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जानें कैसे पिता की दी हुई किताब और भारतीय संत ने बदल दी मार्क जुकरबर्ग की किस्‍मत, फेसबुक ने रचे नए कीर्तिमान

मार्क को बचपन से ही कंप्‍यूटर से काफी लगाव था। हालांकि उनके इस लगाव को एक मुकाम तब मिला जब उनके पिता ने उन्‍हें एक किताब दी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 14 May 2020 07:40 AM (IST)Updated: Thu, 14 May 2020 03:15 PM (IST)
जानें कैसे पिता की दी हुई किताब और भारतीय संत ने बदल दी मार्क जुकरबर्ग की किस्‍मत, फेसबुक ने रचे नए कीर्तिमान

नई दिल्‍ली। नई दिल्‍ली। Happy Birthday Mark Zuckerberg: फेसबुक के संस्‍थापक मार्क जुकरबर्ग का आज जन्‍मदिन है। 14 मई, 1984 को उनका जन्‍म हुआ था। मार्क की आज एक सफल अमेरिकन उद्यमी और social networking site FACEBOOK के संस्‍थापक के तौर पर पहचान है। उनके यहां तक पहुंचने में या इस कामयाबी के पीछे दो चीजें बेहद खास रही हैं। इनमें पहली है उनके पिता की दी हुई एक किताब जिसने उन्‍हें कंप्‍यूटर प्रोग्रामिंग से जोड़ा और दूसरा है भारत के एक संत जिसने उन्‍हें मुश्किल समय में राह दिखाई। आपको बता दें कि मार्क को बचपन से ही कंप्‍यूटर से काफी लगाव था।

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फेसबुक के 250 करोड़ यूजर्स  

आपको बता दें हर शख्‍स किसी ना किसी चीज से खास लगाव रखता है, मगर जब आप उसे एक खास दिशा में लेकर आगे बढ़ते हैं तब वह आपको तरक्‍की के उस मुकाम पर लेकर जाती है जहां आप दुनिया के बेताज बादशाह कहलाने लगते हैं। ऐसा ही है मार्क जुकरबर्ग के साथ भी हुआ। मार्क आज टेक कंपनियों में शुमार वह चमकता सितारा हैं जो दुनिया के लिए एक मिसाल बन चुका है। इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि मार्क के बनाए फेसबुक को फिलहाल 250 करोड़ लोग इस्‍तेमाल कर रहे हैं।

पिता ने दी थी किताब जिससे बदल गई थी जिंदगी

मार्क जुकरबर्ग को बचपन से तो कंप्‍यूटर में काफी शौक था। वह अक्‍सर अपना टाइम कंप्‍यूटर में प्रोग्रामिंग करते हुए बिताया करते थे। उसी दौरान उनके पिता ने उन्‍हें एक C++ की किताब दी। यही वह क्षण था जब मार्क जुकरबर्ग की किस्‍मत बदल गई। इसको पढ़ने के बाद मार्क का कंप्‍यूटर से और लगाव बढ़ गया। फिर क्‍या था वे और डूब कर प्रोग्रामिंग करने लगे। यहीं से उनके तरक्‍की की कहानी की शुरुआत होती है।

फेसबुक बनाने से पहले क्‍या करते थे मार्क

मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक बनाने से पहले अपने कॉलेज के दिनों में एक और फेसमास नाम की वेबसाइट लांच की थी। इस वेबसाइट के जरिए वह यह बताना चाहते थे कि यहां दो लोगों के बीच कौन कितना हॉट है। इसके लिए उन्‍होंने शुरुआत में कुछ लड़कों और लड़कियों के फोटो भी डाले। हालांकि इसको लेकर बाद में विवाद भी हुआ। कुछ लड़के-लड़कियों ने यह कहा कि बिना उनकी इजाजत के तस्‍वीर डाली गई हैं। हालांकि कमोबेश मार्क को फेसमास ने वह रास्‍ता दिखा दिया जहां से एक बुलंद इमारत की नींव रखी जा सकती थी।

कैसे बना फेसबुक

फेसमास ने यह तो उन्‍हें बता दिया था कि अब मंजिल दूर नहीं है। मार्क ने अब ऐसी वेबसाइट बनाने की सोची जिसमें लोग अपनी फोटो डाल सकेंगे और एक दूसरे को खोज सकेंगे। वर्ष 2004 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के साथ ही मार्क जुकरबर्ग ने अपने कुछ दोस्तों संग मिलकर फेसबुक की शुरुआत की। आपको बता दें कि जब इसे लांच किया था गया था तब इसका नाम 'द फेसबुक' था बाद में 2005 में इसे फेसबुक नाम दिया गया। इसका मुख्यालय अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में है।

मार्क पर लगा था आइडिया चुराने का आरोप

मार्क जुकरबर्ग पर सोशल नेटवर्क वेबसाइट बनाने को लेकर आरोप भी लगे थे कि वह किसी और का आइडिया चुरा कर इस पर काम कर रहे हैं। हालांकि बाद में एक बड़ी रकम देकर इस बात को खत्‍म किया गया था।

मार्क का भारतीय संत से कनेक्‍शन

फेसबुक एक वक्‍त अपने कठिन दौर से गुजर रहा था, ऐसा लग रहा था मानो अब कंपनी बिक जाएगी। हालांकि इस संघर्ष के कठिन दौर में मार्क को जीने की राह भारत से मिली। एप्‍पल के सीइओ स्‍टीव जॉब्‍स ने उनसे कहा कि मार्क आप भारत एक बार जाइए वहां कुछ वक्‍त बिताएं। इसके बाद मार्क भारत के उत्‍तराखंड में नीम किरोली बाबा के आश्रम में आए। यहां करीब एक महीन का वक्‍त बिताने के बाद उन्‍हें इस बात का अहसास हुआ कि लोगों को जोड़ना ही सबसे सुखद काम हैं। बस यहीं से मार्क की गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली। इस बारे में मार्क ने कहा था कि भारत बहुत आशावाद है। यही आशा आपको कहां से कहां ले आती है।

मार्क ने मैंड्रिन भाषा भी सीखी

आपको बता दें कि मार्क की वाइफ एक चीनी महिला हैं जिनका उनके जीवन में काफी महत्‍व है। उनके ही लिए मार्क ने मैंड्रिन भाषा भी सीखी थी। हालांकि वह इसमें पूरी तरह से पारंगत नहीं हैं लेकिन हां वह इसको अच्‍छे से समझते भी हैं और बोलते भी हैं। चीन में एक बार लोगों से बातचीत के दौरान उन्‍होंने इस बात का खुलासा किया था।


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