कॉन्टेक्ट लेंस के प्रयोग से बढ़ रहा माइक्रो प्लास्टिक प्रदूषण का खतरा
बेकार फेंके गए कॉन्टेक्ट लेंस दुनिया भर के जलस्रोतों में माइक्रो प्लास्टिक प्रदूषण का कारण बन सकते हैं।
वाशिंगटन [प्रेट्र]। बेकार फेंके गए कॉन्टेक्ट लेंस दुनिया भर के जलस्रोतों में माइक्रो प्लास्टिक प्रदूषण का कारण बन सकते हैं। यहां इनका मनुष्य के भोजन में प्रयोग होने वाली चीजों में प्रवेश संभव है। यह बात शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन के बाद कही। शोध करने वालों में एक भारतीय भी शामिल थे। बता दें कि आमतौर पर लेंसों को एक महीने बाद या कई बार तो एक बार प्रयोग कर ही फेंक दिया जाता है। यहां से ये नाली के रास्ते जलशोधन संयत्रों का हिस्सा बन जाते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि जलशोधन संयत्रों में मौजूद रोगाणु प्लास्टिक बहुलकों के बंध को कमजोर कर कांटैक्ट लेंस की सतह को प्रभावित करते हैं।
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता वरुण केलकर का कहना है कि जब प्लास्टिक की संरचना कमजोर होती है तो यह भौतिक रूप से टूट जाता है। इस प्रकार यह बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर माइक्रो प्लास्टिक का रूप ले लेता है। जलीय जीव माइक्रो प्लास्टिक को भोजन समझकर खाने की गलती कर सकते हैं और अघुलनशील होने के कारण ये जलीय जीवों के पाचनतंत्र पर प्रभाव डाल सकता है। ये जलीय जीव एक लंबी खाद्य श्रृंखला बनाते हैं, जिनमें से कई तो मनुष्यों के भोजन का भी हिस्सा हैं। इससे यह माइक्रो प्लास्टिक मनुष्य के शरीर में पहुंचकर एक खतरनाक परिणाम दे सकता है।
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध छात्र चार्ली रोल्सकी का कहना है कि अमेरिका के बाजारों में किए सर्वे में हमने पाया कि लगभग 20 प्रतिशत लोग अपने लेंस सिंक और टॉयलेट के जरिये फ्लश कर देते हैं। यह एक बड़ा आंकड़ा है क्योंकि अमेरिका में लगभग साढ़े चार करोड़ लोग कॉन्टैक्ट लेंस का प्रयोग करते हैं।