लंबे समय तक रह सकती है कोरोना प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया, पढ़ें अध्ययन में सामने आईं बातें
ब्रिटेन की सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों के अनुसार वायरस की चपेट में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति में पहचान करने योग्य एंटीबॉडीज नहीं होती है।
वॉशिंगटन, प्रेट्र। एक नए अध्ययन से पता चला है कि कोरोना वायरस (कोविड-19) की पहचान होने के बाद ज्यादातर संक्रमित लोगों के रक्त में इस घातक वायरस को लेकर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (इम्यून रिस्पांस) करीब दो माह या लंबे समय तक स्थिर रह सकती है। अध्ययन के इस निष्कर्ष से कोरोना के प्रसार की रोकथाम में मदद मिल सकती है।
ब्रिटेन की सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों के अनुसार, वायरस की चपेट में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति में पहचान करने योग्य एंटीबॉडीज नहीं होती है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में कोरोना की चपेट में आए 177 पीडि़तों के एंटीबॉडी टेस्ट के नतीजों का विश्लेषण और इस वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज के स्तरों का मूल्यांकन किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि एंटीबॉडी प्रतिक्रिया वाले रोगियों में इम्यून मोलेक्यूल्स अध्ययन की अवधि (करीब दो माह) के दौरान स्थिर पाए गए।
इस अध्ययन के आधार पर उन्होंने कहा कि बेहद गंभीर संक्रमण वाले रोगियों में इंफ्लेमेटोरी रिस्पांस सबसे अधिक पाया गया। ऐसे लोगों में एंटीबॉडीज के विकास की संभावना अधिक हो सकती है। वैज्ञानिकों का यह आकलन है कि यह बीमारी को गंभीर करने वाले इंफ्लेमेटोरी रिस्पांस के समानांतर होने वाली एंटीबॉडी प्रतिक्रिया के चलते हो सकती है। उनका कहना है कि इसे बेहतर समझने के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है। उन्होंने बताया कि दो से 8.5 फीसद रोगियों में एंटीबॉडीज नहीं पाई गई। इन रोगियों में शरीर की रक्षा प्रतिक्रिया दूसरे तंत्रों मसलन इम्यून सिस्टम टी-सेल्स से होने के कारण ऐसा होने का अनुमान है।