तापमान में वृद्धि के कारण मिट्टी में जमा कार्बन का भंडार तेजी से वातावरण में रहा घुल
वैज्ञानिकों का मानना है कि मिट्टी में रोगाणुओं की संख्या बढ़ने के कारण पौधों के कार्बन ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है।
वाशिंगटन [प्रेट्र]। दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन कम करने को लेकर बहस चल रही है। ऐसे में यह बात सामने आई है कि तापमान में वृद्धि के कारण मिट्टी में जमा कार्बन का भंडार तेजी से वातावरण में घुलता जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब जीवाणु टूटे पत्तों को खाते हैं और मृत पेड़-पौधों का अपघटन होता है तो कार्बन का भंडार कार्बन डाइआक्साइड में बदलकर वातावरण का हिस्सा बन जाता है।
25 साल में 1.2 प्रतिशत बढ़ी दर
जनरल नेचर में प्रकाशित शोध में वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रकार कार्बन के वातावरण में घुलने की दर पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन लेने से ज्यादा है। अमेरिका की पैसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लैबोरेटरी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि रोगाणुओं द्वारा मिट्टी में जमा कार्बन को वातारण में मिलाने की दर 1990 से 2014 तक करीब 25 साल में 1.2 प्रतिशत बढ़ गई है। धरती के इतिहास में वैश्विक स्तर पर इतने कम समय में ये परिवर्तन खतरनाक है।
यूं हुई जानकारी
पृथ्वी पर तापमान वृद्धि के प्रभाव का अध्ययन करने के दौरान वैज्ञानिकों को कार्बन के वातावरण में घुलने की जानकारी हुई। ज्वाइंट ग्लोबल चेंज रिसर्च इंस्टीट्यूट के बेन बॉन्ड लैंबर्टी का कहना है कि यह वास्तविक जगत में किया गया अध्ययन है। दुनिया भर में तापमान बढ़ने के कारण मिट्टी में जमा कार्बन डाइआक्साइड में बदलकर वातावरण में घुल रहा है।
धरती में दो गुना कार्बन
वैश्विक रूप से मिट्टी में पृथ्वी के वातावरण से दो गुना अधिक कार्बन पाया जाता है। जंगल में जितना कार्बन पेड़ों के जरिए जमीन के ऊपरी हिस्से में है, उससे ज्यादा जमीन के भीतर है।
मिट्टी में बढ़ रहे रोगाणु
यह शोध मिट्टी की श्वसन प्रक्रिया पर केंद्रित है। असल में मिट्टी श्वसन नहीं करती उसमें मौजूद रोगाणु और पौधे कार्बन को ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइआक्साइड छोड़ते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है मिट्टी के श्वसन की प्रक्रिया भी तेज हो जाती है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि मिट्टी में रोगाणुओं की संख्या बढ़ने के कारण पौधों के कार्बन ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है। बीते 25 सालों में रोगाणुओं की संख्या बढ़ने के कारण मिट्टी के श्वसन की प्रक्रिया 54 से 63 प्रतिशत बढ़ गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह स्थिति चिंताजनक है।