिया के सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड को बेचने से डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटी फ्रेडिकसेन के इंकार पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी डेनमार्क यात्रा ही रद कर दी।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Fri, 23 Aug 2019 05:31 PM (IST)Updated: Sat, 24 Aug 2019 05:36 PM (IST)
महज मजाक नहीं थी अमेरिका की ग्रीनलैंड खरीदने की चाह, चीन था बड़ी वजह
महज मजाक नहीं थी अमेरिका की ग्रीनलैंड खरीदने की चाह, चीन था बड़ी वजह

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अमरीका के प्रधानमंत्री डोनाल्ड ट्रंप की दुनिया के सबसे बड़े और कीमती द्वीप को खरीदने की इच्छा धरी की धरी रह गई। वो इस क्षेत्र में पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधन, जैसे कोयला, तांबा, जस्ता और लौह-अयस्क की वजह से इसे खरीदना चाह रहे थे मगर डेनमार्क ने इस क्षेत्र को बेचने से ही मना कर दिया। इसके अलावा इसे खरीदने की एक दूसरी बड़ी वजह चीन था। दरअसल चीन ग्रीनलैंड से सटे इलाके में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है। अमेरिका इस ग्रीनलैंड को खरीदने के बाद उसकी तमाम हरकतों पर भी नजर रख सकता था। इसे दोतरफा फायदा था मगर ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री के इसे बेचे जाने से इंकार कर दिए जाने के बाद अब अमेरिकी की सारी प्लानिंग धरी रह गई। दुनिया के सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड को बेचने से डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटी फ्रेडिकसेन के इंकार पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी डेनमार्क यात्रा ही रद कर दी। ट्रंप सितंबर माह में इसी ग्रीनलैंड को लेकर डेनमार्क जाने वाले थे। इस दौरे के दौरान ही डोनाल्ड ट्रंप की डेनमार्क के प्रधानमंत्री फ्रेडिकसेन के साथ ही डेनमार्क के स्वायत्त क्षेत्र ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री किम कील्सन से मुलाकात भी होनी थी। अमेरिका को ये क्षेत्र न बेचे जाने के डेनमार्क के इस फैसले पर वहां के नेताओं ने हैरानी जताई है। 

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अपना दौरा रद करने की जानकारी देते हुए अमेरिकी प्रधानमंत्री ट्रंप ने इस बारे में एक ट्वीट भी किया था। इसमें लिखा था कि डेनमार्क बहुत खास देश है और वहां के लोग भी अद्भुत हैं। फ्रेडिकसेन ग्रीनलैंड की बिक्री पर बातचीत नहीं करना चाहतीं, इसलिए मैं अपनी यात्रा स्थगित कर रहा हूं। उन्होंने सीधे इंकार कर अमेरिका और डेनमार्क की मेहनत व खर्च दोनों बचाया है। मैं इसके लिए उन्हें धन्यवाद देता हूं और भविष्य में मुलाकात की आशा करता हूं। ट्रंप ने हाल में ग्रीनलैंड को खरीदने की इच्छा फिर जताई थी। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि यह उनकी पहली प्राथमिकता नहीं है। फ्रेडिकसेन ने ट्रंप की इस इच्छा को बेतुका बताया था। उन्होंने कहा था कि ग्रीनलैंड बिकाऊ नहीं है। ग्रीनलैंड सिर्फ ग्रीनलैंड के लोगों का है। मुझे उम्मीद है कि ट्रंप इसकी खरीद को लेकर गंभीर नहीं हैं। इस मुद्दे पर ट्रंप द्वारा अपना दौरा रद करने पर नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) सहयोगी डेनमार्क के नेताओं ने हैरानी और मायूसी जताई है। 

आखिर ट्रंप को क्यों लुभा रहा है ग्रीनलैंड?
अमेरिका ग्रीनलैंड के संसाधनों को इसकी सबसे बड़ी वजह मान रहा है। ग्रीनलैंड के प्राकृतिक संसाधन, जैसे कोयला, तांबा, जस्ता और लौह-अयस्क की वजह से ग्रीनलैंड को लेकर अमरीका रुचि दिखा रहा है। एक ओर भले ही ग्रीनलैंड खनिजों के मामले में समृद्ध हो लेकिन वो अपने बजट के दो-तिहाई हिस्से के लिए डेनमार्क पर ही निर्भर है। ग्रीनलैंड में आत्महत्या और शराबखोरी के मामले बहुत अधिक हैं, इसके साथ ही यहां बेरोज़गारी भी चरम पर है। ग्रीनलैंड एक स्व-शासित देश है लेकिन ऊपरी तौर पर डेनमार्क का उस पर नियंत्रण है। यह अमरीका के लिए रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। क्षेत्रफल के मामले में ग्रीनलैंड दुनिया का 12वां सबसे बड़ा देश है और ब्रिटेन से 10 गुना ज़्यादा बड़ा है। इसके 20 लाख वर्ग किलोमीटर में चट्टान और बर्फ हैं।

ग्रीनलैंड ने कहा वो बिकाऊ नहीं  
ग्रीनलैंड का यह बयान बेहद अहम है क्योंकि हाल ही में अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के इस सबसे बड़े द्वीप को ख़रीदने की इच्छा ज़ाहिर की थी। ट्रंप ने कहा था कि उन्हें अच्छा लगेगा अगर अमरीका दुनिया के सबसे बड़े द्वीप को ख़रीद ले। अमरीकी राष्ट्रपति ने अपने सलाहकारों के साथ डेनमार्क के स्वायत्त क्षेत्र ग्रीनलैंड को खरीदने को लेकर चर्चा की लेकिन ग्रीनलैंड की सरकार ने अमरीकी राष्ट्रपति के इस विचार को सिरे से ख़ारिज कर दिया है। ग्रीनलैंड की सरकार का कहना है कि हम व्यापार करने के लिए उनका स्वागत करते हैं लेकिन ग्रीनलैंड बिकने के लिए नहीं है। 

ग्रीनलैंड को खरीदने की योजना को डेनमार्क के राजनेताओं ने भी नकार दिया है। इस बारे में पूर्व प्रधानमंत्री लार्स लोक्के रासमुसेन ने ट्वीट किया है कि यह जरूर अप्रैल फूल जैसा किया गया मज़ाक है लेकिन इस तरह का मजाक किए जाने की कहीं से कोई ज़रूरत नहीं थी। उधर वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस बारे में एक खबर प्रकाशित की थी जिसमें ये लिखा गया था कि डोनाल्ड ट्रंप ने काफी गंभीरता के साथ ग्रीनलैंड को ख़रीदने की बात कही थी। मगर अब डेनमार्क ने इसके लिए मना कर दिया है। बहुत से मीडिया संस्थानों में इस बात को लेकर मतभेद है। कुछ मीडिया संस्थानों का जहां यह मानना है कि ट्रंप ने यह बात गंभीरता से कही थी वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो ये मानते हैं कि यह मज़ाक था।

ग्रीनलैंड का इतिहास 
ग्रीनलैंड (Greenland)डेनमार्क का स्‍वाशासित हिस्‍सा है। यह पूरी तरह डेनमार्क के इकोनॉमिक सपोर्ट पर निर्भर है। उत्‍तरी अमेरिका में होने के बावजूद इसे यूरोप का ही एक हिस्सा माना जाता है। यह उत्तरी अटलांटिक (North Atlantic)और आर्कटिक महासागरों के बीच स्थित है। ऐसा नहीं कि ट्रंप से पहले किसी अमेरिकी नेता ने ऐसी इच्‍छा जाहिर नहीं की है। साल 1946 में अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने भी ग्रीनलैंड को खरीदने के लिए डेनमार्क को 100 मिलियन डॉलर देने की पेशकश की थी वो भी इसमें कामयाब नहीं हो पाए थे। ग्रीनलैंड दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। इसका 85 फीसदी हिस्सा बर्फ से ढका रहता है जिससे यहां घास नहीं उग पाती। ग्रीनलैंड के लिए अगस्‍त का महीना बेहद खुशगवार होता है। 

अगस्‍त में यह भूभाग सुनहरा नजर आता है। ग्रीनलैंड में कोई रेलवे सिस्टम नहीं है। इस भूभाग पर रहने वाले लोग एक जगह से दूसरी जगह पर जाने के लिए हेलीकॉप्टरों, नाव या पोत का सहारा लेते हैं। क्षेत्रफल के हिसाब से ग्रीनलैंड काफी बड़ा है लेकिन यहां की आबादी काफी कम (57,674) है। ग्रीनलैंड ('लोगों की भूमि') डेनमार्क राजशाही के अधीन एक स्वायत्त घटक देश है, जो आर्कटिक और अटलांटिक महासागर के बीच कनाडा आर्कटिक द्वीपसमूह के पूर्व में स्थित है। हालांकि भौगोलिक रूप से यह उत्तर अमेरिका महाद्वीप का एक हिस्सा है, लेकिन 18 वीं सदी के बाद से यूरोप (खास तौर पर डेनमार्क) से राजनीतिक रूप से जुड़ा हुआ है। 1979 में डेनमार्क ने ग्रीनलैंड को स्वशासन प्रदान किया और 2008 में ग्रीनलैंड ने स्थानीय सरकार को अधिक दक्षता हस्तांतरण के पक्ष में मत दिया। जो अगले वर्ष प्रभावी बन गई, इसके साथ ही डैनिश शाही सरकार केवल विदेशी मामलों, सुरक्षा और आर्थिक नीति तक ही सीमित रह गई। ग्रीनलैंड क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है।

चीन भी है एक बड़ी वजह 
दरअसल ग्रीनलैंड के आसपास के इलाके में चीन भी अपना क्षेत्र फैला रहा है। इसके आसपास वो तमाम तरह की गतिविधियां कर रहा है। अमेरिका चीन को इस इलाके में बढ़ावे को रोकना चाहता है इस वजह से वो इस जगह को खरीदकर यहां अपनी उपस्थिति मजबूत करना चाहता था जिससे चीन पर अंकुश लग सके। मगर अब ग्रीनलैंड के ना बिकने की जानकारी आने के बाद उसकी तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया है। यदि अमेरिका इस ग्रीनलैंड को खरीदने में कामयाब हो जाता तो उसको तमाम प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ इस क्षेत्र में अपना बेस बनाने का स्थान मिल जाता। उसके बाद वो चीन की तमाम गतिविधियों पर करीब से नजर रख सकता था। मगर अब उनकी इन तमाम प्लानिंग पर पानी फिर गया है।

सिर्फ 56 हजार है ग्रीनलैंड की जनसंख्या 
ग्रीनलैंड की जनसंख्या सिर्फ 56 हजार है। इतनी जनसंख्या इंग्लैंड के एक शहर के बराबर है। यहां की 88 प्रतिशत जनसंख्या इनूएट की है और बाक़ी डेनिश (डेनमार्क की भाषा बोलने वाले) लोग रहते हैं। पिछले कई सालों में अमरीकियों और डेनमार्क के लोगों ने ग्रीनलैंड और उसकी राजनधानी नुक में ज़्यादा पैसा नहीं लगाया है। वहां की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। हर दिन यहां एक जगह पर कुछ लोग इकट्ठे होकर सामान बेचते हैं, जिससे कुछ नक़दी इकट्ठा होती है। यहां ​कपड़े, स्कूलबैग, केक, सूखी मछली और रेंडियर के सींग बिकते हैं।

 

व्यापार के लिए मौजूद मगर खरीदने के लिए नहीं ग्रीनलैंड 
ग्रीनलैंड के अधिकारियों का कहना है कि ग्रीनलैंड बिकने के लिए उपलब्ध नहीं है। इस संदर्भ में ग्रीनलैंड के विदेश मंत्रालय की ओर से एक बयान भी जारी किया गया था जिसे सोशल मीडिया पर शेयर किया गया। इस बयान में कहा गया है कि ग्रीनलैंड क़ीमती संसाधनों, जैसे कि खनिज, सबसे शुद्ध पानी, बर्फ़, मछलियों के भंडार, सी फ़ूड, क्लीन एनर्जी के साधनों से काफी संपंन्न है, हम व्यापार करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन बिकाऊ नहीं। ग्रीनलैंड के प्रीमियर किम किल्सेन ने इसी बात को दोहराते हुए एक बयान दिया है। उन्होंने कहा कि ग्रीनलैंड बिकाऊ नहीं है मगर यह व्यापार और दूसरे देशों के सहयोग के लिए तैयार है जिनमें अमरीका भी शामिल है।

ग्रीनलैंड के सांसद ने भी खारिज की बेचने की बात 
ग्रीनलैंड के सांसद आजा चेमन्टिज़ लार्सेन भी उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप की बात को ख़ारिज किया है। उन्होंने ट्विटर पर इस संदर्भ में अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को ग्रीनलैंड ख़रीदने की कोई ज़रूरत नहीं है। उन्होंने इसे खरीदने के लिए ऐसा सोचा, इसी के लिए उनको धन्यवाद है। 

डेनमार्क के नेताओं की राय 
डेनमार्क में राजनेताओं ने इस संभावित अधिग्रहण के विचार को बचकाना बताया है। डेनमार्क की डैनिश पीपल्स पार्टी के विदेशी मामलों के प्रवक्ता सोरेन एस्पर्सन ने नेशनल ब्रॉडकास्टर डीआर से कहा है कि अगर ट्रंप वास्तव में इस तरह का कोई विचार कर रहे हैं तो यह प्रमाण है कि वह पागल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि डेनमार्क, अमरीका को 50 हज़ार नागरिकों को बेच देगा, ऐसा सोचना भी कितना हास्यास्पद है। डेनमार्क के सांसदों ने दुनिया के इस सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड को खरीदने के ट्रंप के विचार का मजाक भी उड़ाया।

दरअसल, 'द वॉल स्‍ट्रीट जर्नल' की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप डेनमार्क से उसके द्वीप ग्रीनलैंड (Greenland) को खरीदना चाहते हैं। इसको लेकर उन्‍होंने अपने सहयोगियों से चर्चा की है। ऐसी भी खबरें थी कि जिसमें कहा गया है कि ट्रंप सितंबर के महीने में कोपेनहेगन की यात्रा करेंगे और इस मसले पर उनकी डेनमार्क और ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्रियों के साथ बातचीत होगी।  


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