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अमेरिका के इस एक कदम से दुनिया के तमाम देशों के बीच बढ़ सकती है तल्खी

थल, जल और वायु से इतर दुनिया की महाशक्तियां अंतरिक्ष युद्ध की तैयारी में जुटी हैं। इससे दुनिया में अंतरिक्ष युद्ध का खतरा बढ़ गया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 25 Aug 2018 09:24 AM (IST)Updated: Sun, 26 Aug 2018 08:34 AM (IST)
अमेरिका के इस एक कदम से दुनिया के तमाम देशों के बीच बढ़ सकती है तल्खी

[डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव]। फिल्मों या वीडियो गेम में जिन लोगों ने अंतरिक्ष योद्धाओं को देखा होगा, उनके लिए अब यह हकीकत बनने जा रहा है। अत्याधुनिक हथियारों एवं नवीनतम तकनीक से सुसज्जित तथा सैन्य ताकत में अग्रणी अमेरिका ने अब अंतरिक्ष में होने वाली संभावित जंग के लिए तैयारी शुरूकर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन को अलग से अंतरिक्ष बल यानी स्पेस फोर्स तैयार करने का आदेश दिया है। ट्रंप ने अंतरिक्ष को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला बताया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह नहीं चाहते कि रूस, चीन या कोई अन्य देश इस क्षेत्र में हमें पीछे कर दे। पिछले दो दशकों में स्पेस में कई देशों का दखल बढ़ा है। अब अमेरिका सुदूर स्पेस में भी लीडर की भूमिका में होगा इसलिए वह स्पेस प्रोग्राम को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

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स्पेस फोर्स अमेरिकी सेना की छठी शाखा
स्पेस फोर्स गठित करने की प्रक्रिया तत्काल प्रारंभ करने के संबंध में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका के पास एयर फोर्स है लेकिन हमें उसके आगे जाना है। स्पेस फोर्स एयर फोर्स जैसी ही होगी। स्पेस फोर्स अमेरिकी सेना की छठी शाखा होगी। फिलहाल अमेरिकी सेना में कुल पांच शाखाएं हैं- वायु सेना, थल सेना, कोस्ट गार्ड, मरीन कॉप्र्स एवं नौसेना। अब स्पेस फोर्स छठी शाखा बनेगी। इसके लिए सबसे पहले इसी वर्ष अमेरिकी स्पेस कमांड बनाया जाएगा। अगले वर्ष तक इसे स्वतंत्र विभाग के तौर पर सेना में शामिल किया जाएगा। स्पेस फोर्स सैन्य विभाग की ऐसी शाखा होती है जो अंतरिक्ष में युद्ध करने में सक्षम होती है। अभी तक अंतरिक्ष संबंधी सभी मामले वायु सेना के अंतर्गत आते हैं। अब यह अलग सैन्य शाखा होगी जिसका कद वायु या थल सेना जितना ही होगा। वर्ष 2020 तक यह औपचारिक रूप से अमेरिकी सेना का अंग होगी।

फिलहाल अंतरिक्ष में अगला विश्व युद्ध होने की आशंका के मद्देनजर अमेरिका की तैयारियां जोरों पर हैं। इस नई सेना की तैनाती के पीछे रूस और चीन से मिलने वाला खतरा बड़ी वजह है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके समर्थकों को लगता है कि दोनों देश बड़ी संख्या में अंतरिक्ष में उपग्रह लांच कर रहे हैं। बीते दिनों अमेरिकी डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के निदेशक ने अमेरिकी सीनेट आर्म्ड सर्विसेज कमेटी को जानकारी दी थी कि रूस व चीन ऐसे हथियार विकसित कर रहे हैं जिसका इस्तेमाल वे स्पेस वार में कर सकते हैं।

अंतरिक्ष में अपने उपग्रहों की सुरक्षा करना
वर्तमान में अमेरिका संचार, नेविगेशन और गुप्त सूचनाओं के लिए उपग्रहों पर अत्यधिक निर्भर हो गया है। ऐसे में अमेरिका का चिंतित होना स्वाभाविक है क्योंकि अगर अमेरिकी उपग्रहों पर किसी तरह का आक्रमण हुआ तो अमेरिका की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। राष्ट्रपति ट्रंप पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे अपने उपग्रहों की सुरक्षा पुख्ता करने के लक्ष्य से इस नई सेना की तैनाती करना चाहते हैं।

विदित हो कि इस समय चार देशों के पास मिलिट्री स्पेस कमांड हैं। इनमें चीन के पास पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रेटजिक सपोर्ट फोर्स, रूस के पास रूसी एयरोस्पेस फोर्सेज व रूसी स्पेस फोर्सेज, फ्रांस के पास फ्रेंच ज्वाइंट स्पेस कमांड तथा इंग्लैंड के रॉयल एयर फोर्स आरएएफ एयर कमांड हैं। इन सभी फोर्सेज का काम अंतरिक्ष में अपने उपग्रहों की सुरक्षा करना व मिसाइलों से होने वाले हमले की निगरानी करना है। इसमें से रूस की स्पेस फोर्स वर्ष 1992 से 1997 तथा वर्ष 2001 से 2011 तक काफी सक्रिय रही थी।

803 अमेरिकी उपग्रह अंतरिक्ष में
चीन ने 2007 में एक पुराने उपग्रह को जमीन से मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल तुंग फुंग-21 से मार गिराया था। उस समय यह उपग्रह पृथ्वी से लगभग 860 किलोमीटर की उंचाई पर था। चीन ने ऐसा करने से पूर्व किसी भी देश को इसकी कोई जानकारी नहीं दी थी। इस तरह अंतरिक्ष में अपनी मारक क्षमता के क्षेत्र में चीन दुनिया की तीसरी ताकत के रूप में उभरा था। रूस व अमेरिका के पास ही तब तक ऐसी तकनीक थी क्योंकि ये दोनों देश शीत युद्ध के अंतिम दौर में इस तरह के अनेक परीक्षण कर चुके थे। अंतरिक्ष में अचूक निशाना साधकर चीन ने अमेरिकी श्रेष्ठता को जो चुनौती दी थी उससे अमेरिका चिंतित है। इस समय 803 अमेरिकी उपग्रह अंतरिक्ष में हैं। चीन के 204 उपग्रह अंतरिक्ष में हैं जबकि 142 उपग्रहों के साथ रूस तीसरे नंबर पर है।

अमेरिका, रूस और चीन अपनी इस क्षमता का प्रदर्शन कर चुके हैं जिसके तहत अंतरिक्ष में मौजूद किसी भी उपग्रह को धरती से मिसाइल दागकर तबाह किया गया हो। अमेरिका ने तो किसी यान को गिराने की रिसर्च तभी शुरू कर दी थी जब रूस ने 1957 में अपना पहला उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा था। इसके बाद रूस भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ा और कामयाब भी हुआ। वर्ष 2015 में उसने एंटी सेटेलाइट मिसाइल का भी सफल परीक्षण किया है। अमेरिका ने 13 सितंबर 1985 को अपना अंतिम उपग्रह भेदी परीक्षण किया था। इसके बाद अमेरिका ने इस कार्यक्रम को रोक दिया।

विश्व की दो महाशक्तियां आमने- सामने
ऐसी स्थितियों से यह सवाल खड़ा हो गया है कि अगर विश्व की दो महाशक्तियां आमने- सामने आती हैं तो युद्ध का स्वरूप क्या होगा? निश्चित है कि जमीनी लड़ाई में तो किसी भी परमाणु शक्ति संपन्न देश से पार पाना संभव नहीं होगा। इसलिए संसार की महाशक्तियां अंतरिक्ष में जंग लड़ने की तैयारी में जुट गई हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि वर्तमान में किसी देश का पत्ता तक उपग्रहों से ही खड़कता है। जब एक उपग्रह केवल इस उद्देश्य के साथ अंतरिक्ष में भेजा जाए कि वह वहां जाकर लक्षित उपग्रह को नुकसान पहुंचा सके तो ऐसा अवश्य होगा लेकिन इसमें हमलावर उपग्रह का भी नुकसान होगा।

इसलिए अब हर उपग्रह को भेजने से पहले उसे अत्याधुनिक तरीकों से सुसज्जित करना पड़ेगा। कई देश इसकी तैयारी में भी जुटे हैं। दुनियाभर में जारी इस तरह की गतिविधियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि इन पर लगाम लगाने की जरूरत है। इसलिए समूचे संसार के लिए यही उचित होगा कि अंतरिक्ष का सैन्यीकरण रोकने के लिए समझौता किया जाए, अन्यथा दुनिया के अन्य देश भी ऐसी तकनीक हासिल करके अंतरिक्ष में आधिपत्य कायम करने की तैयारी में जुट जाएंगे।

थल, जल और वायु से इतर दुनिया की महाशक्तियां अंतरिक्ष युद्ध की तैयारी में जुटी हैं। रूस और चीन भी इस मामले में आगे बढ़ चुके हैं, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने तो बाकायदा इसके लिए रक्षा मंत्रालय को अलग से स्पेस फोर्स तैयार करने का आदेश दिया है। इससे दुनिया में अंतरिक्ष युद्ध का खतरा बढ़ गया है। आशंका यह भी है कि अन्य विकसित देश भी इस होड़ में शामिल हो सकते हैं, लिहाजा इसे रोकने के लिए समय रहते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहल की जरूरत है।  

[प्राध्यापक, सैन्य विज्ञान विषय]


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