नेताजी सुभाचंद्र बोस की मौत के रहस्य से पर्दा उठाएगी ये पुस्तक
नेताजी के नाती आशीष राय ने कहा है कि जवाहरलाल नेहरू से लेकर अब तक नरेंद्र मोदी की सरकार तक किसी ने नेताजी की चिता भष्म लाने की कोशिश नहीं की।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। नेताजी सुभाचंद्र बोस की चिता भस्म अब तक नहीं लाए जाने पर एक बार फिर सवाल उठा है। नेताजी के नाती आशीष राय ने कहा है कि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार तक किसी ने भी नेताजी की चिता भष्म लाने की कोशिश नहीं की।
हालांकि सभी नेताजी के रहस्यमय ढंग से गुम होने से वाकिफ हैं। राय ने कहा कि अब तक किसी भी सरकार ने जापान से नेताजी के अवशेष वापस लाने का कोई प्रयास नहीं किया। हालांकि नेताजी के परिवार के सदस्यों ने जब-जब टोकियो के रेन्कोजी मंदिर से चिता भस्म लाने की मांग की तो विभिन्न सरकारों ने थोड़ी बहुत मदद पर तैयार हुईं।
राय ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान नायकों में से एक नेताजी के मौत आखिर कब तक रहस्य बनी रहेगी। राय की नई पुस्तक लैड टू रेस्ट नेताजी की मौत पर रहस्य की कई परतों को खोलेगी।
पुस्तक में 1945 में नेताजी की विमान दुर्घटना से पहले 11 अध्याय में शोधपरक तथ्यों को पेश किया गया है जो नए सिरे से नेताजी की रहस्यमय मौत पर नए सिरे से विवाद खड़ा कर सकता है। राय का यह भी कहना है कि 1995 में पीबी नरसिंह राव की सरकार और तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने रेनकोजी मंदिर से नेताजी की चिता भस्म लाने का प्रयास किया था लेकिन वह पूरा नहीं हुआ।
उसके बाद जितनी भी केंद्र में सरकारें बनी सभी इस मामले में लापरवाही के लिए जिम्मेदार है। नेताजी की स्मृति को देश ने सम्मान नहीं दिया। हालांकि उन्होंने मानवीय आधार पर इन सब बातों को अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है। पुस्तक की प्राक्कथन नेताजी की पुत्री पफाफ ने लिखी है जो रेनकोजी की मंदिर में नेताजी की चिता भस्म के डीएनए टेस्ट कराने की मांग करती रही हैं।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सार्वजनिक हुई थी 100 सीक्रेट फाइलों
जानकारी हो कि, चौंसठ फ़ाइलों की एक खेप पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने सितंबर 2015 में इंटरनेट पर डाली थी। उसके बाद 2016 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने दिल्ली में 100 फ़ाइलों का पुलिंदा सार्वजनिक कर दिया था। मोदी सरकार ने यह भी आश्वासन दिया था कि हर महीने 100 फ़ाइलें इंटरनेट पर डाली जाएंंगी। पिछले साठ सालों से यह मान्यता बनी रही है कि नेताजी कहीं छुपे हुए हैं या फिर उन्हें किसी ने छिपा रखा है। सबसे पहली बात तो यह थी कि अनेक लोग यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि नेताजी जैसे हीरो का अंत इतना सामान्य होगा।
अगस्त 1945 में, हवाई दुर्घटना की ख़बर छपी थी। सूत्रों के हवाले से बताया गया था कि ताइवान के फ़ौजी हवाई अड्डे पर सुभाष बाबू अपने दो ख़ास लोगों के साथ पहुंंचे। जापानी फौज इस इलाक़े को छोड़कर पीछे हटे और अंग्रेज़ फ़ौज यहांं क़ब्ज़ा करे, इसके पहले ही सुभाष बाबू को सुरक्षित स्थान पर भेजा जाना ज़रूरी था।स्थानीय जापानी फौज के कमांडर ने सुभाष बाबू के लिए एक छोटा फौजी विमान उपलब्ध कराया।
विमान में दो और जापानी अफ़सर भी जा रहे थे। सो नेताजी के साथ उनका एक ही साथी, हबीब उर रहमान जा सका. हवाई जहाज़ उड़ने के साथ ही डगमगाया, वापस ज़मीन पर उतरा और उसमें आग लग गई। अंदर बैठे लोग बाहर भागे। बाक़ी लोग तो बच गए पर बाहर निकलते-निकलते सुभाष बाबू का बदन काफ़ी झुलस गया। उनके साथियों ने उन्हें अस्पताल पहुंंचाया, लेकिन अगले दिन वे चल बसे। पास ही में उनकी अंत्येष्टि कर दी गई और अस्थियों को सादर सहेज कर टोक्यो रवाना कर दिया गया।
फिर दिसंबर 1945 में आईएनए के कुछ लोगों ने बात फैलाई कि उन्होंने सुना है कि चीन के रेडियो पर नेताजी सुभाष बोस बोलेंगे। सरकार के गुप्तचरों की लाख कोशिश के बाद भी उन्हें यह प्रसारण सुनने को नहीं मिला। न ही यह पता चल सका कि क्या किसी ने भी इसे सुना हो। सुभाष बाबू अब भी हमारे बीच हैं, यह कहानी धीरे-धीरे तूल पकड़ने लगी। सच जानने के लिए सरकार ने जुलाई 1946 में कर्नल जॉन फिगेस को हिदायत दी कि वे सच का पता लगाएंं। काफ़ी जांंच-पड़ताल के बाद फिगेस ने नेताजी के मौत हो जाने की ख़बर की पुष्टि की। पर हिंदुस्तान में कई लोग ऐसे थे जिनका दिल नहीं माना। देश की स्वतंत्रता के बाद माग आने लगी कि नेहरू सरकार सुभाष बाबू को खोज निकाले. बोस परिवार के कुछ लोग भी इस मांंग का समर्थन करने लगे।
जब सरकार ने थोड़ी आना-कानी की तो यह कहा जाने लगा कि भारत की सरकार ही कुछ छिपाने में लगी है।सरकार ने जांंच आयोग बैठा दिया।
यदि एक आयोग नेताजी के चल बसने की पुष्टि करता तो दूसरा कहता कि इसके बारे में जब तक ठोस सबूत ना आ जाएं तब तक कुछ भी कहना ठीक नहीं। इस बीच बात से बात उलझती गई और नेताजी के मौत की कहानी ज़्यादा से ज़्यादा रहस्यमयी बनती गई। आने वाले सालों में कई लोग यह शक करने लगे कि शायद भारत सरकार ही कुछ छिपा रही है।
2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली स्थित नेशनल आर्काइव्स में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 100 फाइलें सार्वजिनक की। प्रधानमंत्री ने इन फाइलों का डिजिटल वर्जन जारी किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर ये फाइलें सार्वजनिक की गईं। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित 25 फाइलों की डिजिटल कॉपी को हर महीने सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराने की योजना बनाई । इस कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी से संबंधित 100 सीक्रेट फाइलों को नेताजी के परिजनों की मौजूदगी में सार्वजनिक किया।साथ ही पोर्टल भी लॉन्च किया, जिस पर ये सारे दस्तावेज डाले गए हैं- netajipapers.gov.in. हालांकि यह पोर्टल लॉन्च के तुरंत बाद ही क्रैश हो गया।
फाइलों के साथ चिट्ठी भी सार्वजनिक
गौरतलब है कि नेताजी से जुड़ी 100 सीक्रेट फाइलों को पीएम मोदी ने जारी किया था। इनमें देश के पहले पीएम नेहरू की एक चिट्ठी भी जारी की गई जो उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश पीएम क्लीमेंट एटली को लिखे पत्र में नेताजी को बताया था इंग्लैंड का युद्ध अपराधी। कांग्रेस ने इस कथित चिट्ठी को झूठा करार दिया।
विमान हादसे में हुई थी मौत
सीक्रेट फाइलों के सामने आने के बाद नेताजी की जिंदगी के कई रहस्यों पर से पर्दा उठने की उम्मीद बंधी । इसके अनुसार, नेताजी की मौत के दावों की जांच के लिए बनी कमेटी ने 11 सितंबर 1956 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।जिसके अनुसार, 18 अगस्त 1945 को ताईवान में हुए विमान हादसे में नेताजी की मौत की बात कही गई थी।इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि टोक्यो के रेंकोजी टेंपल में उनकी अस्थियां सुरक्षित रखी गई थी।
ताईवान में हुआ था हादसा
कमेटी ने माना था कि जब दूसरे विश्वयुद्ध में पश्चिमी शक्तियों के सामने जापान-इटली की हार का संकट मंडरा रहा था ऐसे में नेताजी ने दक्षिण एशिया से अपना संघर्ष रूस शिफ्ट करने की तैयारी शुरू की। मंचूरिया होते हुए रूस जाने के लिए 16 अगस्त 1945 को उन्होंने बैंकॉक छोड़ा। 17 अगस्त को वे साइगॉन से निकले। 18 अगस्त 1945 को ताईवान से गुजरते वक्त प्लेन क्रैश हो गया। विमान हादसे में बुरी तरह जल जाने के बाद रात में उन्हें ताईहोकू अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन उसी रात उनकी मौत हो गई।
नेताजी को पीएम की श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी को जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि आज का दिन बहुत बड़ा दिन है क्योंकि नेताजी के बारे में फाइलें आज से सार्वजनिक होनी शुरू होंगी। फाइलों के सार्वजनिक होने से इन फाइलों को सुलभ कराने के लिए लंबे समय से चली आ रही जनता की मांग पूरी हुई । यही नहीं, इससे नेताजी की मौत पर आगे और रिसर्च करने में भी सुविधा होगी।