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अल्जाइमर का मिलेगा सटीक इलाज, शोधकर्ताओं ने बताया- बीमारी की जांच में भी मिलेगी मदद

केस वेस्टर्न रिजर्व स्कूल आफ मेडिसिन में डिपार्टमेंट आफ पैथोलाजी न्यूरोलाजी एंड न्यूरोसाइंसेज के प्रोफेसर जिरी सफर के मुताबिक पहली बार हमने टेस्ट ट्यूब में टाउ प्रोटीन के व्यवहार और रोगियों के क्लिनिकल समयावधि में संबंध स्थापित किया है।

By Neel RajputEdited By: Published: Fri, 07 Jan 2022 02:48 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jan 2022 02:48 PM (IST)
नए इलाज की संभावना। (फोटो : दैनिक जागरण)

ओहियो (अमेरिका), एएनआइ। चूंकि उम्र का बढ़ना रोका नहीं जा सकता, इसलिए उससे जुड़े रोगों की रोकथाम भी बड़ा कठिन है। लेकिन उन रोगों की सही समय पर पहचान हो जाए तो उसके बढ़ने की गति को थामना संभव हो सकता है। अल्जाइमर भी इसी प्रकार का एक रोग है, जो बढ़ती उम्र के साथ तंत्रिका तंत्र से जुड़ा है और इसमें संज्ञानात्मक या स्मरण शक्ति कमजोर पड़ने लगती है। इस रोग की पहचान और उसके सटीक इलाज की खोज की दिशा में शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण लिंक तलाशने का दावा किया है। उन्होंने पाया है कि विकृति वाले स्ट्रेन और टाउ नामक एक विशिष्ट प्रोटीन के तेजी से बढ़ने (रेप्लीकेशन) का संबंध संज्ञानात्मक शक्ति में तेजी से हृास होने से है। इस निष्कर्ष के आधार पर बीमारी की ज्यादा सटीक जांच और इलाज खोजने में मदद मिल सकती है। यह शोध ‘साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन जर्नल’ में प्रकाशित हुआ है।

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केस वेस्टर्न रिजर्व स्कूल आफ मेडिसिन में डिपार्टमेंट आफ पैथोलाजी, न्यूरोलाजी एंड न्यूरोसाइंसेज के प्रोफेसर जिरी सफर के मुताबिक, पहली बार हमने टेस्ट ट्यूब में टाउ प्रोटीन के व्यवहार और रोगियों के क्लिनिकल समयावधि में संबंध स्थापित किया है। सामान्यतौर पर बताया जाता है कि अल्जाइमर कोई एक बीमारी नहीं है। यह एक स्पेक्ट्रम के जैसा है और विभिन्न मामलों में इसके बढ़ने के अलग-अलग जैविक कारक होते हैं। इसलिए उन्हें अलग बीमारी के रूप में ही देखा जाना चाहिए। ऐसे में इस बीमारी को विभिन्न वर्गों में बांटकर समझना होगा, तभी पता लगेगा कि पीड़ित में अल्जाइमर की सही स्थिति क्या है?

सफर को उम्मीद है कि इस शोध से उस धारणा को खारिज करने में मदद मिलेगी, जिसमें कहा जाता है कि अल्जाइमर रोग से पीड़ितों में धीरे-धीरे 8-10 सालों में ह्रास दिखता है। जबकि 10 से 30 प्रतिशत लोगों में यह रोग तेजी से बढ़ता है। सफर और उनके सहयोगियों ने पाया कि प्रिओन प्रोटीन जब गलत तरीके से मुड़ जाता है तो वह रेप्लीकेट होकर मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होंने इस सिद्धांत और टूल का इस्तेमाल अल्जाइमर में टाउ प्रोटीन के संदर्भ में किया।

बता दें कि प्रिओन एक वायरस के समान संक्रामक प्रोटीन है, लेकिन उसमें न्यूक्लिक एसिड नहीं होता है। इसे भेड़ में घातक खुजली वाली बीमारी स्क्रैपी तथा तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाला कारक माना जाता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, प्रिओन के शोध से अल्जाइमर, पार्किसंस तथा तंत्रिका तंत्र की कमजोरी के कारण होने वाली अन्य बीमारियों को समझने का एक नया मानक बनाने में मदद मिली।

जीनेटिक तथा पर्यावरणीय कारकों से अल्जाइमर के जोखिम के करीब 30 प्रतिशत मामलों को समझा जा सकता है, लेकिन इस ताजा शोध से बाकी 70 प्रतिशत मामलों के बारे में भी सटीक जानकारी मिलेगी। शोधकर्ताओं ने अल्जाइमर से पीड़ित रहे 40 मृत लोगों के मस्तिष्क का अध्ययन किया। इनमें तकरीबन आधे में संज्ञानात्मक ह्रास धीरे-धीरे हुआ था, जबकि शेष में वह ह्रास महज तीन वर्षो के भीतर हुआ। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों में संज्ञानात्मक ह्रास तेजी से हुआ, उनमें टाउ प्रोटीन कण का आकार अलग था। मतलब उनकी आकृति और संयोजन या संगठन अलग था। यह भी पाया कि यह टेस्ट ट्यूब में तेजी से बढ़ता भी है।


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