सुवेंदु अधिकारी के पूर्व अंगरक्षक दिवंगत शुभब्रत की पत्नी ने तीन साल बाद अचानक क्यों प्राथमिकी दर्ज कराई?
न्यायाधीश राजशेखर मंथा ने सवाल किया कि दिवंगत शुभब्रत की पत्नी ने तीन साल बाद अचानक क्यों प्राथमिकी दर्ज कराई है? यह तो एक आत्महत्या था? ऐसे कौन-कौन से तथ्य सामने आए कि उन्होंने हत्या का आरोप लगा दिया?
कोलकाता, स्टेट ब्यूरो। तीन वर्ष पुराने आत्महत्या के मामले में नए सिरे से हत्या की प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू करने को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने सवाल उठाया है। यह मामला भाजपा विधायक व नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी से जुड़ा है जिसमें पूछताछ के लिए सोमवार को सीआइडी ने उन्हें तलब किया था। अक्टूबर 2018 में सुवेंदु अधिकारी के पूर्व अंगरक्षक शुभब्रत चक्रवर्ती ने कथित तौर पर खुद को गोली मार कर खुदकुशी कर ली थी। उस मामले में अभी कुछ माह पहले नए सिरे से हत्या की प्राथमिकी दर्ज की गई और जांच सीआइडी कर रही है।
इसी को लेकर हाई कोर्ट के न्यायाधीश राजशेखर मंथा ने सवाल किया कि दिवंगत शुभब्रत की पत्नी ने तीन साल बाद अचानक क्यों प्राथमिकी दर्ज कराई है? यह तो एक आत्महत्या थी? ऐसे कौन-कौन से तथ्य सामने आए कि उन्होंने हत्या का आरोप लगा दिया? किस आधार पर मामले की दोबारा जांच शुरू की गई? जिनके नाम पर कोई शिकायत नहीं है। एफआइआर में नाम नहीं है। उस मामले में पूछताछ के लिए बुलाने का क्या कारण है?
न्यायाधीश ने यह भी टिप्पणी की कि कई मामलों में गिरफ्तारी बदले की भावना से की जाती है। गिरफ्तार कर धमकाया जाता है। इस मामले में कोर्ट को सोचना पड़ रहा है। यहां तक कि हाईकोर्ट ने सीआइडी जांच को लेकर भी सवाल उठाए हैं। जज के शब्दों में सीआइडी को जांच की जिम्मेदारी देने का क्या कारण है? क्या सीआइडी अचानक कूद कर जांच कर सकती है? इस बिंदु पर अदालत यह नहीं कहेगी कि जांच अनावश्यक है, लेकिन आपको यह जानने की जरूरत है कि ऐसा क्यों हुआ? आप यही कहना चाहते हैं कि भगवान के कमरे में कौन है? इन सभी सवालों का जवाब जस्टिस मंथा ने मागा है। उन्होंने राज्य को छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
दरअसल,यह सवाल सुवेंदु ने खुद के खिलाफ तृणमूल और बंगाल सरकार की ओर से दायर किए गए पांच मामलों की जांच सीबीआइ से कराने की मांग करते हुए हाई कोर्ट से गुहार लगाई थी। उसी याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने तीन मामलों पर स्थगन लगाते हुए दो मामलों पर किसी तरह की सख्त कार्रवाई पर रोक लगा दी है। यानी बंगाल पुलिस और सीआइडी सुवेंदु के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकती। यही नहीं हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि भविष्य में भी यदि कोई और मुकदमा सुवेंदु के खिलाफ दर्ज होता है तो अदालत की अनुमति के बिना कोई भी कार्रवाई नहीं की जा सकती। हाई कोर्ट की इस टिप्पणी से राज्य पुलिस प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा हो गए हैं।