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मनुष्यों के पहुंचने से पहले ही प्रभावित हो गए थे हिमालय के ग्लेशियर

शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि हिमालय की चोटियों में मनुष्य के पहुंचने से दशकों पहले ही लोगों ने अपनी गतिविधियों के जरिये इसे काफी दूषित/ प्रभावित कर दिया था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 12 Feb 2020 12:49 PM (IST)Updated: Wed, 12 Feb 2020 12:49 PM (IST)
मनुष्यों के पहुंचने से पहले ही प्रभावित हो गए थे हिमालय के ग्लेशियर
मनुष्यों के पहुंचने से पहले ही प्रभावित हो गए थे हिमालय के ग्लेशियर

वाशिंगटन, प्रेट्र। बढ़ती मानवीय गतिविधियों का सबसे ज्यादा असर हमारे ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। कई लोगों का मानना है कि यह प्रभाव कुछ दशकों पहले ही पड़ना शुरू हुआ है लेकिन एक नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि हिमालय की चोटियों में मनुष्य के पहुंचने से दशकों पहले ही लोगों ने अपनी गतिविधियों के जरिये इसे काफी दूषित/ प्रभावित कर दिया था।

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पीएनएएस नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि 18 वीं शताब्दी के अंत में यूरोप में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कोयले के जलने के उसके बायप्रोडक्ट्स (धुएं में मौजूद जहरीले पदार्थ) ने दसुओपु ग्लेशियर तक अपनी पहुंच बना ली थी। यह ग्लेशियर लंदन से 10, 300 किलोमीटर दूर स्थित है। माना जाता है कि लंदन से ही औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी। अमेरिकी की ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के पोउलो गैब्रियल ने कहा, ‘औद्योगिकी क्रांति ऊर्जा के उपयोग की क्रांति थी और इसीलिए कोयले का दहन भी उत्सर्जन का एक प्रमुख कारण था, जो हवाओं के जरिये हिमालय तक पहुंच गया था।’ 

शोधकर्ताओं का दल एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय टीम का हिस्सा था। यह टीम 1997 में दसुओपु की यात्रा पर गई थी। इस दौरान शोधकर्ताओं ने समुद्र तल से लगभग 7200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस ग्लेशियर के आइस कोर तक खोदाई कर यहां की जलवायु का महत्वपूर्ण डाटा जुटाया था। दासुओपु चीन के शीशापंगमा में स्थित विश्व के 14 सबसे ऊंचे पर्वतों में से एक है। ये सभी ऊंचे पर्वत हिमालय में ही स्थित हैं। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 1997 में दसुओपु के कोर से जुटाए गए 23 धातुओं के नमूनों का विश्लेषण किया।

समय रेखा का काम करते हैं बर्फ के टुकड़े : शोधकर्ताओं ने कहा कि बर्फ के टुकड़े एक समय रेखा का काम करते हैं और निश्चित समय बाद परतों में परिवर्तित हो जाते हैं। ग्लेशियरों की खोदाई करने पर पता चलता है कि जितने नीचे से बर्फ के टुकड़ों को विश्लेषण के लिए एकत्र किया जाता है कि वह उतने ही पुराने समय की जलवायु के बारे में बता सकते हैं।

जंगलों की आग से हुआ नुकसान : गैब्रियल ने कहा कि 18वीं सदी में जनसंख्या विस्फोट भी हुआ और लोगों की आय का मुख्य जरिया खेती ही थी, जिसके कारण बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई हुई और खेतों के निर्माण के लिए लोगों ने जंगलों में आग भी लगाई गई। जिसके कारण वायुमंडल में कार्बन का स्तर काफी बढ़ गया और हवाएं चलने से यह कार्बन ग्लेशियरों तक पहुंच गया, जिसके कारण ग्लेशियर काफी प्रभावित हुए थे। अब जब उद्योग-धंधे बढ़ गए हैं तो इनकी स्थिति और खराब हो गई है।

जहरीली धातुओं की मौजूदगी : अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं पाया कि ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत यानी लगभग वर्ष 1780 के आसपास बर्फ में कैडमियम, क्रोमियम, निकिल और जिंक यानी जस्ते सहित कई जहरीली धातुएं भारी मात्रा में मौजूद थी। इनमें से ज्यादातर धातुएं कोयले के बायप्रोडक्ट्स हैं, जो 18 वीं शताब्दी के अंत में और 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि इसका मतलब है कि ये धातुएं हवा के जरिये पृथ्वी पर पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हुई आईं, जिसके कारण हिमालय के ग्लेशियर सबसे ज्यादा प्रभावित हळ्ए। हिमालयी ग्लेशियरों में जिंक की मात्रा बढ़ने के संबंध में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 18वीं सदी के अंत में भारी मात्रा में पेड़ों की कटाई और जंगलों की आग से कारण वायुमंडल में जिंक की मात्रा बढ़ी होगी।


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