Move to Jagran APP

कोविड-19 में खून के थक्के बनने के बावजूद रक्तवाहिनी संक्रमण नहीं, वैज्ञानिकों ने लगाया पता

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान वाहिकी संबंधी रोग (वैस्कुलर डिजीज) होने की वजह रक्त वाहिनी में वायरल संक्रमण होना नहीं है। चूंकि कोविड-19 (सार्स-को-वि-2) वायरस के कारण शरीर की रक्तवाहिनी में संक्रमण नहीं होता है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 05:30 PM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 05:30 PM (IST)
कोविड-19 में खून के थक्के बनने के बावजूद रक्तवाहिनी संक्रमण नहीं, वैज्ञानिकों ने लगाया पता
कोविड-19 के दौरान वाहिकी संबंधी रोग (वैस्कुलर डिजीज) होने की वजह रक्त वाहिनी में वायरल संक्रमण होना नहीं है।

सिडनी, आइएएनएस। वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान वाहिकी संबंधी रोग (वैस्कुलर डिजीज) होने की वजह रक्त वाहिनी में वायरल संक्रमण होना नहीं है। चूंकि कोविड-19 (सार्स-को-वि-2) वायरस के कारण शरीर की रक्तवाहिनी में संक्रमण नहीं होता है। बल्कि विज्ञानियों के ताजा शोध के मुताबिक कोविड-19 के मरीज में खून के थक्के (ब्लड क्लाटिंग) होने का खतरा बढ़ जाता है। अक्सर खून के थक्के के कारण ही कोरोना संक्रमण के मरीजों को हृदय संबंधी गंभीर रोगों का सामना करना पड़ता है।

loksabha election banner

क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों के अनुसार कोविड के मरीजों में खून के थक्के बनने की परेशानी ज्वलनशीलता (इनफ्लेमेशन) से होती है। यह ज्वलनशीलता वायुमार्ग की संक्रमित कोशिकाओं के कारण होती है। इस संक्रमण का कारण रक्तवाहिनी नहीं होती जैसे पहले समझा जाता था। यूक्यू इंस्टीट्यूट में मालीक्यूलर बायोसाइंस की एमा गार्डन के अनुसार अस्पताल में भर्ती किए गए कोरोना संक्रमण के कम से कम 40 फीसद मरीजों में खून के थक्के बनने के अत्यधिक खतरा होता है।

इसीलिए सामान्य रूप से उनके इलाज के दौरान उनके खून को पतला करने के लिए समुचित उपाय किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि यह देखने के लिए भी कई शोध हुए हैं कि कोरोना वायरस का असर रक्तवाहिनी के अंदर की सतह या उसकी कोशिकाओं में होता है या नहीं। 'क्लीनिकल एंड ट्रांसलेशनल इम्यूनोलाजी' में प्रकाशित इस शोध से वायरस और रक्तवाहिनी के बीच के संबंधों का स्पष्ट स्वरूप पता चलता है।

इस बीच कोरोना वायरस को लेकर वैज्ञानिकों ने एक और सनसनीखेज जानकारी दी है। वैज्ञानिकों ने एक अध्‍ययन में पाया है कि दिन और रात के हिसाब से कोविड-19 जांच का नतीजा बदल सकता है। समाचार एजेंसी आइएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के वांडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के अध्ययन में कहा गया है कि वायरस समय और व्यक्ति के बाडी क्लाक के हिसाब से अलग-अलग तरीके से व्यवहार करता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि रात की तुलना में यदि किसी ने सैंपल दोपहर में दिया हो तो संक्रमित होने की सटीक जानकारी मिलने की उम्मीद दोगुना रहती है।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.