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भाजपा में शामिल होने की एवज में पद्मश्री देने का दिया गया था प्रलोभन : मनोरंजन व्यापारी

बंगाल के हुगली जिले की बलागढ़ सीट से तृणमूल कांग्रेस विधायक ने किया सनसनीखेज दावा। फेसबुक पोस्ट में कहा-उस वक्त चुनाव की घोषणा नहीं हुई थी। नागपुर से विश्वास बाबू ने फोन करके कहा कि बहुत से पुरस्कार मिले हैं। अब आपको केंद्रीय पुरस्कार की जरूरत है।

By Vijay KumarEdited By: Published: Fri, 12 Nov 2021 09:44 PM (IST)Updated: Fri, 12 Nov 2021 10:40 PM (IST)
भाजपा में शामिल होने की एवज में पद्मश्री देने का दिया गया था प्रलोभन : मनोरंजन व्यापारी
मनोरंजन व्यापारी ने हालांकि इस बारे में नहीं बताया कि विश्वास बाबू कौन हैं।

 राज्य ब्यूरो, कोलकाता : बंगाल के हुगली जिले की बलागढ़ सीट से तृणमूल कांग्रेस विधायक मनोरंजन व्यापारी ने सनसनीखेज दावा करते हुए कहा है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की ओर से उन्हें पार्टी में शामिल होने की एवज में पद्मश्री देने का प्रलोभन दिया गया था। मनोरंजन व्यापारी ने फेसबुक पोस्ट में कहा-'उस वक्त विधानसभा चुनाव की घोषणा नहीं हुई थी। नागपुर से विश्वास बाबू ने मुझे फोन करके कहा कि आप बहुत दिनों से लिख रहे हैं। आपको बहुत से पुरस्कार भी मिले हैं। अब आपको केंद्रीय पुरस्कार मिलने की जरूरत है। आप अगर भाजपा में शामिल होंगे तो मैं आपको पद्मश्री दिला सकता हूं।'

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नहीं बताया कि विश्वास बाबू कौन हैं

मनोरंजन व्यापारी ने आगे लिखा है-'सौभाग्यवश मैंने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि जो पुरस्कार कंगना रनौत को मिलता है, वह पुरस्कार कोई भी क्यों न हो, उससे मेरा सम्मान नहीं बढ़ सकता।'

मनोरंजन व्यापारी ने हालांकि इस बारे में नहीं बताया कि विश्वास बाबू कौन हैं।

शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा था उन्हें

गौरतलब है कि मनोरंजन व्यापारी 1953 में राजनीतिक शरणार्थी के रूप में बंगाल आए थे। उन्हें कई शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा था। उन्होंने बावर्ची से लेकर एक डोम तक के रूप में काम किया है। उन्होंने अपनी जिंदगी में कितना संघर्ष किया है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी वह होटलों में काम करते तो कभी रिक्शा चलाकर अपनी जरूरतें पूरी करते थे।

नक्सली आंदोलन से नेताओं से मोह भंग

एक रिपोर्ट के मुताबिक 60 के दशक में बंगाल में नक्सली आंदोलन जब अपने परवान पर था, तब वह इसकी ओर आकर्षित हुए थे, मगर इस आंदोलन से जुड़े नेताओं की कार्यशैली देखकर उनका मोहभंग हो गया था। इसके बाद वे जाति-व्यवस्था को लेकर अपने अनुभवों को लिखने लगे थे और जीवनयापन करने के लिए रिक्शा चलाने लगे।


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