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अवसाद रोधी दवाएं लेने से बचें हृदय रोगी, तीन गुना तक बढ़ता है मौत का खतरा

शोध के लेखक कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हास्पिटल डेनमार्क के डाक्टर पर्निल फेवेजल क्रामहौट ने बताया कि हमारे अध्ययन में पता चला है कि हृदय रोगियों में साइकोट्रापिक ड्रग्स (मनोचिकित्सीय दवाएं) का इस्तेमाल बड़ी ही सामान्य बात है। लगभग हर तीसरे हृदय रोगी में बेचैनी के लक्षण होते हैं।

By Neel RajputEdited By: Published: Thu, 13 Jan 2022 01:21 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jan 2022 01:21 PM (IST)
अवसाद रोधी दवाएं लेने से बचें हृदय रोगी, तीन गुना तक बढ़ता है मौत का खतरा
बेचैनी के शिकार हृदय रोगी ज्यादा इस्तेमाल करते हैं मेंटल हेल्थ ड्रग्स (प्रतीकात्मक तस्वीर)

वाशिंगटन, एएनआइ। अवसाद रोधी तथा मानसिक रोगों की अन्य रोगों की दवाएं हृदय रोगियों के लिए बड़ा घातक साबित होता है। एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, इन दवाओं से हृदय रोगियों में जल्दी मौत का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है। यह निष्कर्ष यूरोपियन जर्नल आफ कार्डियोवस्कुलर नर्सिंग में प्रकाशित हुआ है।

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शोध के लेखक कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हास्पिटल, डेनमार्क के डाक्टर पर्निल फेवेजल क्रामहौट ने बताया कि हमारे अध्ययन में पता चला है कि हृदय रोगियों में साइकोट्रापिक ड्रग्स (मनोचिकित्सीय दवाएं) का इस्तेमाल बड़ी ही सामान्य बात है। लगभग हर तीसरे हृदय रोगी में बेचैनी के लक्षण होते हैं। इसलिए जरूरी है कि हृदय रोगियों की मनोविकार संबंधी जांच सुव्यवस्थित तरीके से होनी चाहिए और इसके साथ ही उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्या वे साइकोट्रापिक ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं और यदि हां तो किस कारण से।

उन्होंने कहा कि यह याद रखना चाहिए कि जब हृदय रोगियों को साइकोट्रापिक ड्रग्स लेने की सलाह दी जाती है तो उससे उसकी मौत का खतरा भी बढ़ सकता है। हालांकि इस बात को लेकर आगे और शोध की जरूरत है कि मौत की ज्यादा दर का कारण साइकोट्रापिक ड्रग्स है या फिर मानसिक बीमारी। पहले के अध्ययनों में यह पाया गया कि हृदय रोगियों में बेचैनी के लक्षणों से खराब स्वास्थ्य यहां तक कि मौत का खतरा भी जुड़ा है। इन अध्ययनों को इस परिप्रेक्ष्य में देखा गया कि क्या इसके संबंध की व्याख्या साइकोट्रापिक ड्रग्स के इस्तेमाल के संदर्भ में की जा सकती है।

कैसे किया अध्ययन : अध्ययन में डेनहार्ट नेशनल सर्वे के तहत इस्केमिक हार्ट डिजीज, हार्ट फेल्यर या वाल्व संबंधी 12,913 हृदय रोगियों को शामिल किया गया। इन सभी प्रतिभागियों से हास्पिटल से छुट्टी मिलते वक्त एक प्रश्नावली भरवाई गई और उन्हें हास्पिटल एनेक्सिटी एंड डिप्रेशन स्केल पर बेचैनी के लक्षणों के संदर्भ में आठ या उससे अधिक स्कोर पाने के अनुसार वर्गीकृत किया गया। इन लोगों के अस्पताल में दाखिल होने से छह महीने पहले अवसाद रोधी या मानसिक रोगों की दवाएं लेने के संबंध में नेशनल रजिस्टर से सूचनाएं एकत्रित की गईं। अस्पताल से छुट्टी मिलने के एक साल बाद तक उनकी मौतों के कारणों का फालोअप किया गया।

क्या निकला परिणाम

शोधकर्ताओं ने पाया कि 2,335 (18 प्रतिशत) प्रतिभागियों ने अस्पताल में भर्ती होने से छह महीने पहले कम से कम एक साइकोट्रापिक दवा लीं। इन दवाओं का प्रयोग महिलाओं, बुजुर्गो और कम पढ़े-लिखे लोगों में ज्यादा रहा था। करीब एक तिहाई हृदय रोगी (32 प्रतिशत) बेचैनी की शिकायत वाले थे। बेचैनी के शिकार लोगों ने साइकोट्रापिक ड्रग्स का इस्तेमाल बगैर बेचैनी वालों की तुलना में दोगुनी (28 प्रतिशत) ज्यादा किया।

प्रतिभागियों में से 362 रोगियों (तीन प्रतिशत) की मौत अस्पताल से छुट्टी मिलने के एक साल के भीतर हो गई। साइकोट्रापिक ड्रग्स इस्तेमाल करने वाले लोगों की एक साल के भीतर मौत की दर उल्लेखनीय रूप से ज्यादा (छह प्रतिशत) थी, जबकि उन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करने वालों की मौत की दर दो प्रतिशत ही पाई गई। इतना ही नहीं, जिन लोगों ने अस्पताल में भर्ती होने से छह माह पहले तक कम से कम एक साइकोट्रापिक ड्रग ली, उनकी किसी भी कारण से मौत की दर 1.9 प्रतिशत ज्यादा रही। वहीं, उस समयावधि में बेचैनी की शिकायत वाले रोगियों की मौत 1.81 प्रतिशत अधिक रही।

साइकोट्रापिक ड्रग्स के प्रयोग में सतर्कता जरूरी।


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