कोलकाता के लोगों को कोविड-19 टेस्ट के लिए हफ्तों करना पड़ रहा इंतजार, सरकार का दावा- टेस्ट क्षमता बढ़ाई गई
कोलकाता महानगर के बड़े अस्पताल लक्षणों की शुरुआत के तीन सप्ताह बाद तक की तारीख दे रहे हैं सरकारी हेल्पलाइनों से भी कोई मदद नहीं मिलती दिख रही है।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। कोलकाता तथा उसके आस-पास के इलाकों में जांच स्लॉट पाने में मरीजों को करनी पड़ रही खासी मशक्कत से कोविड-19 टेस्ट की व्यवस्था एकदम अनिश्चितता की स्थिति में पहुंच गई है, जिससे उन लोगों के इलाज में देरी होती है। जो बाद में टेस्ट में पॉजिटिव निकलते हैं और इनसे संक्रमण फैलने का बड़ा खतरा भी रहता है।
सूत्रों के मुताबिक कोलकाता के कुछ नामी अस्पताल कई मामलों में लक्षण दिखने के बावजूद उदासीनता दिखाते हुए तीन हफ्ते तक की तारीख देते रहे हैं। आम लोगों को सही जानकारी देने के लिए शुरू की गई सरकारी हेल्पलाइन से भी कोई मदद नहीं मिल रही है। कोलकाता नगर निगम (केएमसी) की हेल्पलाइन भी ज्यादातर अनरीचेबल रहती है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य के हालात पर ध्यान देने की जरूरत है।
बताते चलें कि राज्य में कोविड-19 टेस्ट के लिए आईसीएमआर से मान्यता प्राप्त 54 लैब हैं। इनमें से करीब 18 कोलकाता में हैं, लेकिन फिर भी उन्हें दूसरे जिले जाना पड़ता है। राज्य सरकार की तरफ से जारी दिशा-निर्देशों के तहत कोविड-19 टेस्ट के लिए प्रिस्क्रिप्शन जरूरी है, जबकि केंद्र सरकार ने सलाह दी है कि मामलों का जल्द पता लगाने के हित में प्रावधान हटा दिया जाना चाहिए। बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी ने पिछले दिनों कहा था कि उनकी सरकार मध्य अगस्त तक जांच की संख्या मौजूदा 13,000 से बढ़ाकर 25,000 कर देगी। हालांकि, जो मौजूदा स्थिति है उसे देखते हुए इसकी संभावना क्षीण ही नजर आ रही है।
निजी अस्पतालों के पास जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी
दूसरी ओर महानगर के बड़े निजी अस्पतालों ने असमर्थता जताते हुए कहा कि उनके पास या तो जरूरी इंफ्रास्ट्रचर नहीं है या फिर कुशल लोगों की कमी है। केस लोड बहुत ही ज्यादा है और हर दिन सैकड़ों लोग टेस्ट कराना चाहते हैं। उनके पास सीमित क्षमता है और एक दिन में 200 टेस्ट ही कर सकते हैं। आरटी-पीसीआर मशीन (कोविड-19 टेस्ट का अब तक सबसे भरोसेमंद तरीका) एक समय पर एक बार में निश्चित संख्या में ही सैंपल लेती है और नतीजे आने में भी एक निर्धारित समय लगता है। फिलहाल अस्पतालों के पास किट्स की कोई समस्या नहीं है। मशीन और मैनपॉवर की कमी जरूर है। एक निजी अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उनके यहां सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं। अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रचर तैयार करने और जरूरी उपकरणों को खरीदने में समय लगता है। हम 24 से 48 घंटे के भीतर नतीजा हासिल करने की कोशिश करते हैं। रिपोर्ट डिलीवर को 24 से 36 घंटे के बीच सुनिश्चित करने की कोशिशें जारी हैं।
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक इंद्रनील बिस्वास ने कहा कि वे हर दिन विशाल केस लोड का सामना कर रहे हैं। हमारे पास अन्य भर्ती मरीज भी हैं। कैंसर पीड़ित व गंभीर रूप से बीमार अन्य लोगों को भर्ती करने से पहले प्राथमिकता के आधार पर परीक्षण जरूरी होता है। हमारा अस्पताल हुगली जिले से भी सैंपल ले रहा है। हमारे फीवर क्लीनिक और ओपीडी में हर रोज 120 से ज्यादा संदिग्ध केस आ रहे हैं। आरटी-पीसीआर मशीनों और प्रशिक्षित लोगों की क्षमता सीमित है। हमें और ज्यादा आरटी-पीसीआर सेट अप और अतिरिक्त मानवबल की जरूरत है। सरकार इस पर काम कर रही है।
सरकार का दावा, टेस्ट क्षमता बढ़ाई गई
राज्य के स्वास्थ्य सचिव एनएस निगम ने कहा कि वह आरोपों पर गौर करेंगे। साथ ही दावा किया कि सरकार ने टेस्ट की क्षमता बढ़ाई है। टेस्टिंग ढांचे को और मजबूत करने के लिए सरकार जल्द ही दर्जनों आरटी-पीसीआर मशीनें खरीदेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि टेस्ट में देरी गंभीर चुनौती खड़ी कर सकती है। स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में वायरोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख निमाई भट्टाचार्य ने कहा कि यह राज्य में स्वास्थ्य ढांचे की एक बड़ी नाकामी है। टेस्ट में देरी का मतलब है इलाज का अभाव। उन्होंने कहा कि तथ्यात्मक रूप से जब राज्य सरकार यह मान रही है कि सामुदायिक संक्रमण के संकेत मिल रहे हैं, तो उन्हें विभिन्न इलाकों में रैंडम टेस्टिंग शुरू करनी चाहिए। लॉकडाउन इसका समाधान नहीं हैं, केवल टेस्टिंग की सुविधा बढ़ाने से ही कुछ मदद मिलेगी।