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बाढ़ व सूखे की भविष्यवाणी कर सकती है मेघालय की ये गुफा, 50 साल की रिसर्च में हुआ खुलासा

अमेरिका की वंडेंरबिल्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मेघालय की मावलुह गुफा के स्टलैग्माइट का अध्ययन कर डाटा इकट्ठा किया है। मेघालय को दुनिया में सबसे ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्र है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Fri, 29 Mar 2019 10:24 AM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2019 10:28 AM (IST)
बाढ़ व सूखे की भविष्यवाणी कर सकती है मेघालय की ये गुफा, 50 साल की रिसर्च में हुआ खुलासा
बाढ़ व सूखे की भविष्यवाणी कर सकती है मेघालय की ये गुफा, 50 साल की रिसर्च में हुआ खुलासा

वाशिंगटन, पीटीआइ। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि मेघालय की एक गुफा जलवायु परिवर्तन के अनसुलझे रहस्यों को उजागर करने में मदद कर सकती है। उनका कहना है कि इस गुफा के भीतर से स्टलैग्माइट (गुफा की छत के टपकने से बने खनिज, मिट्टी और चूना पत्थर के स्तंभ) का अध्ययन कर डाटा इकट्ठा करके भारत में मानसून पैटर्न, सूखे और बाढ़ की बेहतर भविष्यवाणी करने में मदद मिल सकती है।

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अमेरिका में वंडेरबिल्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मेघालय में मावलुह गुफा के भीतर पिछले 50 साल में स्टलैग्माइट (छत के टपकने से बने स्तंभ) के बढ़ रहे आकार का अध्ययन किया है। मेघालय को दुनिया में सबसे ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्र के रूप में माना जाता है। साइंटिफिक रिपोर्ट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पूर्वोत्तर भारत में सर्दी की बारिश और प्रशांत महासागर में जलवायु की स्थिति में एक असमान्य संबंध पाया गया। मावलुह गुफा और आस-पास के इलाके में स्टलैग्माइट का ढेर बारिश की घटनाओं की पुनरावृत्ति, पिछले कुछ हजार सालों में भारत में हुए सूखे की जानकारी देता है। भारत में कमजोर मानसून के बाद होने वाली सर्दी की बारिश किसानों को राहत देती है। भूमि और महासागर के बीच यह संबंध पूर्वोत्तर भारत में शुष्क मौसम वर्षा की मात्रा का अनुमान लगाने में मदद कर सकता है।

हर साल जून और सितंबर के बीच मानसून की बारिश भारत में लगभग 100 करोड़ लोगों को पानी उपलब्ध कराती है। भारत सहित मानसूनी क्षेत्रों में स्टलैग्माइट वैश्विक पर्यावरण तंत्र को समझने में मददगार हो सकता है और यह पर्यावरण में लगातार होने वाले परिवर्तन के बारे में भी जानकारी देता है।

वंडेरबिल्ट यूनिवर्सिटी में पीएचडी छात्र एली रॉने ने बताया कि गुफा के भीतर हवा और जल के प्रवाह से शुष्क मौसम में टपकने वाले चूने के ढेर को बढ़ने में मदद मिलती है इससे अंदर की परिस्थिति पर गहरा असर पड़ता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि उत्तर भारत में साल भर में होने वाली वर्षा के परिवर्तन के बारे में इन स्टलैग्माइट से मिलने वाली संभावित रूप से बड़ी जानकारी को अब तक नजरअंदाज किया गया है।


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