गलत उम्मीदवार तृणमूल के लिए बन गयी है गले की फांस
कन्हैया लाल अग्रवाल को बाहरी बताकर खुलकर हो रहा है विरोध
-कन्हैया लाल अग्रवाल को बाहरी बताकर खुलकर हो रहा है विरोध
-अरिंदम सरकार को उम्मीदवार बनाने की उठ रही है मांग
-ईटाहार में अमल आचार्य को टिकट नहीं मिलने से एक तबका नाखुश
-करणदिघी के विधायक ने सीधे दीदी पर छल करने का लगाया आरोप
संवाद सूत्र,संजीव झा: तृणमूल उम्मीदवार की घोषणा कहीं पार्टी के लिए हार का सबब न बन जाए। इस बात का मलाल जहां पार्टी के एकनिष्ठ कार्यकताओं में घर कर रहा है वहीं राजनीतिक विश्लेषक इसे प्रदेश में राजनीतिक समीकरण गड़बड़ाने का कारण मान रहे है। उत्तर दिनाजपुर जिला में यह मुद्दा अभी चर्चा का प्रमुख विषय बना हुआ है। ईटाहार, रायगंज, चाकुलिया, करनदिघी के बाद अब हेमतावाद में घोषित उम्मीदवारों के विरोध में पार्टी के ही नेता कार्यकर्ता खुलकर विरोध जता रहे हैं। रायगंज में तृणमूल उम्मीदवार और तृका जिलाध्यक्ष कन्हैयालाल अग्रवाल को बाहरी बताकर अरिंदम सरकार को प्रार्थी बनाने की माग उठ रही है। यहां तक कि स्थानीय कार्यकर्ता कई पार्टी कार्यालय में ताला लगाकर सारे कार्यक्रम से मुंह फेर लिया है। स्वयं रायगंज नपा उपाध्यक्ष व तृणमूल श्रमिक संगठन के जिलाध्यक्ष अरिंदम सरकार ने जिला नेतृत्व पर विश्वासघात करने का तोहमत लगा रहे है। उनका कहना है कि वें शीर्ष नेतृत्वों के कहने पर इलाके में जनसेवा करते आ रहे हैं। कन्हैयालाल अग्रवाल रायगंज से खड़े न होने का दंभ भरते रहे। लेकिन ऐन वक्त पर वे पलटी मार गए। उनका यहां से खड़ा होना भाजपा के जीत के लिए रास्ता आसान कर दिया।
ईटाहार के विधायक अमल आचार्य को टिकट नहीं मिलने से इलाके के अधिकाश कार्यकर्ता चुप्पी साध ली है। वें घोषित उम्मीदवार मुसर्ररफ हुसैन को किसी कीमत पर मानने के लिए तैयार नहीं हैं। हालाकि अमल आचार्य खुद कुछ नहीं बोल रहे है। लेकिन उनके समर्थक सड़कों पर उतरकर विरोध जताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
करणदिघी के विधायक मनोदेव सिंह तो सीधे मुख्यमंत्री पर छल का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने मीडिया को बताया कि हाल ही में मुख्यमंत्री ने उनसे कहा कि तुम ही उम्मीदवार बनोगे, लेकिन उनके स्थान पर गौतम पाल को बनाया गया। उनसे क्या ऐसी खता हो गई कि बाहरी लोग को टिकट दिया गया। मनोदेव सिंह के समर्थक गौतम पाल को वापस जाने की नारेबाजी शुरू कर दिए हैं।
चाकुलिया और हेमताबाद में भी एक ही चित्र देखने को मिल रहा है। इसको लेकर पार्टी के अंदर बगावत की ऐसी आग धधकने लगी है कि संभालना मुश्किल हो जाएगा। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इसका फायदा भाजपा या अन्य विरोधी दलों को मिलेगा या नहीं,यह तो उनके पत्ते खुलने के बाद ही स्पष्ट होगा। लेकिन इस बात में संदेह की गुंजाइश नहीं रही कि तृणमूल को इसका खामियाजा जरूर भुगतना पड़ेगा। हो सकता है पी के टीम की समीक्षा या इनके शुभेन्दु प्रेम की आशका पार्टी के शीर्ष नेतृत्वों को ऐसा करने पर मजबूर किया हो। परंतु फिलहाल इस निर्णय से उत्पन्न अंदरूनी कलह से निपटना कठिन है।