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West Bengal: फरक्का बैराज में ‘लॉक’ खुलते ही प्रयागराज तक पहुंच जाएगी हिलसा मछली

शोधकर्ताओं ने फरक्का बैराज प्राधिकरण स्थानीय ग्रामीणों मछुआरों और यहां तक कि बैराज नियंत्रण कक्ष के अधिकारियों व इंजीनियरों से चर्चा की लेकिन फिश लॉक के बारे में किसी ने नहीं सुना था। कुछ को इतनी जानकारी थी कि नदी में ऊपर की ओर एक ताला है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 13 Feb 2021 10:30 AM (IST)Updated: Sat, 13 Feb 2021 01:41 PM (IST)
West Bengal: फरक्का बैराज में ‘लॉक’ खुलते ही प्रयागराज तक पहुंच जाएगी हिलसा मछली
फरक्का बैराज में क्या गड़बड़ी थी? इससे क्या-क्या परेशानी हुई?

नई दिल्ली, जेएनएनलगभग 43 साल पहले एक छोटी सी तकनीकी गड़बड़ी हुई और इसने गंगा में हिलसा मछली के विचरण को ही रोक दिया। बैराज पार करने में आ रही दिक्कतों के चलते हिलसा मछलियों ने गंगा के सहारे बिहार और उत्तर प्रदेश तक का अपना रास्ता मोड़ लिया। अब जब नेविगेशन लॉक की इस गड़बड़ी को ठीक किया जा रहा है तो उम्मीद है कि एक बार फिर हिलसा प्रयागराज तक पहुंच जाएगी। फरक्का बैराज में क्या गड़बड़ी थी? इससे क्या-क्या परेशानी हुई? इसे कैसे ठीक किया जा रहा है? इस पर रिपोर्ट :

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गंगा से हिलसा मछली के गायब होने की मुख्य वजह फरक्का बैराज का निर्माण है। इस बैराज के बनने से गंगा के बड़े क्षेत्र का संपर्क ब्रैकिस वाटर (खारे और मीठे पानी का मिलन क्षेत्र) से कट गया जिसके कारण समुद्र से गंगा में इनका प्रवेश लगभग बंद हो गया। फरक्का बैराज बनने के बाद फिश लैडर में कुछ तकनीकी गड़बड़ी और अपस्ट्रीमडाउ नस्ट्रीम जल स्तर में बड़े अंतर के कारण हिलसा मछलियों को बैराज पार करने में दिक्कत होने लगी। 43 साल बाद अब इस दिक्कत को दूर किया जा रहा है। इससे हिलसा मछलियां प्रयागराज तक पहुंच सकेंगी। हिलसा मछलियों पर शोध करने वाले विज्ञानियों के अनुसार यह ऐसी मछली है जिसका अधिकांश जीवन समुद्र में बीतता है लेकिन बरसात के मौसम या ब्रीडिंग के समय यह नदी और समुद्र के मुहाने पर पर आ जाती है। दस्तावेजों के अनुसार वर्ष 1970 तक हिलसा गंगा नदी में प्रयागराज से आगरा तक तैरती थी। वर्ष 1975 में गंगा पर बने फरक्का बैराज ने हिलसा के मार्ग को बाधित कर दिया।

बैराज में एक नेविगेशन लॉक था जिसने मछली को फरक्का से आगे तैरने से रोक दिया था। बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा पर बक्सर में हिलसा की उपस्थिति का आखिरी रिकॉर्ड लगभग 32 साल पहले मिलता है। 360 करोड़ की लागत से मछली पास-वे बनाया: हिलसा के आवागमन का रास्ता खोलने के लिए सरकार ने एक परियोजना तैयार की है। इसके तहत नेविगेशन लॉक को खोलकर मछली पास-वे बनाया जा रहा है। 360 करोड़ रुपये की लागत से इस योजना का खाका तैयार किया गया है। माइक्रोफाइट्स की कमी के कारण भी गंगा से निकल गई हिलसा: गंगा के कैचमेंट एरिया में खेती से माइक्रोफाइट्स की कमी भी एक कारण है। इस वजह से हिलसा के लिए इन इलाकों में प्रजनन मुश्किल हो गया था। वे अंडे देने के लिए नए ठिकाने की खोज में गंगा को छोड़कर बांग्लादेश की ओर चली गईं। मानसून के दौरान यह मछली अभी भी बंगाल तक आ जाती है।

गंगा में फिर से बढ़ा है ऑक्सीजन का स्तर: एक समय था जब हिलसा बिहार के पटना, बक्सर और उत्तर प्रदेश तक गंगा में मिलती थी। बंगाल में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली इस मछली का गंगा में वजूद लगभग खत्म हो चुका है। लॉकडाउन के दौरान कई फैक्ट्री बंद होने से गंगा का प्रदूषण कम हुआ और नदी के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी तो यह वापस लौट आई हैं।

ये है मामला

क्या है फरक्का बैराज:

  • फरक्का बांध (बैराज) पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर बना है। यह बांध बांग्लादेश की सीमा से मात्र 10 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है
  • कोलकाता बंदरगाह की मुख्य परेशानी गाद की समस्या थी। इसे ध्यान में रखते हुए कोलकाता बंदरगाह को गाद से मुक्त करवाने के लिए इसका निर्माण किया गया था

बांग्लादेश में भी परेशानी: फरक्का बैराज में तकनीकी गड़बड़ी की वजह से पानी के वितरण के कारण बांग्लादेश एवं भारत के बीच भी लंबा विवाद चला। गंगा नदी के प्रवाह की कमी के कारण बांग्लादेश जाने वाले पानी में खारापन बढ़ने लगा और मछली पालन, पेयजल और नौकायन प्रभावित होने लगा। एक बड़े क्षेत्र की भूमि बंजर हो गई थी। वर्ष 1996 में इस मुद्दे के हल के लिए समझौता हुआ।

यहां हुई गड़बड़ी: ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरंतर बनाये रखने के लिये गंगा नदी के पानी के बड़े हिस्से को फरक्का बांध के द्वारा ही हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। 43 साल पहले लगाए गए एक लॉक तकनीकी गड़बड़ी की वजह से मछलियां व अन्य जलचर स्वतंत्र तरीके से विचरण नहीं कर पा रहे थे।

हिलसा और जहाज दोनों के लिए आसान होगा आना-जाना: सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने एक योजना बनाई है, जिससे इस मछली का नदी में संरक्षण और इसकी संख्या को बढ़ाया जा सके। फरवरी 2019 में सरकार ने तय किया कि फरक्का बांध पर नेविगेशन लॉक को नए सिरे से तैयार किया जाएगा। यह जहाजों के लिए भी रास्ता आसान करेगा और समय बचाएगा। अभी यहां से गुजरने में जहाज को करीब दो घंटे लगते हैं, लेकिन यह समय घटकर 35 से 40 मिनिट हो जाएगा। साथ ही मछलियों को भी गंगा में आने में आसानी होगी। जीव विज्ञानी उत्पल भौमिक के अनुसार गेट खोलने से हिलसा को पदमा और हुगली से गंगा में आने में मदद मिलेगी।

धारा के विपरीत तैरती है हिलसा: हिलसा मुख्य रूप से ब्रैकिस वॉटर (मीठा और खारे पानी का मिश्रण) की मछली है। यह ब्रीडिंग के लिए बंगाल की खाड़ी के खारे पानी से निकलकर मीठे पानी में आ जाती है। इसकी खासियत यह है कि यह धारा के विपरीत तैरती है। पश्चिम बंगाल में गंगा समुद्र से मिलती है। इसी जगह ये मछली नदी में प्रवेश करती है। पहले ब्रीडिंग के लिए यह इलाहाबाद तक का सफर करती थी। इसके चलते पूरे गंगा बेसिन में हिलसा बहुतायत में पाई जाती थी। वर्षों के बाद, देश में एक नया नेविगेशन लॉक बनकर तैयार है। हिलसा के प्रजनन के मौसम में गेट का आठ मीटर हिस्सा सुबह एक से सुबह पांच बजे तक खोल दिया जाएगा ताकि हिलसा फरक्का बैराज होते हुए प्रयागराज तक पहुंच जाए।

बंगाल और हिलसा का रिश्ता: मछलियों में हिलसा का अलग ही स्थान है। बंगाल में जामाई शोष्ठी (दामादों के लिए किया जाने वाला पर्व), दुर्गा पूजा, पोईला बोईशाख (नया साल) जैसे खास मौकों पर इसकी मांग होती है। वहीं बांग्लादेश में पोईला बोईशाख (वहां भी नया साल) सहित अन्य पर्व त्योहारों पर इस मछली को खास तौर पर खाया जाता है। बंगाल के मछली बाजारों से मिली सूचना के अनुसार जामाई शोष्ठी के मौके पर हावड़ा में 22000 रुपये में चार किलो की हिलसा बिकने का रिकॉर्ड है। सामान्य दिनों में यह गुणवत्ता के आधार पर 250 से 1600 रुपये किलो तक बिकती है।

फिश पास-वे की सफलता पर भी है सवाल: फिश पास-वे का उद्देश्य बांधों और बैराज द्वारा उत्पन्न बाधाओं को पार करने में मछलियों की सहायता करना है। यह मछली को दूसरी तरफ खुले पानी तक पहुंचने में सक्षम बनाते हैं। इसके लिए सीढ़ीनुमा ढांचा बनाया जाता है। मछलियों के रास्ते की बाधा को दूर करने के लिए सबसे पहले पश्चिमी यूरोप में इसका उपयोग वर्ष 1837 में किया था। हालांकि उत्तर भारत में फिश पास-वे का प्रयोग सफल नहीं रहा है। 20वीं सदी में अमेरिका में फिश पास-वे की उपयोगिता और सफलता पर गंभीर चर्चा हुई। वर्ष 2013 में अमेरिकी जीव विज्ञानी जे जेड ब्राउन ने अपने शोध में माना कि फिश पास-वे का प्रयोग सफल नहीं है। कई प्रवासी जलचर इसे पार नहीं कर पाते और जो पार करते भी हैं तो उनकी संख्या सामान्य से बहुत कम होती है।

गेट नंबर 24 और 25 में लगे लॉक में है परेशानी: सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए अध्ययन अनुसार फरक्का बैराज के गेट नंबर 24 और 25 के बीच दो फिश लॉक हैं। इसकी वजह से हिलसा का आवागमन अवरुद्ध हो रहा है। हालांकि एफबीपी अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं थी। 


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