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कहानी उत्सव में जुटे पूर्वी भारत के कहानीकार

कहानी साहित्यिक विधाओं में बड़ा महत्वपूर्ण है और कथाएं हैं जीवन के सच का भंडार।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Jan 2020 08:00 AM (IST)Updated: Sun, 19 Jan 2020 08:00 AM (IST)
कहानी उत्सव में जुटे पूर्वी भारत के कहानीकार

कोलकाता, (वि.) : कहानी साहित्यिक विधाओं में बड़ा महत्वपूर्ण है और कथाएं हैं जीवन के सच का भंडार। साहित्य अकादमी और भारतीय भाषा परिषद द्वारा आयोजित पूर्वी भारत कहानी उत्सव में आठ भाषाओं के कहानीकारों ने कहानी के सामाजिक महत्व को रेखाकित करते हुए यह बात कही। कहानी उत्सव का उद्घाटन करते हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार जयी बाग्ला लेखक चिन्मय गुहा ने कहा कि कहानी में जादू की ताकत है। इसने दुनिया के लोगों को जोड़ा है और उनके जीवन को दिखाया है।

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वहीं अपने वक्तव्य में शभुनाथ ने कहा कि कहानी सच कहने के लिए झूठ रचने की सर्वोच्च कला है। भारत की नदियों, पहाड़ों, पशु-पक्षियों से लेकर पीपल के पेड़ तक कथाओं में डूबे हैं। ऐसे देश में कहानी की मृत्यु संभव नहीं है। हिंदी कहानियों ने पिछले दशकों में अभूतपूर्व विकास किया है। उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य और पशु में एक फर्क यहभी है कि पशुओं के पास कहानी नहीं होती।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए बाग्ला कवि सुबोध सरकार ने कहा कि उत्तर-पूर्व का कथा संसार बहुत विस्तृत है और कहानी की कई शैलियां हो सकती हैं। धन्यवाद ज्ञापन परिषद के मंत्री केयुर मजमुदार ने दिया।कहानी उत्सव में पूर्वी भारत के लेखकों में बीतोपन बोरबरुआ (असमिया), नंदेश्वर डायमरी (बोडो), लमाबम विरमानी (मणिपुरी), पवित्र पाणिग्रही (ओड़िया) आदि ने अपनी कहानी सुनाई। अध्यक्षता अबुल बशर ने की।

द्वितीय सत्र में 'भारतीय कहानी की नई उपलब्धियाँ' विषय पर परिचर्चा में गोबिंद चंद माझी (संथाली) ने भाग लिया। अध्यक्षता भगीरथ मिश्र ने की।तृतीय सत्र शुरू होने से पहले पूर्वी भारत सहित तमाम भाषाओं के कथाकारों द्वारा 'वागर्थ' के रजत जयंती विशेषाक का लोकार्पण हुआ। डॉ. कुसुम खेमानी ने कहा कि 'वागर्थ पिछले 25 वर्षों से नियमित रूप से निकल रहा है, जो कोलकाता के लिए गौरव की बात है। यह विशेषाक भारत की 22 भाषाओं के साहित्य पर केंद्रित है।

तृतीय सत्र में हिंदी कहानी पाठ और परिचर्चा का आयोजन हुआ। कहानी पाठ सिद्धेश, सेराज खान बातिश और शर्मिला बोहरा जालान ने किया। परिचर्चा में श्रीनिवास शर्मा, मृत्युंजय पाडेय, संजय जायसवाल व रवींद्र आरोही ने अपनी बातें रखीं। अध्यक्षता डॉ.शभुनाथ ने की एवं मुख्य अतिथि के तौर डॉ. कुसुम खेमानी ने वक्तव्य दिया। इस सत्र का संचालन विनोद कुमार यादव ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन सुशील कांति ने किया।


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