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भाजपा के कृष्ण अब तृणमूल शिविर में बांसुरी बजाएंगे

-भाजपा में सिर्फ षडयंत्र का परिवेश है जिसमें टिकना मुश्किल कृष्ण कल्याणी संवाद सूत्ररायगं

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Oct 2021 07:12 PM (IST)Updated: Wed, 27 Oct 2021 07:12 PM (IST)
भाजपा के कृष्ण अब तृणमूल शिविर में बांसुरी बजाएंगे

-भाजपा में सिर्फ षडयंत्र का परिवेश है, जिसमें टिकना मुश्किल : कृष्ण कल्याणी

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संवाद सूत्र,रायगंज:अब भाजपा के कृष्ण तृणमूल का कल्याण करेंगे। तृणमूल के शिविर में बासुरी बजाते नजर आएंगे। सारे कयासों को सच साबित करते हुए रायगंज के भाजपा विधायक कृष्ण कल्याणी बुधवार को कोलकाता में तृणमूल के प्रदेश महासचिव पार्थ चट्टोपाध्याय के हाथों तृणमूल में शामिल हो गए। इस अवसर पर तृणमूल के हिन्दी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष व जोड़ासाका के विधायक विवेक गुप्ता भी मौजूद थे। इसी के साथ उत्तर दिनाजपुर जिला में भाजपा का स्कोर शून्य हो गया। स्मरण रहे कि इस साल के विधानसभा चुनाव में उत्तर दिनाजपुर जिला के नौ सीटों में से तृणमूल के सात और भाजपा के दो उम्मीदवार जीते थे। कालियागंज के भाजपा विधायक सौमेन राय पहले ही तृणमूल में शामिल हो चुके हैं, अब कृष्ण कल्याणी ने पाला बदला। हालाकि कृष्ण कल्याणी 01 अक्टूबर को ही भाजपा छोड़ने का ऐलान कर चुके थे लेकिन किस पार्टी में जाएंगे इस बात को गुप्त रखा गया था। कयासों से यह स्पष्ट हो चुका था कि उनकी जल्द ही घर वापसी यानी तृणमूल में जाना तय है जो आज सच साबित हो गया। तृणमूल छोड़ने का कारण उन्होंने बताया कि भाजपा में अच्छे काम करने वाले के लिए कोई जगह नहीं है , वहां सिर्फ षडयंत्र का परिवेश है, जिसमें टिकना मुश्किल है। दूसरी ओर तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी जिस तरह से विभिन्न योजनाओं के माध्यम से हर वर्ग के लोगों के साथ है, इससे वे अभिभूत होकर तृणमूल में शामिल होने का निर्णय लिया। बताते चलें कि कृष्ण कल्याणी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तृणमूल को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और रायगंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर दो हैवीवेट नेता, काग्रेस के जिलाध्यक्ष मोहित सेनगुप्त और तृणमूल के जिलाध्यक्ष कन्हैयालाल अग्रवाल को भारी मतों से पराजित कर अपनी जीत हासिल की थी। वे मुख्यत: व्यावसायिक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और विभिन्न जन सेवा मूलक कायरें से युक्त रहे हैं। यही कारण है कि जनता ने उनका भरपूर समर्थन किया। पिता से विरासत में मिली राजनीतिक समझ उन्हें और भी सियासी माहिर खिलाड़ी बना दिया। विधायक बनने के कुछ ही महीने बाद अचानक स्थानीय सासद व पूर्व केन्द्रीय मंत्री देवश्री चौधरी से उनका मतभेद शुरू हो गया और धीरे - धीरे यह दूरी दीर्घ होता चला गया। सितंबर माह में वे भाजपा के समस्त कार्यसूची से खुद को अलग कर लिए और अक्टूबर के पहली तारीख को यह कहते हुए भाजपा छोड़ने का ऐलान कर दिए कि जहाँ देवश्री चौधरी रहेंगी वहा उनका रहना नामुमकिन है।

कैप्शन : विधायक को पार्टी का झंडा थमाते पार्थ चटर्जी


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