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Amnesty International: अमनेस्टी ने पाकिस्तान को लगाई फटकार, कहा- शांतिपूर्ण धरना करने वालों पर कार्रवाई करना बंद करो

अमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय निदेशक दिनुषिका दिसानायके ने कहा कि सरकारी संस्थानों की लापरवाही के कारण उन्हें निराशा का सामना करना पड़ता है। पाकिस्तान में लोगों के गायब होने की प्रथा मुशर्रफ सरकार से चल रही है।

By Shivam YadavEdited By: Published: Fri, 12 Aug 2022 11:56 AM (IST)Updated: Fri, 12 Aug 2022 11:56 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल (फाइल फोटो)

वाशिंगटन (एजेंसी)। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने पाकिस्तान (Pakistan) को एक रिपोर्ट भेजकर कड़ी फटकार लगाई है। अमनेस्टी ने कहा कि अपनों को खोने वाले लोगों के शांतिपूर्ण धरनाें पर पाकिस्तानी प्राधिकारी कार्रवाई करना बंद करें और कहा कि लोगों को जबरन गायब कर दिया जाना अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का गंभीर उल्लंघन है, यह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यह अपराध है।

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'Braving the Storm: Enforced Disappearances and the Right to Protest' के शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट में मानव अधिकारों की निगरानी करने वाली संस्था अमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि पाकिस्तान सरकार की यह जिम्मेदारी है कि कैद में रखे गए सभी कैदियों को उनकी गिरफ्तारी या नजरबंदी का कारण बताना चाहिए और उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी के साथ वकील भी मुहैया कराए। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि पाकिस्तान ने उन परिवारों के साथ अत्याचार किया है, जो अपनों के लिए शांतिपूर्ण धरना करते हैं।

मानव अधिकारों के समर्थकों पर की गई कार्रवाई

अमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, पाकिस्तान के खुफिया विभाग ने मानव अधिकारों की रक्षा करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं, छात्राें और पत्रकारों को जबरन गायब किया है, उनमें से कईयों के बारे में अभी तक कोई जानकारी भी सामने नहीं है। अमनेस्टी की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि पाकिस्तान पुलिस और खुफिया विभाग ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और नियमों का उल्लंघन करते हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों को जबरन गायब किया।

क्रूर व्यवहार के कारण अन्याय में होती है वृद्धि: दिसानायके

अमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय निदेशक दिनुषिका दिसानायके (Dinushika Dissanayake) ने अपने एक बयान में कहा, ‘लापता लोगों के परिवारों को उनकी न्याय तक पहुंच की कमी, जांच आयोग की अयोग्यता, सरकारी संस्थानों की लापरवाही के कारण उन्हें निराशा का सामना करना पड़ता है।’ दिसानायके ने कहा, ‘ऐसे परिवारों के साथ क्रूर व्यवहार के कारण अन्याय में वृद्धि होती है। इसलिए शांतिपूर्ण विरोधों पर कार्रवाई तुरंत प्रभाव से बंद होनी चाहिए।’

रिपोर्ट में कहा गया, ‘पाकिस्तान सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपराधिक जांच केवल अपराधियों तक सीमित न होकर अपराध में संदिग्ध भूमिका वाले लोगों की भी जांच होनी चाहिए। उन अधिकारियों पर कार्रवाई जो अपराध होने की संभावना को जानते थे, इसके बावजूद उस पर कार्रवाई नहीं की।’

अमनेस्टी ने पाकिस्तान सरकार को लोगों की शांतिपूर्ण सभा के अधिकार पर कहा कि सरकार बिना किसी भेदभाव के लोगों की रैलियों और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार और सुविधा की गारंटी दे। मानवाधिकार के रक्षक ने कहा, ‘कुछ मामलों में अधिकारियों ने लोगों को विरोध-प्रदर्शन करने से रोकने के लिए गिरफ्तारी या हिरासत में लेने का सहारा लिया। सरकार को इस तरह मनमाने तरीके से कार्रवाई नहीं करनी चाहिए’।

मुशर्रफ सरकार के दौरान शुरू हुआ लोगों के गायब होने का सिलसिला

बता दें कि अमनेस्टी पाकिस्तान सरकार से यह लंबे समय से कहता आ रहा है कि प्रदर्शनकारियों को जबरन गायब करने की कार्रवाई को बंद कर इसे गैरकानूनी घोषित करे। उल्लेखनीय है कि लोगों के गायब होने का सिलसिला पाकिस्तान में मुशर्रफ सरकार (1999-2008) के दौरान शुरू हुआ, जो अब तक जारी है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पाकिस्तान के कानून प्रवर्तन एजेंसियां इस तरह की कार्रवाई के लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे इसे रोकने में विफल रही हैं।

लोगों को जबरन गायब करने की कार्रवाई का इस्तेमाल उन लोगों के खिलाफ किया गया, जिन्होंने ताकतवर सेना के गठन पर सवाल उठाए या जिन्होंने अधिकारों की बात रखी। ऐसे मामले बलूचिस्तान और पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा में प्रमुख रूप से दर्ज किए गए हैं। गायब होने वाले लोगों में वे लोग शामिल हैं जो सक्रिय अलगाववादी आंदोलनों की मेजबानी करते रहे हैं।


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