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..और यूं मिशेल बन गईं मिसाल!

अमेरिका की रहने वाली डॉ. मिशेल हैरिसन पर दिव्यांग और अनाथ बच्चियों की सेवा का ऐसा धुन सवार हुआ कि उन्होंने अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी और अपना घर बेचकर कोलकाता चली आईं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 04 Jun 2019 03:20 PM (IST)Updated: Tue, 04 Jun 2019 03:20 PM (IST)
..और यूं मिशेल बन गईं मिसाल!
..और यूं मिशेल बन गईं मिसाल!

कोलकाता, जागरण संवाददाता। अमेरिका के न्यू जर्सी की रहने वाली डॉ. मिशेल हैरिसन पर दिव्यांग और अनाथ बच्चियों की सेवा का ऐसा धुन सवार हुआ कि उन्होंने अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी और अपना घर बेचकर कोलकाता चली आईं।

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पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. हैरिसन अनाथ बच्चियों के लिए शेल्टर होम चलाती हैं, जहां वह दिव्यांग बच्चियों को शिक्षित भी कर रही हैं। उन्होंने दो बच्चियों को गोद भी लिया था। वर्तमान में अच्छी नौकरी कर रहीं उनकी दोनों बेटियां उनके शेल्टर होम के लिए फंड जुटाने में मदद करती हैं।

डॉ. हैरिसन हार्वर्ड, रट्गर्स और यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग में पढ़ा चुकी हैं। इसके अलावा वह जॉनसन एंड जॉनसन इंस्टीच्यूट फॉर चिल्ड्रेन की वर्ल्डवाइड एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी रह चुकी हैं। फिलहाल, वह नौकरी छोड़कर दिव्यांग बच्चियों की ‘मां’ बनकर कोलकाता में ‘शिशुर सेवाय’ नामक संगठन चला रही हैं।

घर बेचकर चली आईं महानगर : हैरिसन कैंसर पीड़ित थीं। इससे उबरने के बाद उन्होंने न्यू जर्सी स्थित अपना घर बेच दिया और कोलकाता चली आईं। उन्होंने यहां परित्यक्त दिव्यांग बच्चों की सेवा के लिए ‘शिशुर सेवाय’ की स्थापना की। अलीपुर के शाहपुर में दिव्यांग और परित्यक्त बच्चियों के लिए शुरू किए गए इस शेल्टर होम में वह एक मां के रूप में उनकी देखभाल करती हैं। 2013 से उन्होंने अपने शेल्टर होम की छत पर बच्चियों के लिए क्लास भी शुरू की थी। उन्होंने इस क्लास का नाम ‘इच्छे दाना’ रखा।

स्वीडन की आई टोबी तकनीक से संचार: ‘इच्छे दाना’ में पढ़ने वाली तीन बच्चियां अगले साल नेशनल इंस्टीच्यूट फॉर ओपन स्कूलिंग परीक्षा में शामिल होंगी। अपनी इस क्लास में डॉ. हैरिसन ने स्वीडन में निर्मित टोबी आई ट्रैकर भी पेश किया है। यह आंखों के माध्यम से संचार करने की एक दुर्लभ तकनीकी है। इसके माध्यम से भारत में पहली बार दिव्यांग लड़कियों ने अपने विचारों को आंखों के माध्यम से स्क्रीन पर संचारित किया था। डॉ. हैरिसन के स्कूल में यह तकनीकी बच्चियों द्वारा क्लास के अलावा अनौपचारिक संचार के लिए भी इस्तेमाल की जाती है।

सामने आई कई समस्याएं: शिशुर सेवाय चलाने के दौरान डॉ. हैरिसन ने कई समस्याओं का सामना किया। उन्हें जबरन वसूली के कई फोन आए। ऐसे में वह अपनी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित हैं। डॉ. हैरिसन की संपत्ति और संसाधन भी लगातार खत्म होते जा रहे हैं। ऐसे में उनकी मदद के लिए उनके बच्चों ने ही जिम्मा संभाला है।

डॉ. हैरिसन की दोनों बेटियां हीदर वोलिक और सेसिलिया ने अमेरिका में एक संगठन बनाया है, जो शिशुर सेवाय के संचालन के लिए फंड इकट्ठा करती हैं। हीदर वोलिक पेशे से अधिवक्ता हैं, जबकि सेसिलिया एक ड्रमर हैं। बेटियों की मदद से उत्साहित डॉ. हैरिसन कहती हैं कि उनकी बच्चियां उनका शक्ति-स्तंभ हैं। उन्होंने बताया कि वे दोनों साल में एक बार उनसे मिलने आती रहती हैं।

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