West Bengal Politics: गोवा व त्रिपुरा में शिकस्त के बाद तृणमूल की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा पर फिरा पानी
बंगाल में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में मिली बंपर जीत के बाद से ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस राज्य के बाहर पार्टी के विस्तार में लगातार जुटी हुई है लेकिन पार्टी को हर जगह निराशा हाथ लग रही है।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। बंगाल में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में मिली बंपर जीत के बाद से ममता बनर्जी (Mamta Banerji) की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) राज्य के बाहर पार्टी के विस्तार में लगातार जुटी हुई है, लेकिन पार्टी को हर जगह निराशा हाथ लग रही है। इस साल की शुरुआत में हुए गोवा विधानसभा चुनाव (Goa Assembly Election) एवं उसके बाद त्रिपुरा में नगरपालिका चुनाव एवं नवीनतम विधानसभा उपचुनाव (Tripura Assembly by-elections 2022) में पूरा जोर लगाने के बावजूद तृणमूल का प्रदर्शन बेहद ही निराशाजनक रहा। इसके बाद आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए हाल में उम्मीदवारों के चयन एवं विपक्षी दलों को गोलबंद करने की कोशिशों के बावजूद ममता को निराशा हाथ लग चुकी है। ममता ने इसके लिए हाल में दिल्ली तक का दौरा किया था और विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक की थीं लेकिन राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए उन्होंने जिन नेताओं का नाम सुझाया उन्होंने चुनाव लडऩे से ही इन्कार कर दिया।
विपक्ष की अगुवाई पर शंका
अंत में राकांपा प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) की पहल पर हुई बैठक में विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) के नाम पर सहमति बनी, जो तृणमूल में ही थे। बाद में ममता यशवंत सिन्हा के नामांकन में भी नहीं पहुंचीं। इसके बाद तीन दिन पहले ममता यह भी कह चुकी हैं कि यदि भाजपा ने पहले कहा होता तो राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को समर्थन के बारे में सोचती। इन सब परिस्थितियों में 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राष्ट्रीय राजनीति में पहुंच बढ़ाने एवं विपक्ष का नेतृत्व करने की ममता की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा पर पानी फिरता दिख रहा है। गोवा चुनाव की बात करें तो तृणमूल अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। वहीं, त्रिपुरा निकाय चुनाव में पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरने में भी विफल रही। इसके बाद हाल में त्रिपुरा में हुए विधानसभा उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार सभी चार सीटों पर चौथे स्थान पर रहे और उनकी जमानत तक जब्त हो गई। इनमें दो निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के उम्मीदवारों को मिले वोट 1,000 के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाए। इस पृष्ठभूमि में अब पहला सवाल उठता है कि तृणमूल 2024 के लोकसभा चुनाव में बंगाल के बाहर अपना आधार कितनी दूर तक बढ़ा पाएगी? दूसरा यह कि 2024 के चुनाव में ममता बनर्जी विपक्षी गठबंधन की अगुवाई किस आधार पर करेंगी, जिसका वह सपना देख रही हैं।
सीएम की कुर्सी बचाने पर ध्यान दें ममता : सुवेंदु
हालांकि तृणमूल के प्रदेश महासचिव व प्रवक्ता कुणाल घोष (Kunal Ghosh) के अनुसार, त्रिपुरा में नवीनतम उपचुनाव के परिणामों को इस रूप में नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि पार्टी ने बिना अधिक जमीनी कार्य के चुनाव लड़ा था। दूसरा, उनके अनुसार लोकसभा चुनाव हमेशा बड़े राष्ट्रीय मुद्दों के साथ विधानसभा या निकाय चुनावों से अलग होते हैं। इसपर बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता व भाजपा विधायक सुवेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) का कहना है कि ममता बनर्जी के लिए बेहतर होगा कि वे 2024 के चुनाव में विपक्षी गठबंधन की अगुवाई करने की कोशिश की बजाय मुख्यमंत्री की कुर्सी को बचाने पर ध्यान दें। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का भी मानना है कि इस बात की बहुत कम संभावना है कि 2024 के चुनाव में या उसके बाद ममता बनर्जी या तृणमूल राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित हो पाएंगी।