विश्व की पेयजल आपूर्ति का 25 फीसद हिस्सा भी अब नहीं रहा सुरक्षित, जानें वजह
शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि भूजल में भी माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है, जो हमारे शरीर को हानि पहुंचाकर कई बीमारियों का शिकार बना सकता है।
वाशिंगटन, प्रेट्र। प्लास्टिक आज वैश्विक स्तर की बड़ी समस्या बन गई है। यह समस्या किस स्तर पर विकराल हो रही है इसका पता एक नवीन अध्ययन से चला है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि भूजल में भी माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है, जो हमारे शरीर को हानि पहुंचाकर कई बीमारियों का शिकार बना सकता है। बता दें कि कुल वैश्विक पेयजल की 25 फीसद आपूर्ति भूजल से होती है। अभी तक धरती की सतह पर मौजूद पानी ही माइक्रोप्लास्टिक से दूषित पाया जाता था, लेकिन शोधकर्ताओं के नवीन अध्ययन ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है।
ग्राउंडवाटर नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने अमेरिका के भूजल स्रोतों का अध्ययन किया तो यह सामने आया कि जल में माइक्रोप्लास्टिक विभिन्न अवयवों के रूप में मौजूद है। अमेरिका की इलिनोइस सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी सेंटर के शोधकर्ता जॉन स्कॉट के मुताबिक, वातावरण में मौजूद प्लास्टिक टूटकर माइक्रोप्लास्टिक बन जाता है। यह माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों की आंत और गलफड़ों में जमा होता है और उनके जीवन के लिए खतरा पैदा करता है।
उन्होंने बताया कि जैसे ही प्लास्टिक टूटता है, वह एक स्पंज का काम करने लगता है और अपने अंदर बहुत से दूषित पदार्थों और रोगाणुओं को सोख लेता है। इसके बाद यही माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों में से होकर हमारी फूड चेन का हिस्सा बन जाता है। भूजल चट्टानों की दरारों से बहता है और यहीं से यह माइक्रोप्लास्टिक की चपेट में आ जाता है।
शोधकर्ताओं ने अमेरिका के कुओं और झरनों से भूजल के 17 नमूने एकत्र किए। सामने आया कि सभी 17 नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है। सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक झरनों से लिए गए नमूनों में मिला। यहां पर प्रति लीटर में 15.2 कणों की अधिकतम सांद्रता मिली।
शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर आज से ही प्लास्टिक का उपयोग बंद कर दिया जाए तब भी वर्षों तक इस समस्या से निपटना होगा। उन्होंने बताया कि 1940 के बाद से औसतन 63 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा दुनियाभर में निकला है और इसका 79 प्रतिशत अब प्राकृतिक वातावरण में मिल गया है।
कब और कैसे आया दुनिया में प्लास्टिक
अब सवाल ये उठता है कि प्लास्टिक आखिर दुनिया में क्यों और कब आया? प्लास्टिक की कहानी बहुत पुरानी है। जानकारी के मुताबिक 1600 ईसा पूर्व में प्राकृतिक रूप से रबर के पेड़ों से मिलने वाले रबर, माइक्रोसेल्यूलोज, कोलेजन और गैलालाइट आदि के मिश्रण से प्लास्टिक जैसी किसी चीज को तैयार किया गया था, जिसका इस्तेमाल बॉल, बैंड और मूर्तियां बनाने में किया जाता था। आज हम जिस आधुनिक प्लास्टिक के विविध रूपों को देख रहे हैं, उसके आरम्भिक आविष्कार का श्रेय ब्रिटेन के वैज्ञानिक अलेक्जेंडर पार्क्स को जाता है। उन्होंने इसे नाइट्रोसेल्यूलोज कहा, जिसे उनके सम्मान में पार्केसाइन कहा जाने लगा।
कितनी बड़ी है प्लास्टिक की दुनिया....
दुनिया में कितनी प्लास्टिक बनती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हम अपने पूरे तेल उत्पादन का आठ फ़ीसदी हिस्सा प्लास्टिक उत्पादन में लगाते हैं। बैकेलाइट कॉरपोरेशन ने प्लास्टिक के प्रचार के लिए कहा कि इस अविष्कार से मानव ने जीव, खनिज और सब्जियों की सीमा के पार एक नई दुनिया खोज ली है जिसकी सीमाएं अपार हैं। ये बात अतिश्योक्ति जैसी लगती है, लेकिन ये बात पूरी तरह सच थी।
कैसे जहरीला हो जाता है प्लास्टिक...
पानी में न घुल पाने और बायोकेमिकली ऐक्टिव न होने की वजह से प्योर प्लास्टिक बेहद कम जहरीला होता है। लेकिन जब इसमें दूसरी तरह के प्लास्टिक और कलर आदि मिला दिए जाते हैं तो यह नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। प्लास्टिक मूल रूप से जहरीला या हानिरहित नहीं होता है लेकिन प्लास्टिक की थैलियां रंगों और रंजक, धातुओं और अन्य अकार्बनिक रसायनों से बनी होती हैं। रासायनिक पदार्थ और रंग, जो आमतौर पर प्लास्टिक उत्पादों के गुणों में सुधार लाने और मिट्टी को घुलनशील बनाने के इरादे से मिश्रित होते हैं, अक्सर स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव डालते हैं।