भारत ने कहा- उपदेश देना बंद करे और जातीय व धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये पर ध्यान दे पाक
मानवाधिकार परिषद को पाकिस्तान के जातीय एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभावपूर्ण बर्ताव एवं उसके निंदनीय मानवाधिकार रिकार्ड पर तत्काल ध्यान देना चाहिए। एक विफल देश पाकिस्तान उपदेश देना बंद करे और अपने यहां के लाखों पीड़ितों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पर ध्यान दे।
जिनेवा, प्रेट्र। भारत ने सोमवार को कहा, अब समय आ गया है कि एक 'नाकाम देश' पाकिस्तान को उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। इसके साथ ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान के खराब मानवाधिकार रिकार्ड और जातीय व धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति उसके भेदभावपूर्ण रवैये पर तत्काल ध्यान दे। भारत ने यह भी कहा कि पाकिस्तान उपदेश देना बंद करे और अपने यहां लाखों पीडि़तों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पर ध्यान दे।
बाधे ने कहा- पाक उपदेश देना बंद करे और अपने यहां के लाखों पीड़ितों पर ध्यान दे
मानवाधिकार परिषद के 46वें सत्र में पाकिस्तान के प्रतिनिधि के वक्तव्य के बाद अपने जवाब देने के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए भारत ने यह बात कही। जिनेवा में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव पवन कुमार बाधे ने कहा, 'परिषद को पाकिस्तान के जातीय एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभावपूर्ण बर्ताव एवं उसके निंदनीय मानवाधिकार रिकार्ड पर तत्काल ध्यान देना चाहिए। अब समय आ गया है कि एक विफल देश पाकिस्तान उपदेश देना बंद करे और अपने यहां के लाखों पीड़ितों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पर ध्यान दे।'
संयुक्त राष्ट्र में सुधार का माकूल वक्त
संयुक्त राष्ट्र के 75 साल पूरे होने पर एक बार फिर व्यापक सुधार की मांग जोर पकड़ रही है और चीनी आक्रामकता पर अंकुश लगाने की मांग उठ रही है।
संयुक्त राष्ट्र के इतिहास पर नजर
इस वैश्विक मंच की मौजूदा चुनौतियों पर बात करने से पहले इसके इतिहास पर नजर डालना समीचीन होगा। द्वितीय विश्वयुद्ध का विध्वंसक रूप देखने के बाद भविष्य के युद्धों को रोकने तथा शांति की स्थापना के लिए 24 अक्तूबर, 1945 को इसकी स्थापना की गई थी। हालांकि इससे पहले लीग ऑफ नेशन्स का गठन किया गया था, जो कुछ वजहों से वह अप्रभावी हो गया। पहला तो यह कि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने इसमें बड़ी पहल की थी, लेकिन उनको अपने ही देश में समर्थन नहीं मिला। दूसरा, उसमें छोटा देश हो या बड़ा देश हो, सभी सदस्य देशों की बराबर साझेदारी थी। ऐसे में बड़े देशों को लगा कि छोटे देश हम पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे हैं। तीसरा यह कि द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया था, जिसके चलते लीग ऑफ नेशन्स का कोई लाभ ही नहीं मिला।