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जलवायु परिवर्तन का घातक असर, नौ डिग्री तक बढ़ेगा तापमान, खत्‍म हो जाएगी यह प्रजाति

एक नए अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका में सर्वाधिक पाए जाने वाले जोशुआ के पेड़ों की प्रजाति इस सदी के अंत तक पूरी तरह से खत्‍म हो सकती है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 09:57 AM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2019 10:01 AM (IST)
जलवायु परिवर्तन का घातक असर, नौ डिग्री तक बढ़ेगा तापमान, खत्‍म हो जाएगी यह प्रजाति
जलवायु परिवर्तन का घातक असर, नौ डिग्री तक बढ़ेगा तापमान, खत्‍म हो जाएगी यह प्रजाति

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। जलवायु परिवर्तन के कारण न सिर्फ हिमालय पिघल रहे हैं बल्कि इसका असर पृथ्वी पर मौजूद पेड़-पौधों पर भी पड़ रहा है। एक नए अध्ययन के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका में सर्वाधिक पाए जाने वाले जोशुआ के पेड़ों की प्रजाति इस सदी के अंत तक पूरी तरह से गायब हो सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जोशुआ पूरी मानव प्रजाति के लिए एक आशा की किरण है। क्योंकि यह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में सक्षम है। 

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सरकारी पैनल के डाटा का किया इस्‍तेमाल 
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी शोधकर्ताओं की एक टीम ने जोशुआ ट्री पार्क में पेड़ों पर बढ़ती गर्मी के प्रभाव का आकलन किया है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन पर एक सरकारी पैनल द्वारा एकत्र किए गए डाटा का उपयोग किया। यह पार्क दक्षिणी कैलिफोर्निया में कोलोराडो से मोजावे रेगिस्तान तक फैला है। जोशुआ युक्का ब्रेविफोलिया नामक एक पौधे की प्रजाति है। यह वास्तविकता में पेड़ नहीं है, लेकिन कभी-कभी पेड़ की तरह ही दिखाई देते हैं।

80 फीसद जोशुआ के पेड़ समाप्त हो जाएंगे
वैज्ञानिकों की मानें तो जलवायु परिवर्तन (Climate Chang) के कारण इस सदी के अंत तक 80 फीसद जोशुआ के पेड़ समाप्त हो जाएंगे, जो कि एक चिंता का विषय है। यदि हम व्यापारिक नजरिये से देखें तो अध्ययन इस बात की ओर संकेत देता है कि इस सदी के अंत तक प्लाइस्टोसीन युग के इस पौधों (पेड़ों) की प्रजाति पूरी तरह खत्म हो सकती है। शोधकर्ताओं ने इन पेड़ों के खत्‍म होने से पैदा होने वाले खतरे को लेकर भी चेताया है। 

नौ डिग्री तक बढ़ सकता है तापमान 
इस अध्ययन के मुख्य लेखक लिन स्वीट ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का जोशुआ के पेड़ों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इसके कारण गर्मियों में औसतन पांच से नौ डिग्री फॉरेनहाइट (2.8 से 5 डिग्री सेल्सियस) की वृद्धि हो सकती है और बारिश में तीन से सात इंच तक की कमी दर्ज की जा सकती है। उन्होंने कहा कि यदि जोशुआ के पेड़ ऐसी परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं तो इसका मतलब है कि वह पहले से ही ऐसी परिस्थिति में रहने योग्य हैं।

मॉर्मन यात्रियों ने दिया था दूसरा नाम 
जोशुआ के पेड़ों का दूसरा नाम सेमिनल यू2 भी है। यह नाम मॉर्मन यात्रियों के एक समूह ने रखा है, जिन्होंने 19 वीं शताब्दी में मोजावे रेगिस्तान को पार किया था। उन्होंने इसे यह नाम इसलिए दिया क्योंकि इन पड़ों ने उन्हें यह याद दिलाया कि बाइबिल की जोशुआ ने प्रार्थना के दौरान अपने हाथों को ठीक उसी प्रकार आसमान की तरफ उठाया था जैसे इन पेड़ों की शाखाएं आसमान की ओर उठी रहती हैं।

जानवरों का आकार हो रहा छोटा 
इससे पहले किए गए एक अध्‍ययन में पाया गया था कि जलवायु परिवर्तन से लगातार जानवरों के शरीर का आकार छोटा हो रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ केपटाउन (यूसीटी) के शोधकर्ताओं ने 1976 से 1999 के बीच 23 सालों की अवधि तक जुटाए गए सुबूतों के आधार पर यह दावा किया था। उन्‍होंने दक्षिण अफ्रीका के वेस्टविले में पामिएट नदी के पास पाई जाने वाली माउंटेन वैजेट नामक पक्षी के आकार पर अध्ययन किया। जलवायु परिवर्तन का पृथ्वी और उसके पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ा है और पिछले 100 सालों में वैश्विक तापमान करीब एक डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। जीवाश्म रिकॉर्ड से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन से पिछले वर्षों में समुद्र और भूमि आधारित दोनों प्रकार के जानवर छोटे हुए हैं।

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