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अंतरिक्ष में चुंबक की तरह एक-दूसरे से चिपकर खगोलीय पिंड बनाते हैं धूल के कण

शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि ब्रह्मांडीय धूल के कण कैसे आपस में चिपकते हैं और धीरे- धीरे एकत्र होकर ग्रहों के निर्माण की ओर अग्रसर होते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 13 Dec 2019 10:15 AM (IST)Updated: Fri, 13 Dec 2019 10:17 AM (IST)
अंतरिक्ष में चुंबक की तरह एक-दूसरे से चिपकर खगोलीय पिंड बनाते हैं धूल के कण

न्यूयॉर्क, प्रेट्र। ग्रहों और खगोलीय पिंडों के बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि एक दीर्घकालीन प्रक्रिया के तहत धूल के कणों के आपस में चिपकने से इनका निर्माण हुआ। अब एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि ब्रह्मांडीय धूल के कण कैसे आपस में चिपकते हैं और धीरे- धीरे एकत्र होकर ग्रहों के निर्माण की ओर अग्रसर होते हैं।

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शोधकर्ताओं का दावा है कि यह अध्ययन औद्योगिक प्रक्रियाओं से निकलने वाली धूल से निपटने के लिए मददगार सिद्ध हो सकता है। अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान पाया है कि अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी में धूल के कण स्वत: ही विद्युत आवेश पैदा करते हैं और बड़े समुच्चय बनाने के लिए एक-दूसरे से चिपकना शुरू कर देते हैं। जब यह प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है तो ग्रहों और खगोलीय पिंडों का निर्माण होता है।

नेचर फिजिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि जैसे चुम्बक के दो अलग-अलग ध्रुवों को यदि साथ मिला जाता है तो वे तुरंत एक-दूसरे से चिपक जाते हैं। वहीं, यदि दो समान ध्रुवों को मिलाने की कोशिश की जाती है तो वे एक-दूसरे दूर होने लगते हैं। ठीक वैसे ही धूल के कणों में भी विद्युत आवेश उत्पन्न होने पर वे विपरीत किस्म के कणों से चिपकते चले जाते हैं और धीरे-धीरे ग्रहों और खगोलीय पिंडों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने लगता है।

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में कहा है कि जब धूल के कणों का समुच्चय कुछ सेंटीमीटर का हो जाता है तो उसके बाद वे एक ऐसे तंत्र का निर्माण करने में सफल हो जाते हैं, जिससे गुरुत्वाकर्षण बल भी पैदा होने लगता है और उसका आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। जिसके बाद ये कई किलोमीटर लंबे हो जाते हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार, ‘प्लास्टिक से लेकर फार्मास्युटिकल दवाएं बनाने करने के लिए इस्तेमाल होने वाले रासायनिक रिएक्टरों में भी इसी तरह की धूल एकत्रीकरण प्रक्रिया फायदेमंद हो सकती है। ऐसी निर्माण इकाइयों को फिल्यूडाइज बेड रिएक्टर कहा जाता है। उन्होंने कहा, रिएक्टरों में गैस छोड़कर धूल के सूक्ष्म कणों को ऊपर की ओर धकेल दिया जाता है और जब उनमें विद्यळ्त आवेश पैदा होता है तो ये कण रिएक्टर की दीवारों से चिपक जाते हैं। इसलिए उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए धूल के कणों का ठीक से निस्तारण करना फायदेमंद हो सकता है।

रटगर्स यूनिवर्सिटी के सह-लेखक ट्रॉय शिनब्रोट ने कहा, ‘इस अध्ययन के जरिये हमने यह समझने का प्रयास किया कि ग्रहों का निर्माण कैसे हो सकता है और औद्योगिक क्षेत्रों में उड़ने वाली धूल के सूक्ष्म कणों को वायुमंडल में फैलने से कैसे रोक सकते हैं।

रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा-अंतरिक्ष में चुंबक की तरह एक-दूसरे से चिपकर खगोलीय पिंड बनाते हैं धूल के कण।


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