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ग्लोबल वैक्सीन सम्मेलन में भी छाया रहा कोविड-19, वैश्विक नेताओं ने जाहिर की अपनी चिंताएं

ग्‍लोबल वैक्‍सीन समिट में भारत ने भी अपना योगदान दिया है। इसमें नेताओं की एक समान चिंता भी उजागर हुई।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 05:25 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jun 2020 08:34 AM (IST)
ग्लोबल वैक्सीन सम्मेलन में भी छाया रहा कोविड-19, वैश्विक नेताओं ने जाहिर की अपनी चिंताएं
ग्लोबल वैक्सीन सम्मेलन में भी छाया रहा कोविड-19, वैश्विक नेताओं ने जाहिर की अपनी चिंताएं

न्‍यूयॉर्क (संयुक्‍त राष्‍ट्र)। कोविड-19 महामारी के बीच शुरू हुए ग्लोबल वैक्सीन सम्मेलन में वैश्विक नेताओं की चिंता खुलकर सामने आई है। ये चिंता केवल कोरोना वायरस और इसकी वैक्‍सीन को लेकर ही नहीं थी बल्कि इस संकट की घड़ी में दूसरे टीकाकरण कार्यक्रमों के प्रभावित होने को लेकर भी थी। यूएन महासचिव समेत सभी नेताओं का मानना था कि इस संकट में वो बीमारियां सिर न उठा सकें जिनकी वैक्‍सीन उपलब्‍ध है। इसके अलावा इसमें ये भी चिंता निकलकर सामने आई कि यदि कोरोना वायरस की पुख्‍ता वैक्‍सीन बन जाती है तो उसको जन-जन तक पहुंचाना सुनिश्चित करना होगा।

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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने इसी वर्चुअल बैठक को संबोधित करते हुए कहा है कि महामारी कोविड-19 मौजूदा पीढ़ी के लिए अब तक का सबसे बड़ा संकट है। इस चुनौती से पार पाने के लिए सिर्फ वैक्सीन का होना ही अपने आप में पर्याप्त नहीं है, बल्कि इससे आगे भी निगाह दौड़ानी होगी। उन्‍होंने कहा कि वैक्‍सीन बनने के बाद एकजुटता की भावना के साथ इसको हर जगह और हर व्यक्ति के लिए उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना होगा। इसके लिए हमें वैश्विक एकजुटता की जरूरत होगी।

उनके मुताबिक ग्लोबल वैक्सीन सम्मेलन को आयोजित करने के पीछे तीन अहम मकसद थे। इसमें सबसे पहला मकसद कोविड-19 की रोकथाम और इसकी दवाइयों के लिए सामूहिक रूप से वित्तीय इंतजाम करना था। इसका दूसरा मकसद नियमित रूप से होने वाले टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए संकल्‍पों को मजबूत करना था। इसका तीसरा मकसद ऐसी बीमारियों के लिए संसाधन जुटाना था जिनकी रोकथाम की जा सकती है। ब्रिटेन की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में दुनिया भर के कई नेता शामिल हुए और उन्होंने वैक्सीन की समान उपलब्धता के लिए अपनी योजना का रोडमैप भी रखा।

इस वर्चुअल समिट में यूएन महासचिव ने कहा कि कोविड-19 की समस्‍या ने दवाइयों की उपलब्‍धता को वैश्विक एजेंडा बना दिया है। उन्‍होंने इन दवाओं को मानवीय इतिहास में सबसे अहम पड़ाव बताया। उन्‍होंने कहा कि इनकी बदौलत करोड़ों जिंदगियों को बचाने में सफलता हासिल हो सकी है। इनके जरिए चेचक जैसी बीमारी की रोकथाम समेत खसरा, रुबेला और टिटनेस समेत अन्‍य कई बीमारियों की रोकथाम में मदद मिली है। उनका कहना था कि कोविड-19 के लिए वैक्सीन को जनता वैक्सीन के रूप में देखा जाना चाहिए। इसका अर्थ है एक ऐसी दवा जो जो सभी के लिए काम आ सके।

गुतारेस ने GAVI नामक वैक्सीन एलायन्स और उसके साझीदार संगठनों की ओर से किये जा रहे प्रयासों की भी सराहना की है। उन्‍होंने कहा कि इनकी बदौलत सभी आयु व आय के वर्गों तक दवाओं की पहुंच सुनिश्चित हो सकी। सार्वजनिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में इस प्रयास का हिस्सा बनने पर संयुक्त राष्ट्र को गर्व है। लेकिन अब भी काफी कुछ करना बाकी है। उनके मुताबिक दुनिया भर में करीब दो करोड़ से ज्‍दा बच्चों को वैक्सीनों की पूरी खुराक नहीं मिल पाई है जबकि हर पांच में से एक बच्चे को वैक्सीन बिलकुल भी नहीं मिल पाई है। 

उन्‍होंने टीकाकरण कार्यक्रमों और वैश्विक स्तर पर दवाओं के वितरण में आ रही मुश्किलों पर भी चिंता जताई। इस मौके पर उन्‍होंने तीन संकल्पों को पूरा करने की अपील की है। उन्‍होंने कहा कि कोविड-19 के फैलाव की स्थिति में भी सुरक्षित तरीके से वैक्सीन के वितरण को सुनिश्चित करना सबसे जरूरी काम होगा। इनके माध्‍यम से अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं भी निचले स्‍तर पर पहुंचाई जा सकेंगी। इसके अलावा वैक्सीन की उपलब्धता के बाद यह सुनिश्चित करना काफी महत्वपूर्ण होगा हर किसी के लिये ये उपलब्ध हो सके। यूएन महासचिव ने कहा कि बीमारी सीमाओं को नहीं जानती। इसलिए टिकाऊ विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति जारी रखने के लिए पूर्ण रूप से वित्त-पोषित GAVI जरूरी है। भारत ने इसके लिए 113 रुपये देने की घोषणा की है।

इस समिट में भारत की तरफ से शामिल हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत इसमें केवल वित्‍तीय योगदान ही नहीं दे रहा है बल्कि चाहता है कि वैश्विक स्‍तर पर दवाओं की कीमतें भी कम हो। उन्‍होंने कहा कि संकट की इस घड़ी में भारत पूरी दुनिया के साथ कंघे से कंघा मिलाकर खड़ा है। भारत इस महामारी समेत अन्‍य दवाओं के निर्माण में पूरी क्षमता से काम कर रहा है और चाहता है कि इनकी कीमतें कम हों। उन्‍होंने ये भी कहा कि भारत का अपना अनुभव बताता है कि टीकाकरण को और अधिक विस्‍तृत किया जाना चाहिए। इस संबंध में हमारे देश में वैज्ञानिक पूरी मुस्‍तैदी के साथ जुटे भी हैं।

इस समिट में केनेडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि वैक्‍सीन बेहतर काम करती हैं और नियमित टीकाकरण कार्यक्रम अब 86 फीसद बच्चों के लिए उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि वैश्विक महामारी के दौरान इस चुनौती से निपटने के लिए क्षमता निर्माण और वैक्सीन वितरण के लिए संगठनों के साथ काम करना बेहद जरूरी है। उनके अलावा जॉर्डन के शाह अब्दुल्लाह बिन अल हुसैन ने कहा कि समान सुलभता की गारंटी का होना ना सिर्फ नैतिक और न्यायसंगत है बल्कि सम्पूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हित में भी है।

मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फताह अल-सीसी के मुताबिक यह जरूरी होगा कि कोविड महामारी के कारण अन्य संक्रामक बीमारियों के फैलाव को रोकने के प्रयासों पर कोई असर ना पड़े। ये सुनिश्चित करना होगा कि इस मुश्किल घड़ी में भी ऐसी बीमारियों से लड़ा जा सके जिनकी वैक्सीन द्वारा रोकथाम की जा सकती है। इथियोपिया की राष्ट्रपति साहले-वोर्क ज्‍वेदे ने टीकाकरण कार्यक्रमों की अहमियत पर जोर दिया। उनका कहना था कि नियमित टीकाकरण का दायरा वर्ष 2000 में 30 फसदी से बढ़ाकर 72 फीसद तक किया गया है।


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