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निजी अस्पताल ने 20 हजार नहीं जमा करने पर नहीं किया भर्ती, कोरोना पीड़ित 60 वर्षीय महिला ने एंबुलेंस में ही तोड़ा दम

राजधानी कोलकाता में एक निजी अस्पताल की लापरवाही के कारण मंगलवार को कोरोना पीड़ित एक 60 वर्षीय महिला की भर्ती के इंतजार में एंबुलेंस में ही मौत हो गई।

By Vijay KumarEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 09:23 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 09:23 PM (IST)
निजी अस्पताल ने 20 हजार नहीं जमा करने पर नहीं किया भर्ती, कोरोना पीड़ित 60 वर्षीय महिला ने एंबुलेंस में ही तोड़ा दम
निजी अस्पताल ने 20 हजार नहीं जमा करने पर नहीं किया भर्ती, कोरोना पीड़ित 60 वर्षीय महिला ने एंबुलेंस में ही तोड़ा दम

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : राजधानी कोलकाता में एक निजी अस्पताल की लापरवाही के कारण मंगलवार को कोरोना पीड़ित एक 60 वर्षीय महिला की भर्ती के इंतजार में एंबुलेंस में ही मौत हो गई। निजी अस्पताल पर केवल 20 हजार रुपये के लिए रोगी को भर्ती नहीं लेने का आरोप है जबकि परिजनों का दावा है कि उसने 2 लाख 80 हजार जमा करा दिया था। वहीं, अस्पताल प्रबंधन भर्ती के समय 3 लाख की मांग कर रहा था। बाकी 20,000 रुपये नहीं देने की वजह से एंबुलेंस में ही महिला ने इंतजार करते-करते दम तोड़ दिया। इस घटना के बाद मृतका महिला के बेटे लाजिम खान ने अस्पताल में जमकर नारेबाजी की और अपनी मां की मौत को अस्पताल द्वारा हत्या करार दिया ना कि कोरोना वायरस की वजह से मौत।

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20 हजार के लिए अस्पताल ने भर्ती नहीं किया

बताया गया है कि पूर्व मेदिनीपुर जिले के तमलुक की रहने वाली कोरोना पॉजिटिव महिला को भर्ती लेने के लिए अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा 3 लाख रुपये जमा करने के लिए कहा गया था लेकिन परिजन समय पर पैसे की व्यवस्था करने में विफल रहे। वहीं, बेटे ने दावा किया कि 2 लाख 80 हजार रुपये जमा करा दिया था, लेकिन केवल 20 हजार के लिए अस्पताल ने भर्ती नहीं किया जिसकी वजह से एंबुलेंस में ही उनकी मां की जान चली गई। बेटे ने कहा कि मां की तबीयत ठीक नहीं थी। उन्हें लंबे समय से हृदय संबंधी समस्या थी। हम उन्हें पहले कोलकाता के एक अन्य अस्पताल में भर्ती कराए। जब उनकी रिपोर्ट कोविड-19 पॉजिटिव आई तो इसके इलाज के लिए दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने के लिए कह और इसीलिए हम उक्त अस्पताल ले गए। लाजिम ने कहा कि एंबुलेंस द्वारा अपनी मां को वह दूसरे अस्पताल से यहां लाए और उसे जमा पैसे के रूप में 3 लाख रुपये देने के लिए कहा गया। उन्हें यह भी बताया गया था कि उनकी मां के इलाज के लिए प्रतिदिन आवश्यक अधिकतम राशि 70,000 रुपये होगी और धीरे-धीरे यह कम होती जाएगी। 

अधिकारियों को लेनदेन का स्क्रीनशॉट दिखाया

लाजिम के अनुसार, उन्होंने क्रेडिट कार्ड के माध्यम से 30000 और अपने डेबिट कार्ड के माध्यम से 50000 का तुरंत भुगतान कर दिया। उन्होंने अस्पताल के अधिकारियों से मां का इलाज शुरू करने के लिए अनुरोध किया और शेष राशि भी जल्द भुगतान कर देने का वादा किया। लाजिम के अनुसार, हालांकि अस्पताल प्रबंधन ने इलाज करने से इंकार कर दिया। इसके बाद लाजिम ने अबू धाबी में अपने चचेरे भाई से मदद मांगी और और पैसा हस्तांतरण करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने भी कुछ समय मांगा।

लाजिम का दावा है कि 1 घंटे के भीतर आबू धाबी से उसके भाई ने अस्पताल के खाते में 200000 हस्तांतरित कर दिए। लाजिम का कहना है कि उन्होंने अस्पताल के अधिकारियों को लेन देन का एक स्क्रीनशॉट भी दिखाया। लेकिन अस्पताल के अधिकारी मानने को तैयार नहीं हुए और उन्होंने कहा कि अभी तक उन्हें इस पैसे के बारे में कोई मैसेज नहीं मिला है। बार-बार सबूत दिखाए जाने के बावजूद अस्पताल में उनकी मां को भर्ती नहीं लिया गया और घंटों तक एंबुलेंस में इंतजार करते-करते मौत हो गई। 

क्या कहना है अस्पताल प्रबंधन का

इधर, अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि वृद्धा पहले ही मर चुकी थी और उसी हालत में उसे अस्पताल लाया गया था। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि जब वृद्ध पहले ही मर चुकी थीं तब इलाज के लिए दो लाख 80 हजार रुपये क्यों जमा लिया गया? तब प्रबंधन के अधिकारियों ने इस मामले में चुप्पी साध ली है। 

वहीं, राज्य स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले का संज्ञान लिया है। एक अधिकारी ने बताया कि इस बारे में खोज खबर ली जा रही है। अस्पताल से जवाब तलब किया जाएगा। 

50,000 रुपये से ज्यादा जमा नहीं लेने का है निर्देश 

बताते चलें कि पश्चिम बंगाल क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट रेगुलेटरी कमिशन ने निजी अस्पतालों द्वारा मनमानी व अधिक पैसे वसूले जाने की लगातार मिल रही शिकायतों के बाद तीन दिन पहले ही नई गाइडलाइन जारी की है। इसमें सभी निजी अस्पतालों को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि मरीज के भर्ती के समय 50 हजार रुपये से अधिक की राशि जमा नहीं लिया जाए। कमि‍शन ने यह भी कहा है कि यदि यह राशि भी परिजनों के पास नहीं है तो तत्काल प्राथमिक उपचार शुरू किया जाए एवं परिजनों को कुछ घंटे का समय दिया जाए। इस अवधि में यदि पैसा नहीं जमा किया जाता है उसके बाद मरीज को कहीं दूसरे जगह ले जाने के लिए अस्पताल प्रशासन कह सकता है। इस निर्देश के बावजूद निजी अस्पताल नियमों की धज्जियां उड़ा रहा है।


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